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दिल्ली का आम बजट: विषैले पौधों की जड़ों में मट्ठा डालने की क्रिया

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शायद हम उन खुशकिस्मतों में शामिल हैं जो देश में चल रहे संक्रमण काल के दौर में जी रहे हैं, जहां एक घोर अवसरवादी-दक्षिणपंथी सत्ता के बीच जनता की सत्ता सांस ले रहा है और एक अद्भुत सुखद हवा का संचार कर रहा है.

एक सत्ता, जिनका प्रतिनिधित्व भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में थोड़े-थोड़े अंतर के साथ तमाम राष्ट्रवादी चोला ओढ़े दुर्दांत दलाल पूंजीवादी हिंसक दलों का है. जिसका रोजमर्रा का यह काम हो चला है जनता को बेवकूफ बनाना और दलाल पूंजीपतियों का सेवा करना. इसके लिए निःसंकोच किसी भी स्तर पर गिर जाने में किसी भी प्रकार का लज्जा नहीं है. हंसना, रोना, गाना आदि जैसे अभिनय उबा देने के लिए काफी है. ये नित नये काल्पनिक दुश्मनों की खोज करते हैं, और उसके लिए हथगोले, बम, लाठी, तलवार आदि का अभिनय करते हैं और निर्दोष जनों की जान लेते हैं.

इसके विपरीत एक दूसरी सत्ता जो इन दिनों सांस ले रही है और एक प्रयोग कर रही है वह है अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी. बेहद छोटे पर नमक की तरह यह सत्ता अपने प्रयोगों को नित नये आयाम तक पहुंचा रही है. इसके दूसरे शब्दों में जनता का सत्ता भी कहा जा सकता है. इस ‘जनता के सत्ता’ शब्दों को जरा विस्तृत अर्थों में हमें देखना चाहिए. यह सत्ता दूसरे सत्ता के लिए कितनी कारगर चुनौती बन पायी है यह इन पर हो रहे दैनिक हमलों से हम सभी जानते हैं. अब जब इस छोटी सी जन-सत्ता को शासक वर्गों ने छोटे से जगहों में सिमटा देने के लिए पूरी ताकत लगा दी है तब भी यह सत्ता अपने छोटे से अधिकारों का प्रयोग करते हुए जनता की बुनियादी समस्याओं पर जिस दृढ़ता से खड़ी हुई है, वह बेशक लाजबाब है.

अपने बजट सत्र में केजरीवाल की सरकार ने जिस प्रकार आम जनों के हितों को केन्द्रित कर अपनी आगामी योजना का खाका खिंचते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिक रखा और जिस बड़े पैमाने पर धन को निवेशित किया, वह जनता को ठगने के लिए पिछले तमाम दशकों से बनाये जा रहे बजटों और योजनाओं की धज्जी उड़ाने के लिए काफी है.

नहीं जानते केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार आगे किस दिशा में और कितना जा पायेगी, पर आज की तारीख में उनके द्वारा लिये जा रहे फैसले निश्चित रूप से विषैले पौधों की जड़ों में मट्ठा डालने की क्रिया है.

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