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मैं जश्न तब मनाऊंगा जब हर आंख से आंसू पोंछ दिया जाएगा – हिमांशु कुमार

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‘कोई भी झंडा इतना बड़ा नहीं है कि वो निर्दोषों की हत्या की शर्मिंदगी को ढक सके.’
“There is no flag large enough to cover the shame of killing innocent people.”

– हॉवर्ड जिन (Howard Zinn)

मैं जश्न तब मनाऊंगा जब हर आंख से आंसू पोंछ दिया जाएगा - हिमांशु कुमार
मैं जश्न तब मनाऊंगा जब हर आंख से आंसू पोंछ दिया जाएगा – हिमांशु कुमार

मैं आपके धर्म को नहीं मानता. मैं आपके राष्ट्रवाद को भी नहीं मानता. क्यों नहीं मानता आज मैं आपको बताऊंगा. आज आप झंडा लहरा कर राष्ट्रवादी बन जायेंगे, उधर देश के लोगों की ज़िन्दगी और आदिवासियों की ज़मीनें छीनने के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जेल में है, देश की चिंता करने वाले जेलों में हैं. देश के नागरिकों को मार कर पूंजीपतियों के लिए ज़मीनें छीनने का धंधा करने वाले आपके नेता बने हुए हैं, लेकिन आपका राष्ट्रवाद आपको यह सब देखने के लिए प्रेरित नहीं करता.

आपका राष्ट्रवाद आपको अम्बानी, अडानी को आदर्श बताता है. आपके आदर्श इस देश के किसानों और आदिवासियों की ज़मीनें छीन रहे हैं, और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में डलवा रहे हैं. आप महज़ झंडा लहरा कर देशभक्त बनने का ढोंग करते हैं. आप सिर्फ खुद को अच्छा दिखाने के लिए देशभक्ति का इस्तेमाल करते हैं, वैसे असली देश से आपको कोई लेना देना नहीं है. आपका राष्ट्रवाद देश के लोगों को तबाह कर रहा है, इसलिए मैं आपके राष्ट्रवाद से नफरत करता हूं.

इसी तरह आपका धर्म बेकार का है. इस दुनिया में जो भी बच्चा जन्म लेता है उसे इस दुनिया की सभी नेमतों पर बराबर का अख्तियार है. हर बच्चे को एक जैसा घर, खाना, कपडे, इलाज और शिक्षा मिलनी चाहिए. करोड़ों बच्चे बिना इलाज के मर जाते हैं, उन्हें शिक्षा नहीं मिलती. इस तरह गरीब हमेशा गरीब बना रहता है, अमीर ज़्यादा अमीर बन जाता है और आपका धर्म इसके खिलाफ कुछ नहीं बोलता.

आपका राष्ट्रवाद और आपका धर्म आपको थपकी देकर सुला रहा है. आपका राष्ट्रवाद और आपका धर्म कहता है सब ठीक ठाक है, मजे करो इसलिए अच्छे लोग जेलों में पड़े रहते हैं, आप मजे से मंदिर मस्जिद जाते रहते हैं. जब आप झंडा लहरा कर राष्ट्रवादी बनेंगे और मन्दिर मस्जिद में जाकर खुद को धार्मिक समझने की गलतफहमी में होंगे, उस समय बहुत सारे लोग इंसानियत और इन्साफ के लिए तकलीफ उठा रहे होंगे. मेरी दोस्ती ऐसे ही लोगों से ही है जिनके लिए जनता ही भगवान और खुदा है यही राष्ट्र है यही जनता उनका तिरंगा है.

तिरंगा लक्ष्मी और सोनी

मड़कम लक्ष्मी और सोनी सोरी छत्तीसगढ़ में रहती हैं. सोनी स्कूल में पढ़ाती थी. सोनी और लक्ष्मी दोनों आदिवासी समुदाय की हैं. अमीर लोग आदिवासियों की ज़मीन हडपना चाहते थे. अमीर लोग पुलिस को रिश्वत दे देते थे और आदिवासियों को पुलिस परेशान करती थी.

सोनी पढ़ी लिखी थी इसलिए गांव वाले सोनी के पास मदद मांगने आते थे. सोनी गांव वालों की मदद कर देती थी. पुलिस सोनी से नाराज़ हो गई. पुलिस ने सोनी के पति को जेल में डाल दिया, फिर सोनी के भतीजे को जेल में डाल कर यातनाएं दी. सोनी का पति मर गया. अंत में सोनी को भी पुलिस ने पकड़ा, उसे बिजली के झटके दिए और एसपी ने उसके गुप्तांगों में पत्थर भर दिए और जेल में डाल दिया.

कुछ सालों के बाद सोनी जेल से रिहा हुई. पुलिस ने सोनी के चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया. सोनी बिना डरे आदिवासियों की सेवा करती रही. सोनी की बुआ की लडकी का नाम लक्ष्मी था. लक्ष्मी की जवान बेटी घर में सोई हुई थी. पुलिस वाले आये और लक्ष्मी की बेटी को घर में घुस कर घसीट कर ले गए. कुछ दूर जंगल में ले जाकर पुलिस वालों ने लक्ष्मी की बेटी से बलात्कार किया और गोली मार दी.

लक्ष्मी ने अपने बहन सोनी को फोन करके बुलाया लेकिन सोनी को पुलिस ने जाने नहीं दिया. अंत में लक्ष्मी सोनी के साथ अदालत गई और पुलिस की शिकायत की. अदालत में पुलिस ने कहा कि यह औरत झूठ बोल रही है, इसकी कोई बेटी ही नहीं थी. अदालत ने लक्ष्मी की शिकायत उठा कर फेंक दी.

सोनी को भारत के कानून संविधान और तिरंगे पर पूरा भरोसा था. सोनी एक तिरंगा झंडा लेकर अपने घर से लक्ष्मी के घर जाने के लिए पैदल निकल पड़ी. बहुत सारे लोग सोनी के साथ चल पड़े. सोनी दस दिन तक पैदल चल कर लक्ष्मी के गांव पहुंची. सोनी ने लक्ष्मी से कहा कि ‘बहन यह तिरंगा हम सभी भारतवासियों के सम्मान सुरक्षा की गारंटी है. भारत के संविधान में हम आदिवासियों के जीवन और सम्मान की सुरक्षा की गारंटी यह तिरंगा देता है. चलो हम आदिवासी भी मिलकर यह तिरंगा फहराएंगे और मांग करेंगे कि भारत के नागरिकों को दी गई संविधान की गारंटी हम आदिवासियों को भी मिले.’

लक्ष्मी ने गांव के बीच चौक पर एक ऊंचे से बांस पर बांध कर तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराया. सभी आदिवासी गांव वाले भीगी आंखों और उम्मीद से उस झंडे के नीचे खड़े हुए और उन्होंने राष्ट्रगान गाया. शाम को लक्ष्मी ने पूरे सम्मान के साथ ध्वज का अवरोहण किया और तिरंगे को संभल कर रख लिया. कुछ समय के बाद पुलिस लक्ष्मी के गांव में आई और पन्द्रह आदिवासियों की गोली मार हत्या कर दी. पुलिस लाठियों पर लटका कर उनकी लाशों को ले गई. यह सब देख कर लक्ष्मी बहुत क्रोधित हुई.

लक्ष्मी ने घर में रखा सोनी का दिया हुआ तिरंगा झंडा लिया और सोनी के घर पहुंची और कहा सोनी तूने कहा था कि ये झंडा हम आदिवासियों को सम्मान और सुरक्षा देगा. देख हमारे साथ इस देश की सरकार और पुलिस ने क्या किया है. बता क्या ये तिरंगा इस देश के आदिवासियों को जिन्दा रहने का हक़ दे सका ? ये झंडा सरकार को मनमानी करने की आज़ादी देता है. ये झंडा पुलिस को मेरी बेटी के साथ बलात्कार करने की आज़ादी देता है. ये तिरंगा पुलिस को तेरे शरीर में पत्थर डालने की आज़ादी देता है लेकिन ये तिरंगा हमें सरकार और पुलिस की क्रूरता से नहीं बचाता. ये तिरंगा संविधान में दी हुई बराबरी आदिवासियों तक नहीं पहुंचाता. ले अपना तिरंगा वापिस ले ले. ये तिरंगा हमारे लिए नहीं बना है और लक्ष्मी ने वो तिरंगा सोनी को वापिस दे दिया.

पिछले महीने सोनी का मुकदमा भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने ख़ारिज कर दिया. सोनी को न्याय नहीं मिला लेकिन सोनी लक्ष्मी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय गई और उसकी बेटी के साथ पुलिस द्वारा किये गए बलात्कार और हत्या की शिकायत दर्ज करवाई. लक्ष्मी और सोनी ने भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति से मिलने की कोशिश की लेकिन राष्ट्रपति ने उनसे मिलने से मना कर दिया.

मैं जश्न तब मनाऊंगा जब हर आंख से आंसू पोंछ दिया जाएगा

यह लोग दिल्ली में एक सप्ताह तक रहे लेकिन मोदी सरकार के किसी भी मंत्री और सांसद ने इन्हें मिलने के लिए समय नहीं दिया. मैं दिल्ली में सोनी और लक्ष्मी दोनों से मिला. इन दोनों ने यह सब कई सभाओं में बताया. दिल्ली के पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, वकीलों, रिटायर्ड जजों ने यह सब सुना. मैंने भी सुना और आपको सुना दिया, इससे ज़्यादा मैं और कर भी क्या सकता हूं.

आप चाहें तो मुझे गालियां दीजिये, कहिये कि मैंने झंडे के अपमान करने वाला यह लेख लिखा है लेकिन दिल पर हाथ रख कर कहिये कि झंडे का अपमान इस लेख को लिखने वाले ने किया है या उन पुलिसवालों ने किया है जो तिरंगे की कानून की और संविधान की शपथ लेने के बावजूद आदिवासी लड़कियों से बलात्कार कर रहे हैं या उन न्यायाधीशों ने तिरंगे का अपमान किया है जो लगातार न्याय मांगने वाले आदिवासियों को न्याय देने से मना कर रहे हैं या उन मंत्रियों ने किया है जो वैसे तो खादी पहनते है लेकिन यह सब देख कर भी आदिवासियों की मदद नहीं कर रहे ?

बचाइये अपने तिरंगे को बचाइयेस इससे पहले कि लक्ष्मी जैसी करोड़ों माताओं का यकीन इस पर से खत्म हो जाए. मेहरबानी करके झंडे की इज्ज़त बचाइये. इसे और ज्यादा बेईज्ज़त मत कीजिये मी लार्ड !

गोमपाड़ के आदिवासियों के 16 परिवारजनों को तलवारों से काट दिया गया था. डेढ़ साल के बच्चे की उंगलियां तक काट दी थी. 13 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इनकी याचिका खारिज कर दी. यह आज़ाद भारत का आदिवासियों के साथ सबसे भयानक सरकारी हत्याकांड था.

यह आदिवासी दिल्ली आए. वह बच्चा भी आया जिसकी उंगलियां काट दी गई थी. कोई राजनीतिक दल का प्रतिनिधि इनसे मिलने नहीं आया. दिन-रात बहुजन एकता के बारे में फेसबुक पर लिखने वाले लेखक, बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट कोई भी इनसे मिलने नहीं आया. धर्मनिरपेक्ष टीवी एंकर और जनवादी यू-ट्यूबर भी इनसे मिलने नहीं आए. मुझसे लोग फोन करके पूछ रहे हैं – ‘सर इन लोगों से तो हमें बहुत उम्मीद थी लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर मुंह क्यों नहीं खोला ?’ मैं सब जानता हूं लेकिन क्या कहूं !

टीवी पर हिंदू मुस्लिम की बात करना बहुत सरल है. उससे एक पार्टी खुश होती है दूसरी नाराज होती है लेकिन आदिवासी का मुद्दा उठाने से हर पार्टी नाराज हो जाती है. कोई भी पत्रकार हर पार्टी को नाराज नहीं कर सकता. आदिवासी समस्या का संबंध पूंजीवाद से है. आदिवासी के ऊपर हमला पूंजी को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. हर पार्टी पूंजी के आधार पर ही चुनाव लड़ती है और जीतकर पूंजीवाद की सेवा करती है.

आदिवासी का मुद्दा उठाने से पार्टी की कमाई बंद हो सकती है. पार्टी की कमाई बंद होने से टीवी चैनल को मिलने वाला विज्ञापन बंद हो सकता है इसलिए आदिवासी के मुद्दे पर ना बोलना ही ज्यादा फायदेमंद है. इसके अलावा एक पार्टी को खुश करके राज्यसभा में जाने का जुगाड़ लगाया जा सकता है, हर पार्टी पर नाराज करके अपना भविष्य क्यों बिगाड़ा जाए ?

बहुजन एकता की बात इसलिए की जाती है ताकि फेसबुक पर अपने समर्थकों की संख्या दिखाकर पार्टियों के साथ जुगाड़ लगाया जा सके लेकिन इससे कोई बदलाव नहीं आने वाला, ना बहुजनों की एकता बनने वाली, ना कोई हालत बदलने वाली जब तक हम पूरी तरह निडर होकर, सारे लालच को हटाकर पूरी तरह सच्चाई और न्याय के पक्ष में खड़े नहीं होंगे बहुजनों की हालत बदलने वाली नहीं है.

आप हिमांशु के पक्ष में मत बोलिए आदिवासियों के पक्ष में तो बोलिए. देखिए जब सरकार आदिवासियों का अनाज जलाती है तो आदिवासी कैसे रोते हैं. आजादी का जश्न आप सब को खूब-खूब मुबारक. मैं जश्न तब मनाऊंगा जब हर आंख से आंसू पोंछ दिया जाएगा.

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ROHIT SHARMA

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