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कोरोना का टीकाकरण : बस सोचने बोल रहा हूं

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कभी-कभी माथा पकड़ लेता हूं. भाई इस देश में क्या चल रहा है? जनता भी उसी भेड़चाल में बस भागे जा रही है. सरकार भी झूठ का प्रचार ढोल बजा के कर रही है. आदमी को लगने लगता है, ‘वाह क्या सरकार है. बिल्कुल देवता है. हमें फ्री में 10 किलो अनाज भी दे रही है. टीका भी फ्री में भोक रही है.’

जिस टीके को DCGI से EUA प्राप्त है. मतलब ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिली है. जो fully approved नहीं है, जिसके परिणामों का विश्लेषण चल रहा है. सब हवा में तीर लगा रहे हैं. AEFI अर्थात टीके के नकारात्मक प्रभाव के लाखों केस सामने आ चुके हैं.

इस स्थिति में एक EUA प्राप्त टीके को पूरे देश की आबादी को लेने के लिए बाध्य कर देने के लिए सैलरी रोक देना, बिना टीके के ऑफिस नहीं जाने देना, यात्रा में टीके का प्रमाण लेना, लगभग हर जगह इसे अनिवार्य कर देना कहा तक जायज है ?

जो पुराने मित्र हैं उन्हें पता है इस विषय पर लगभग हज़ार से अधिक पन्ने मैंने लिख दिए लेकिन सवाल वही है. लोग इतने मौन क्यों हैं ? क्या सब खुद गिनी पिग बनना चाहते हैं ?

क्या एक नेता अगर गलत करे तो हम उसे रोक नहीं सकते ? हम आवाज नहीं उठा सकते ? प्रतिरोध नहीं कर सकते ? विरोध में बोल नहीं सकते ? फिर कैसा लोकतंत्र ? दुनिया में लाखों लोग आखिर क्यों विरोध कर रहे हैं ?

एक ऐसा टीका जिसके ingredients के परिणामों का स्पष्ट आंकलन आपके समक्ष नहीं है, आपको उसे जबरन शरीर के अंदर लेने के लिए बोला जा रहा है. सिर्फ कहने को स्वैच्छिक है. वास्तव में है क्या ? खुद सोचिए !

उसके बाद यदि टीके से आपको कुछ होता है तो इसकी जिम्मेवारी कोई नहीं लेगा ? आप टीके की कंपनी के खिलाफ केस नहीं कर सकते.

यह सब जायज है क्या ? सिर्फ इस बुनियाद पर की उस नेता ने hypnotized करके, psychological warfare के सहारे आपको अपना प्रशंसक बना लिया है इसलिए आप किसी भी सही चीज को नहीं सुनेंगे ? सही बोलने वाले की cyber bullying करेंगे, यह जायज है क्या ?

अगर आप जरा भी rational सोचने की capacity रखते हैं, तो जरा ठंडे दिमाग से सोचिए. आखिर चलक्यारहा है ? जब सरकार चाहे केस बढ़ जाते हैं, जब सरकार चाहे केस कम हो जाते हैं, ऐसा कौन सा बटन है सरकारों के पास ?

सवाल बहुत हैं. आपको सोचना होगा. बात आपके शरीर से जुड़ी है इसलिए सोचने के लिए कह रहा हूं. कोई निर्णय और फैसला नहीं दे रहा. बस सोचने बोल रहा हूं. कोई सवाल हो तो पूछिए. आपसे बहुत कुछ छुपा दिया गया है. आप सिर्फ सतही चीजों को पोस्टर-बैनर में देखकर खुश होने की आदत त्याग दीजिए.

  • संजय मेहता

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