आज प्राइमिनिस्टर ने संसद के सेंट्रल हाल में खड़े होकर अपनी काली जुबान से संविधान दिवस के पवित्र मौके को भी कलुषित कर दिया. मौका कोई हो, विदेशी मंच, सरकारी कार्यक्रम या संवैधानिक फोरम, प्रधानमंत्री के कदम रखते ही उसकी गरिमा शून्य हो जाती है. वो ‘तू तू मैं मैं’ और घटिया राजनीति वाली चुनावी रैली में बदल जाता है.
आज यह उगला गया कि देश की दूसरी पार्टियां लोकतांत्रिक नहीं है. प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या उनकी पार्टी लोकतांत्रिक है ? क्या भाजपा का अध्यक्ष, उसका कोर ग्रुप, उंसके राज्य से लेकर मंडल तक का पदाधिकारी चुनकर आते हैं ? अगर नहीं, तो भाजपा लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा कैसे करती है ? लेकिन इसके पहले, सवाल होना चाहिए कि क्या भाजपा कोई राजनैतिक पार्टी है भी या नहीं ?
भाजपा की अपनी कोई विचारधारा नहीं, कोई आर्थिक, सामाजिक दर्शन, कोई स्वतंत्र कार्यक्रम नहीं. ये पार्टी, महज आरएसएस का फ्रंट भर है. अनेकों औऱ अनुषांगिक संगठनों की तरह, भाजपा भी दशानन का एक सर है, दशानन नहीं. भाजपा की स्वयं कोई हस्ती नहीं. विश्वास न हो, तो जरा आसपास देख लीजिए.
जमीनी कार्यकर्ता, जो राम के नाम, धर्म, संस्कृति और देशभक्ति की चोंचलेबाजी से प्रभवित होकर नारेबाजी करते हैं, भीड़ और वोट जुटाते है, पंडाल सजाते हैं. उनका काम ताजिंदगी आरएसएस वालों की पालकी ढोना है.
कुछ किस्मतवाले पार्षद, विधायक बन जाते हैं लेकिन बच्चा बच्चा जानता है कि आरएसएस के अनुमति के बगैर, गैर संघ पृष्ठभूमि के बन्दे को भाजपा में टिकट या मंत्रिपद नहीं मिलता. मंडल से जिला तक का पदाधिकारी संघ के पर्यवेक्षक तय करते हैं.
पार्टी नहीं, लाखों मूर्खों को कहार बनाकर, संघियों की पालकी ढोवाने वाले ठगबाज संगठन का नाम भाजपा है. इसके हर शक्तिशाली पद, इसकी सरकार में गद्दियों पर, पालकी के भीतर, नागपुर से निर्धारित स्वयंसेवक बैठा है.
वो स्वयंसेवक जो खुद तानाशाही का मारा है, जो लाखों स्वयंसेवकों के बीच, उच्च पद के लिए किसी की कृपा से चुना गया है, जो अपने नीचे वालों को कृपा और अनुशासन से डिक्टेट कर रहा है. वह न हिसाब मांगता है, न हिसाब देता है.इस लैक ऑफ क्वेश्चनिंग को ‘अनुशाशन’ कहते हैं. इन कहारों को कैडर कहते हैं.
यह चयन, यह कृपा नॉमिनेशन है. हर बन्दा, नॉमिनेटेड है. नागपुर से अधिकृत बाप द्वारा नॉमिनेटेड. यह नॉमिनेशन राज है, लोकतन्त्र कहां है ?
औरों की छोड़िये. मुझे बताइये प्रधानमंत्री जी, आपको किसने चुना था ? किसके खिलाफ लड़कर, किसके मत से निर्वाचित होकर आपने 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली ? जनता ने चुना, या केशुभाई के विधायकों ने या गुजरात भाजपा इकाई ने ? कौन-सी ताकत थी वो जिसने आपको ताकत दी ? नागपुर ही न ! किसलिए ? क्योंकि आप निष्ठावान स्वयंमसेवक थे. कृपापात्र थे.
लोकतंत्र कृपा नहीं होती हक होता है. जनता का हक है कि वो किसी डायनेस्ट को चुने, या हत्यारे को. किसी पप्पू को चुने या झूठे को, मर्जी उसकी है. लेकिन आप दुनिया के आखिरी आदमी होंगे, जिससे यह देश लोकतंत्र पर लेक्चर सुनना चाहेगा.
कृपा करके काम धाम पर ध्यान दीजिए. आपको बेहतर काम करने की जरूरत है क्योंकि कभी भी कोई सरसंघचालक, कोई सरकार्यवाह या उनका भेजा गुमाश्ता, आपके कामों की समीक्षा कर सकता है. और आप, सवा सौ करोड़ जनता के सरमौर, सॉवरिन स्टेट का मुखिया उनके सामने सर नवा कर खड़ा रहेंगे क्योंकि आप आरएसएस की कठपुतली हैं, मिस्टर प्राइमिनिस्टर !
- मनीष सिंह
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