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जाकिया जाफरी की 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई ‘प्रक्रिया का दुरुपयोग’ ?

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जाकिया जाफरी की 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई 'प्रक्रिया का दुरुपयोग' ?
जाकिया जाफरी की 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई ‘प्रक्रिया का दुरुपयोग’ ?
हेमन्त मालवीय

केन्द्र के लोग झूठे आरोप में जेलों में बंद करवा सकते हैं पर किसी मंत्री, अफसर आदि पर किसी भी दंडात्मक कार्रवाई का आदेश सुप्रीमकोर्ट ने आज तक नहीं दिया. अनेक मुस्लिम युवक दसियों साल जेल में बंद रहे, सुप्रीमकोर्ट ने निर्दोष पाये जाने पर उनको पकड़ने वाले अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.

लेकिन एसआईटी जांच रिपोर्ट पर गुजरात के दंगों के प्रसंग में अब जो जजमेंट आया है, वह दंगों के बाद दिए गए अनेक फैसलों पर पुनर्विचार को मजबूर करता है. सुप्रीमकोर्ट इस कदर अपने ही दिए न्याय को कैसे भूल सकता है ? क्या सुप्रीमकोर्ट साहस दिखाएगा कि विभिन्न मामलों में जो अफसर गलत काम करते रहे हैं उन पर गाज गिरेगी ?

एसआईटी रिपोर्ट को जिस रुप में सुप्रीमकोर्ट ने व्याख्यायित किया है वह न्याय के इतिहास की विरल घटना है. इससे भारत की न्यायपालिका का सम्मान कम होगा. यह फैसला न्याय और मानवाधिकार के नए कानूनी सवालों को पैदा करेगा – जगदीश्वर चतुर्वेदी

गुजरात दंगों पे सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी को क्लीन चिट देते हुए जकिया जाफरी का केस रद्द करते हुए ‘ऐतिहासिक फैसला’ सुनाया है. कोर्ट ने कहा, यह साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं है कि दंगे पूर्व नियोजित थे. प्रशासन के कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता या विफलता को राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की पूर्व नियोजित साजिश का आधार नहीं माना जा सकता, न ही इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा कह सकते हैं.

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने जाकिया जाफरी की 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई को प्रक्रिया का दुरुपयोग करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जाकिया की याचिका खारिज करते हुए यह बात कही. जाकिया दंगे में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं. उन्होंने मोदी समेत 63 लोगों पर आरोप लगाए थे.

पीठ ने 452 पृष्ठ के फैसले में जांच रिपोर्ट की तारीफ करते हुए कहा, ‘कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने 2012 में सभी सुबूतों पर विचार करने के बाद अपनी राय बनाई. एसआईटी ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सामूहिक हिंसा के लिए सरकार में शीर्ष स्तर आपराधिक साजिश रचे जाने के आरोप खारिज कर दिए थे.’

पीठ ने कहा, ‘रिपोर्ट मजबूत तर्क, विश्लेषणात्मक दिमागी कसरत और सभी पहलुओं पर निष्पक्ष विचार पर आधारित थी. अदालत ने निष्कर्ष निकाला, एकत्र सामग्री बड़ी आपराधिक साजिश रचने के संबंध में मजबूत या गंभीर संदेह को जन्म नहीं देती है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर 2021 को 14 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

शीर्ष अदालत ने कहा- ‘दंगे पूर्वनियोजित नहीं, गवाहियां झूठ से भरीं जिनका मकसद सनसनी फैलाना और मुद्दे का राजनीतिकरण करना है.’ पीठ ने कहा, ‘सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस तर्क में दम है कि ‘तत्कालीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट, ‘पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या’ और एक अन्य वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ‘आरबी श्रीकुमार’ की गवाही का मकसद सनसनी फैलाना और मुद्दे का राजनीतिकरण करना था. इनकी गवाही झूठ से भरी थी. एसआईटी ने गहन जांच के बाद उनके झूठे दावों को उजागर कर दिया था.’

गनीमत ये रही कि अदालत ने बस ये नही कहा कि SIT ने जांच में पाया अहसान जाफरी ने श्रीमोतीजी को फंसाने के लिए खुद कुलबरगा सोसायटी को आग लगा उसमें स्वयम ही अग्निस्नान कर लिया !

8 जून, 2006 को 67 पन्नों की शिकायत जमा करने, फिर 15 अप्रैल, 2013 को 514 पृष्ठों में विरोध याचिका दायर करके वर्तमान कार्यवाही को पिछले 16 वर्षों से ज्यादा समय तक लटकाया गया है. इस कुटिल चाल को उजागर करने की प्रक्रिया में शामिल हर अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने का प्रयास किया गया, ताकि मुद्दा सुलगता रहे. प्रक्रिया के इस दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है.

कोरोना काल में पूरी दुनिया के देश चरमरा गए, क्या इसे भी आपराधिक साजिश कहेंगे ? पीठ ने कहा, ‘राज्य प्रशासन की विफलता कोई अज्ञात घटना नहीं है. यह कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में दुनियाभर में देखा गया. जहां सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधाओं वाले देश चरमरा गए और उनके प्रबंधन कौशल दबाव में खत्म हो गए. क्या इसे आपराधिक साजिश का मामला कहा जा सकता है ? हमें ऐसे मामलों को बढ़ावा देने की जरूरत नहीं है.’

कानून-व्यवस्था की स्थिति छोटी अवधि के लिए टूटने या छिन्न-भिन्न होने को कानून का शासन भंग होने या सांविधानिक संकट का रंग नहीं दिया जा सकता. अलग तरीके से कहें तो कुशासन या संक्षिप्त अवधि में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता संविधान के अनुच्छेद-356 में निहित सिद्धांतों के संदर्भ में सांविधानिक तंत्र की विफलता का मामला नहीं हो सकता है. उम्मीद की जानी चाहिये दूध का दूध पानी का पानी कर के रख देने वाले न्यायमूर्तियो को रिटायरमेन्ट के बाद कम से कम राज्यसभा की कुर्सी जरूर मिलेगी.

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