जाने-माने फोटोग्राफर जॉन स्टेनमेयर की खींची यह तस्वीर अमेरिका की है. तस्वीर बाइडेन की ताजपोशी से कुछ ही घंटे पहले की है. वॉशिंगटन डीसी में स्ट्रीट की इस तस्वीर को देखकर वहां की 33 करोड़ से ज़्यादा जनता का हाल पता चलता है.
यह सब हुआ है ट्रम्प के राज में, जिनके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था- ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार.’ ट्रम्प अगर दूसरी बार भी जीत जाते तो सोचिए अमेरिका का क्या हाल होता ? कल एक मित्र से बात हो रही थी. आशंका यही है कि अबकी बार फिर मोदी सरकार ने नारे को लोगों ने समर्थन दिया तो इससे भी बुरा हाल होने वाला है. देश उसी तरफ़ बढ़ रहा है. जाला बुना जा रहा है.
बहरहाल, जोसेफ बाइडेन कल अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन गए. चुनाव जीतने के बाद हर नेता आला दर्जे की तकरीरें पेश करता है. बाइडेन को कल लाइव सुनते हुए ओबामा के ‘यस वी कैन’ जैसी फीलिंग आ रही थी. अलबत्ता, बाइडेन के भाषण का अधिकांश हिस्सा देश को एकजुट रखने पर केंद्रित था और यही उनके लिए अगले 4 साल में सबसे बड़ी चुनौती होगी.
साथ में ट्रम्प राज में क्षतिग्रस्त हुए उन लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर स्थापित करना भी उनके भाषण की प्रतिबद्धता दर्शा रहा था.
बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति के भाषण का असर पड़ता है, क्योंकि स्थापित रूप से वह दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क तो है ही. असर हुआ चीन में. गायब जैक मा अचानक 1 मिनट के लिए स्क्रीन पर आए. ग्रामीण शिक्षकों से बात की और फिर गायब हो गए. अब चीनी आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि जिनपिंग सरकार का मा पर ज़्यादा दबाव नहीं है और लगता है सरकार ने जैक मा का खजाना लूटने का इरादा छोड़ दिया है.
बाइडेन भले ही प्रेम और सौहार्द की बात कर रहे हों, लेकिन चीन अभी ताक़त दिखा रहा है. उसने 28 अमेरिकी राजनयिकों पर पाबंदी लगा दी है. यह एक नए शीत युद्ध की आहट है. बस ध्रुव बदल गए हैं. बाइडेन को यह समझना होगा. दक्षिण चीन सागर, हिन्द महासागर, ईरान और उत्तर कोरिया में गर्मी बढ़ने वाली है. बाइडेन ने मुस्लिम देशों से लोगों के अमेरिका आने पर पाबंदी हटा ली है.
बाइडेन ने राष्ट्रपति की कुर्सी संभालते ही ट्रम्प सरकार के 17 आदेशों को खारिज़ कर दिया.
पेरिस जलवायु समझौते से जुड़ना और यूएन महासचिव को चिट्ठी लिखकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य के रूप में बने रहने की इच्छा जताना बदलते अमेरिका को दर्शा रहा है.
अमेरिका की नागरिकता चाहने वाले 1 करोड़ से ज़्यादा लोगों के लिए वीज़ा देने की बात हो रही है. संसद में पेश किए जाने वाले विधेयक में भारतीय IT पेशेवरों को इससे फायदा होगा.
मोदी ने बाइडेन को ताजपोशी की बधाई देते हुए व्यापार को तवज़्ज़ो दी है. भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को पीछे धकेलकर व्यापार करना बीते 7 साल में सरकार की प्राथमिकता बन चुका है. बाइडेन इसे अनदेखा नहीं कर सकते, लेकिन चीन को देखते हुए भारत पर कार्रवाई भी नहीं कर पाएंगे. हालांकि दबाव बढ़ाया जाएगा.
अमेरिकी अपना हित सबसे पहले देखते हैं. बाइडेन भी देखेंगे कि अवाम को रोटी और नौकरी मिले. अमेरिका की पूंजीवादी निजी अर्थव्यवस्था में व्यापार मज़बूत किये बिना यह नहीं हो सकता लेकिन भारत और अमेरिका के रिश्ते हाऊडी मोदी जैसे नहीं होने वाले. अगर हर समझौते में टर्म्स एंड कंडीशन्स हों तो हैरत नहीं.
क्या चीन की तरह भारत को भी अपने कट्टरपंथी हिन्दू राष्ट्रवाद को नर्म करना पड़ेगा ? क्या भारत सरकार असहमति और नागरिक अधिकारों के प्रति निष्ठुर, अलोकतांत्रिक कार्रवाई से हाथ खींच पाएगी ? कुछ सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हों तो बेहतर है.
- सौमित्र राय
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