गिरीश मालवीय, पत्रकार
यह ‘देश नही बिकने दूंगा’ की बात करते हैं और बड़े-बड़े बैंकों में जमा आम आदमी की रकम को लूट कर अम्बानी जैसे मित्र उद्योगपतियों को बांट देते हैं और यही लोग सवाल पूछे जाने पर बिके हुए मीडिया पर 2 करोड़ की पेंटिंग को मुद्दा बना देते हैं.
जब भी बैंकों के बढ़ते हुए एनपीए की बात आती है तब मोदी सरकार कहती है, ‘यह तो कांग्रेस सरकार का एनपीए है, जो बैंकों द्वारा दर्ज नहीं किया था. उन्होंने उद्योगपतियों को बेतहाशा लोन बांटे थे.’ एक बार जरा इस संदर्भ में यस बैंक की बेलेंस शीट देखिए, आपको पता चल जाएगा कि लोन किसने और कब बांटे ?
वर्ष समाप्ति ऋण बकाया –
मार्च 2014 55,633 करोड़
मार्च 2015 75,550 करोड़
मार्च 2016 98,210 करोड़
मार्च 2017 1,32,263 करोड़
मार्च 2018 2,03,534 करोड़
मार्च 2019 2.41,499 करोड़
2014 से 2019 तक यस बैंक की ओर से दिया जाने वाला कर्ज 334 फीसदी बढ़ गया. नोटबंदी वाले साल 2016-17 तथा 2017-18 के 2 वर्षों में यह कितनी तेजी से बढ़ा, यह साफ दिख रहा है. यह कैसे बढ़ा ?
अब यस बैंक कह रहा है कि उसके द्वारा कॉर्पोरेट जगत को दिया गया एक-तिहाई कर्ज डूबे कर्ज की श्रेणी में आ गया है ! कितने आश्चर्य की बात है कि जो यस बैंक पिछले 10 साल से लगातार फायदा दिखाती आ रही थी, उसे इस तिमाही में इतना बड़ा घाटा हुआ है कि उससे इस बैंक की रनिंग कंडीशन में बने रहने पर ही संदेह उत्पन्न हो गया है.
डूबे कर्ज के दबाव की वजह से यस बैंक को चालू वित्त वर्ष की दिसंबर के समाप्त तीसरी तिमाही में 18 हजार 654 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. यह निजी क्षेत्र के किसी बैंक का अब तक का सबसे बड़ा घाटा है, संभवतः यह एक तिमाही में होने वाला बैंकों का सबसे बड़ा घाटा दर्ज किया है. पिछले छह महीनों में बैंक के डिपॉजिटिस में 76 हजार करोड़ रुपये की कमी दर्ज हुई, अब यह मात्र 1.65 लाख करोड़ रुपये ही रह गया है, यह बताता है कि ‘मित्रों’ को पहले से ही खबर थी कि बैंक की हालत खराब है, उन्होंने अपना पैसा निकाल लिया.
सरकार यस बैंक के रिवाइवल प्लान को पहले ही नोटिफाई कर चुकी है. यह आंकड़े जानबूझकर मोरिटोरियम हटाने की घोषणा के बाद में रिलीज किये गए हैं ताकि यस बैंक को लेकर जमाकर्ताओं में ओर पैनिक का माहौल न बने. दरअसल इन आंकड़ों से पता चल रहा है कि अब तक निवेशकों ने जितनी रकम डालने की घोषणा की है, वह ऊंट के मुंह में जीरा जितनी रकम है.
येस बैंक का एनपीए इस साल दिसंबर तिमाही में बढ़कर 18.87 फीसदी हो गया हैं. पिछली अक्टूबर-दिसंबर, तिमाही में एनपीए रेश्यो मात्र 2.10 फीसदी था, यानी एक साल की अवधि में एनपीए 9 गुना बढ़ गया. यह कैसे हुआ ? किसी के पास जवाब नहीं है ? आरबीआई जैसी नियामक संस्था अब तक क्या भाड़ झोंक रही थी ?
यह ‘देश नही बिकने दूंगा’ की बात करते हैं और बड़े-बड़े बैंकों में जमा आम आदमी की रकम को लूट कर अम्बानी जैसे मित्र उद्योगपतियों को बांट देते हैं और यही लोग सवाल पूछे जाने पर बिके हुए मीडिया पर 2 करोड़ की पेंटिंग को मुद्दा बना देते हैं. इस खेल को समझना और समझाना बेहद जरुरी है.
Read Also –
मोदी, कोरोना वायरस और देश की अर्थव्यवस्था
यस बैंक : भारत की बैंकिंग प्रणाली इतिहास का सबसे बड़े संकट
यस बैंक का बचना मुश्किल लग रहा है
बिगड़ते आर्थिक हालात, FRDI बिल की धमक और खतरे में जमाकर्ताओं की जमा पूंजी
नए नोट छापने से रिजर्व बैंक का इन्कार यानी बड़े संकट में अर्थव्यवस्था
इक्कीसवीं सदी का राष्ट्रवाद कारपोरेट संपोषित राजनीति का आवरण
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]