आभा शुक्ला
बचपन में सुनती थी कि मुसलमान बहुत निर्दयी होते हैं…वो हिंदुओं ने नफरत करते हैं….तो डर लगता था मुझे मुसलमान के नाम पर.
फिर जब टीनएज मे आई तो पता नहीं कब मिर्ज़ा गालिब, मोहम्मद रफी, जिगर मुरादाबादी, फ़ैज़ काफी बड़ी तादात में मेरे कमरे में काबिज हो गए…
जब दिलीप कुमार की देवदास देखी थी तब स्नातक के पहले साल में थी. यही वो फिल्म थी जिसे देख के मैंने बांग्ला सीखने की असफल कोशिश की थी.. उसी दौरान जाना कि दिलीप साहब असल में यूसुफ थे….
समय बदला. मुस्लिम दोस्त और जान पहचान के लोग धीरे धीरे जीवन में आने लगे. पर मुझे कभी वो निर्दयी महसूस नहीं हुए… गड़बड़ ये हुई…
आपका मैं नहीं जानती….. पर यदि आप भरोसा कर सकते हैं तो करना कि मुझे कभी वो मुसलमान नहीं मिला जो मीडिया ने दिखाया, अखबार ने बताया, हिंदुत्व के ठेकेदारों ने समझाया…
सैकड़ों मुसलमानों ने मुझे बड़ी बहन होने का सम्मान दिया… नवरात्रि में भी आये, दिवाली पर भी…भाईदूज पर टीका भी कराया और कलाई पर राखी भी बंधाई. फिकर भी खूब की….और झगडा भी खूब किया…
इसलिए आपसे कहूंगी कि खुद आजमाए लोगों को…! खुद कसौटी पर कसें अपने रिश्तों को… अखबार और हिंदुत्व के ठेकेदारों के चक्कर में न पड़े….यकीं माने कि आप जैसे हैं आपको वैसे ही लोग मिलेंगे…!
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Rajiva Bhushan Sahay
April 5, 2023 at 10:36 am
जबरदस्त रोहित जी! ऐसा लगता है जैसे अपना हीं अनुभव है।