भारत के सुप्रीम कोर्ट की भूमिका केवल मोदी सरकार की हिफाजत करना और बदले में सेवानिवृत्त होने के बाद किसी उच्च पद की लोलुपता या अन्य सुविधाएं पाने की पर्याय बन कर रह गया है. जनता के टैक्स के हजारों करोड़ रुपयों पर पलने वाला यह संस्था केवल से पिस्सु ही साबित हुआ है.
इन दिनों जब देश भर में मामूली मेडिकल सुविधा, ऑक्सीजन, दवाईयां तक लोगों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है, जिस कारण देश में लाशों का अंबार लग रहा है, लोगों का आक्रोश उबल रहा है, अराजकतायें बढ़ रही है तब देश के दसियों हाईकोर्ट ने अपनी मानवीय भूमिका निभाई और जिम्मेदार केन्द्र की मोदी सरकार को न केवल कठघरे में ही खड़ा किया अपितु फटकार भी लगाई है.
ऐसे वक्त में जब लोग हजारों की तादाद में मर रहे थे तब प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत आधे दर्जन से ज्यादा राज्यों का मुख्यमंत्री बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहा था. ऐसे वक्त में जब दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया और आदेश पारित किया कि जैसे भी हो ऑक्सीजन की व्यवस्था करो, चाहे भीख मांगो या चोरी करो.
अकबकाये मोदी सरकार को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोदी का पालतू बोबरे ने आननफानन में स्वत: संज्ञान के बहाने हाईकोर्ट को फटकार लगाया और सुनवाई के लिए 5 दिन आगे का डेट देकर दिल्ली हाईकोर्ट को खामोश कर दिया. यानी लोगों को मरने के लिए और 5 दिन का मौका दिया और सेवानिवृत्त हो गया. इसे कहते हैं जाते जाते भी यह पालतू कुत्ता मोदी सरकार को राहत दे गया.
बाद में जब देश के अन्य हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधाओं पर सवाल उठाते हुए केन्द्र सरकार को फटकार लगाई तो पुनः सुप्रीम कोर्ट का अरनब मॉडल न्यायधीश डी वाई चन्द्रचुड़ मोदी की दलाली में कूद पड़ा. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचुड़ ने 30 अप्रैल को एक सुनवाई में हाई कोर्ट को ही फटकार लगाते हुए अनावश्यक और बेवजह टिप्पणियों से बचने की चेतावनी जारी कर दी.
ऐसे वक्त में जब देश में लाखों लोग ऑक्सीजन, दवाई, बेड जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग मर रहे हैं, जो लोग मदद करने का प्रयास भी कर रहे हैं तो उल्टा पुलिस उन्हीं पर मुकदमा दर्ज कर रही है, ऑक्सीजन, दवाई, बेड, एम्बुलेंस तक की कालाबाजारी की जा रही है, ऐसे वक्त में बजाय उन सरकार, अधिकारियों को फटकारने के उल्टे हाईकोर्ट को ही चेतावनी जारी कर रही है, तो सोचना होगा कि इस सुप्रीम कोर्ट की जरुरत क्या है और किसको है.
अब सुप्रीम कोर्ट चार कदम और आगे बढ़कर ऑक्सीजन वगैर जैसी मूल सुविधाओं के बिना मरते लोगों को राहत देने के बजाय मुद्दों को भटकाने के लिए कोरोना के तीसरी लहर का तान सुनाने लगा है. सुप्रीम कोर्ट की इस नीचतापूर्ण मजाक पर पत्रकार गिरीश मालवीय अपने पेज पर लिखते हैं –
तीसरी लहर की बहुत चर्चा में है सब. दूर चर्चा छिड़ी हुई है कि तीसरी लहर में क्या हालत होगी ? आसान होता है लोगों को अज्ञात के प्रति भयग्रस्त कर देना ! पर जब यह काम सुप्रीम कोर्ट करने लगे तो वाकई आश्चर्य होता है. यह शक होने लगता है कि तीसरी लहर का हल्ला इसलिए तो नही मचाया जा रहा ताकि दूसरी लहर से उपजी विभीषिका को ही डाउन ग्रेड कर दिया जाए ? सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना की तीसरी लहर पर चिंता जता रही है.
कल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र की गलती है, हम चाहते हैं कि वैज्ञानिक ढंग से नियोजित ढंग से तीसरे वेब से निपटने की जरूरत है. जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और एम.आर. शाह की पीठ ने कहा कि अगर सही तरीक़े से तैयारी की गई, तो हम तीसरी लहर से निपट सकेंगे. तीसरी लहर में जो बच्चे प्रभावित होंगे उनकी चिंता करनी चाहिए.
गजब है मीलॉर्ड ! यह तीसरी लहर कहां से बीच में आ गयी. आप तो वर्तमान की बात कीजिए न ! देश भर की हाईकोर्ट आक्सीजन संकट पर, आवश्यक दवाओं की कमी पर केंद्र में बैठी मोदी सरकार को लताड़ रही है, घेर रही है और आप तीसरी लहर का शगूफा पकड़ कर बैठ गए हैं.
साफ दिख रहा है सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के लिए प्रेशर वॉल्व की भूमिका निभा रहा है. जबकि कल से पहले देश भर की हाईकोर्ट ने कोरोना से निपटने में केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट कह रहा था कि ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीजों की मौत किसी नरसंहार से कम नहीं हैं. अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होने से कोरोना मरीजों की जान जाना अपराध है. ध्यान दीजिए ‘नरसंहार’ जैसा शब्द.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि पूरा देश आज ऑक्सीजन के लिए रो रहा है. पीठ ने कहा कि लोग रोज मर रहे हैं, यह भावनात्मक मामला है, लोगों की जिंदगी खतरे में है. पीठ ने कहा कि सरकार अंधी हो सकती है, हम नहीं. साथ ही कहा कि आप इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं ?
कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार से ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के लिए कहा. चीफ़ जस्टिस अभय श्रीनिवास ने केंद्र सरकार के वकील ने नाराज़गी जताते हुए कहा, ‘आप चाहते हैं कि लोग मरें ? आप हमें यह बताएं कि आप राज्य (कर्नाटक) को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा कब बढ़ाएंगे ?’
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कोविड-19 मरीजों की संख्या में तेजी से आई बढ़ोतरी के बीच प्रदेश सरकार के चिकित्सीय ऑक्सीजन की उपलब्धता करवाने के प्रयासों की दलील पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार को फटकार लगाई और केंद्र सरकार से कहा कि राज्य के लिए 100 मीट्रिक टन तक ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ाए.
मद्रास हाईकोर्ट ने खुद से संज्ञान लेते हुए रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की कमी को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा.
पटना हाईकोर्ट ने कोरोना इलाज के लिए केंद्र व राज्य सरकार को युद्धस्तर पर काम करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि ऑक्सीजन या इमरजेंसी दवा की कमी के कारण किसी कोविड मरीज की मौत नहीं हो. कोरोना से निपटने में सरकार के हर एक्शन पर हाईकोर्ट की नजर है.
झारखंड हाईकोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर को फटकार लगाते हुए सरकार को दवाओं और ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.
नैनीताल हाईकोर्ट ने भी आज ऑक्सीजन सप्लायरों के गलत नम्बर जारी किए जाने और उत्तराखंड पोर्टल पर अस्पतालों की रियल टाइम जानकारी उपलब्ध नहीं कराए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है. सरकार यह सुनिश्चित करे कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत न हो.
गुजरात हाईकोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि वो इस बात से बहुत व्यथित है कि कोरोना के मामले में सरकार उसके आदेशों की पूरी तरह अनदेखी कर रही है.
यह सब पिछले 10 दिनों की ही बातें है। हाईकोर्ट का ज्यूरिडिक्शन सीमित है इसलिए उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इन सब हाईकोर्ट की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाएगा. समाधान की बात करेगा लेकिन वह तीसरी लहर पर ही अटक गया. तीसरी लहर की तैयारी करना गलत नहीं है पर आप दूसरी लहर से तो पहले ठीक से निपट लीजिए.
भ्रष्ट और मोदी सरकार का पालतू कुत्ता यह सुप्रीम कोर्ट, जो देश की आम मेहनतकश जनता के खूने पसीने की कमाई से एकत्रित हजारों करोड़ रुपयों से ऐश कर रहा है, अब मरते लोगों की चीख और आंसुओं पर ठहाका लगा रहा है.
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