उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाचार चैनल के मंच से कहा है कि – ‘अगर धर्मग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि संभल में कल्कि को समर्पित हरिहर मंदिर शाही जामा मस्जिद के निर्माण से पहले मौजूद था, तो मुस्लिम समुदाय को इस मुगलकालीन मस्जिद को सम्मानजनक तरीके से हिंदुओं को सौंप देना चाहिए.’ श्री योगी ने संभल की शाही जामा मस्जिद के संदर्भ में यह भी कहा कि – ‘किसी को ‘किसी भी विवादित ढांचे’ को मस्जिद के रूप में संदर्भित नहीं करना चाहिए.’
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी की ये टिप्पणियां दिसंबर 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पृष्ठभूमि में आई हैं, जिसमें देश की अदालतों को अन्य धार्मिक स्थानों पर दावा करने वाले किसी भी नए मुकदमे को दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया गया है. इस बयान से ऐसा लगता है मानो योगी आदित्यनाथ अब अल्पसंख्यकों को सीधे-सीधे चेतावनी दे रहे हैं !
हालांकि वे पहले भी उग्र हिंदुत्व के पक्ष में झुके हुए बयान दे चुके हैं और उनके बुलडोजर न्याय को भाजपा में इतना पसंद किया गया कि अनेक राज्यों में उसका अनुसरण किया गया. प्रसंगवश बता दें कि बुलडोजर न्याय पर भी सुप्रीम कोर्ट सख्त टिप्पणी कर चुका है, लेकिन बुलडोजर न्याय के बाद अब श्री योगी संभवत: यह भी तय करने लगे हैं कि मुसलमान किस ढांचे को मस्जिद मानें और किसे नहीं.
मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति के लिए इस तरह के बयान देना न केवल संविधान की भावना के विपरीत है, बल्कि पद की गरिमा भी इससे घटती है. क्योंकि वे ऐसा कहकर एक समुदाय विशेष के साथ खड़े हो रहे हैं तथा दूसरे समुदाय के विरूद्ध बयान दे रहे हैं. हालांकि इस बारे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले क्रम के कार्यकर्ताओं का हाल एक जैसा ही है. प्रधानमंत्री पद हो, मुख्यमंत्री का पद हो या सांसद या विधायक, भाजपा की हिंदूवादी राजनीति, हर ओहदे पर भारी पड़ जाती है.
मुख्यमंत्री योगी ने ‘हर विवादित ढांचे को मस्जिद कहना ठीक नहीं है.’ – जैसा बयान, देश भर में अनेक मंदिरों व मस्जिदों को लेकर हो रहे विवादों के परिप्रेक्ष्य में दिया है, लेकिन इसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों के लिये स्पष्ट संदेश हैं.
आगे वे कहते हैं कि – ‘जिस दिन उन्हें मस्जिद कहना बन्द कर दिया जायेगा, तो लोग उनमें जाना भी छोड़ देंगे.’ उन्होंने अपने बयान को न्यायसंगत बतलाने के लिये दो-तीन तर्क दिये. पहला तो यह कि ‘ऐसे स्थानों पर की जाने वाली इबादत को खुदा भी स्वीकार नहीं करेगा.’ यानी वे कहना चाहते हैं कि किसी भी विवादग्रस्त ढांचे में नमाज़ पढ़ी भी जाये तो उसका कोई उपयोग नहीं है.
आदित्यनाथ ने दूसरी जो बात कही वह अल्पसंख्यकों के मन में और भी खौफ़ पैदा कर सकती है. उन्होंने एक तरह से मस्जिदों की उपयोगिता और अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिये तथा यह भी बताया कि तमाम मस्जिदें निरर्थक हैं तथा ढांचे तो केवल सनातन धर्म यानी हिन्दुओं को ही चाहिये ! उनका आशय यह था कि ढांचे के बिना भी मुसलमान उपासना कर सकते हैं. यानी मुस्लिम कहीं भी नमाज़ पढ़ सकते हैं जबकि हिन्दुओं को कोई स्ट्रक्चर अनिवार्यत: चाहिये ही होता है.
ध्यान से देखें तो यह बयान बहुत ही खतरनाक है तथा एक वर्ग विशेष में ‘उन्माद की नयी लहर’ पैदा कर सकता है. वैसे भी भारतीय जनता पार्टी, उसके सहयोगी संगठनों तथा छिटपुट समूहों द्वारा देश भर में मंदिर-मस्जिद के विवाद खड़े किये जा रहे हैं. आये दिन किसी न किसी शहर की मस्जिद के सामने या भीतर उपद्रव हो रहे हैं या फिर कभी इस मस्जिद की खुदाई की मांग हो रही है तो कभी उस मस्जिद के भीतर हिन्दू देवी-देवता होने के दावे सामने आते हैं. इन सबके कारण अक्सर विवाद हिंसक रूप ले रहे हैं.
योगी के अपने राज्य के संभल में इसी के चलते लगी आग अब तक पूरी तरह से ठंडी नहीं हो पायी है कि राज्य के मुखिया नये सिरे से उसी आग को भड़काने में लगे हैं. अबकी यह आग उनके राज्य में सीमित न रहकर देश भर में फैल सकती है !
मुख्यमंत्री योगी ने 14 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुम्भ में मुसलमान दुकानदारों द्वारा दुकानें न लगाने देने की बात को एक तरह से यह कहकर स्वीकार कर लिया कि ‘वहां कुछ लोग कुत्सित मानसिकता के साथ आते हैं. उनके साथ अन्य तरह का व्यवहार हो सकता है. ऐसे लोगों को आना ही क्यों चाहिये ? जिनके मन में भारत व भारतीयता के प्रति आदर है वे ही यहां आएं !’
योगी जिस पद पर बैठे हैं उनका दायित्व सभी को सुरक्षा देना तथा संवैधानिक नियम-कानूनों का पालन करना-कराना है. इसके विपरीत यह बयान एक वर्ग को डराना तथा दूसरे वर्ग (कानून तोड़ने वालों) को भड़काना और उसे अपने संरक्षण की गारंटी देना है.
संभल के बाबत भी उन्होंने दावा किया कि वहां हरि विष्णु मंदिर था जिसे तोड़कर जामा मस्जिद बनाई गई है. ऐसा दावा करते हुए योगी ने कहा कि अकबर द्वारा लिखित आइन-ए-अकबरी (वर्ष 1526) में इस बात का उल्लेख है तथा शास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध हैं.
एक मुख्यमंत्री द्वारा निर्णय तक पहुंचना कतई उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह मामला न्यायाधीन है. उनके द्वारा ऐसा कहना एक समुदाय को सीधा समर्थन देने जैसा है.
- सर्वामित्रा सुरजन
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