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यह डर है या लोगों के विरोध का खौफ है ?

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यह डर है या लोगों के विरोध का खौफ है ?

दिल्ली हाई कोर्ट में वकील के पेशे से जुड़ी एक लड़की और उसकी मित्र ने अमित शाह के 200 लोगों के काफिले के विरोध में CAA-NRC के विरोध में अपने घर में रखी चादर पर नारे लिखकर लहराए

पूरा देश अब मान चुका है कि ये सबका साथ, सबका विश्वास नहीं बल्कि सबका विनाश और सबको देशद्रोही और खुद को देशभक्त बताने का जो अभियान चल रहा है, उसमें सबसे बड़ी गलती उन्होंने ही कर दी, जो ऐतबार कर लिया, अच्छे दिनों का जबकि वो सही में जुमला था. इसे जुमलेबाजी के अलावा कुछ भी नहीं आता.

पिछले रविवार को अमित शाह की प्रचार रैली जब लाजपत नगर के अंदर से गुजर रही थी तो दो लड़कियों ने अपने अपार्टमेंट की बालकनी पर जामिया औऱ जेएनयू में स्टूडेंट्स की पिटाई और एनआरसी-सीएए के विरोध में अपना बैनर विरोध स्वरूप लटका दिया. वो सिर्फ दो लड़कियां थीं -सूर्या राजप्पन और उसकी दोस्त लेकिन बैनर देखकर शाह की रैली में चल रहे गुंडों-अंधभक्त उस अपार्टमेंट के नीचे सैकड़ों की तादाद में जमा हो गए. उन्होंने दोनों लड़कियों को जमकर गंदी गालियां निकालीं, उन्होंने निर्भया जैसे नतीजे भुगतने के नारे लगाए. लाजपत नगर के लोकल लोग यह तमाशा अपनी आंखों से देखते रहे. कोई उन लड़कियों की तरफ या सचमुच की निर्भयाओं की तरफ से नहीं खड़ा हुआ. मकान मालिक ने उनसे वह घर खाली करा लिया. वह कह रहा है कि ‘मैंने उन्हें मकान किराये पर देकर गलती की थी.’

दिल्ली का जो समाज निर्भया की घटना पर जींस पहनकर बिंदी लगाकर कैंडल मार्च निकालता है, उन्हें इस घटना पर शर्मसार होना चाहिए. राजधानी के बिल्कुल बीचों-बीच हुई इस घटना को इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने विस्तार से छापा है.

यह वह कथित मर्दवादी समाज है जो किसी फिल्म अभिनेत्री के किसी प्रोटेस्ट में शामिल होने पर अपशब्द कहता है। जेएनयू में दीपिका पादुकोण के जाने पर इस नामर्द समाज ने न जाने क्या क्या टिप्पणियां कल कीं. बेशक वो अपनी फिल्म के प्रमोशन की वजह से गई लेकिन वहां उसका जाना एक रिस्क भी तो है. वो समाज जो उसे अपशब्द कह रहा है, उसकी फिल्म न देखे. आखिर सलमान खान की फिल्म दबंग 3 आई और चुपचाप उतर गई. उसकी फिल्में हिट कराने वाले युवक-युवतियां तो सड़कों पर पुलिस की लाठियां-गोलियां खा रहे थे. बॉलिवुड के इस बड़े स्टार की फिल्म पिटने से बॉलिवुड को समझ में आ गया कि ताकत की चाबी कहां है लेकिन किसी बड़े आंदोलन में किसी बड़े बॉलिवुड स्टार के आने या न आने को हम संकीर्ण नज़रिए से देखें, जो आया वो हमारा है, जो नहीं आया या आए ये उनका ज़मीर है.

इस घटनाओं पर भी गौर देने की जरूरत है. तमिलनाडु में कुछ लोगों ने अपने घर के आगे की सड़कों पर सिर्फ रंगोलियां बनाईं, 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, नए राजा के हिसाब से रंगोली बनाना भी अब अपराध है. S.R. दारापुरी, 70 साल के बुजुर्ग, रिटायर्ड IPS अपनी कॉलोनी में अपने घर के बाहर खड़े थे, सिर्फ एक कागज लेकर. जिसपर सिर्फ इतना लिखा – ‘NO NRC’. पुलिस की जीप आई, घर से उठा ले गई, धाराएं लगीं, दंगा भड़काने की. और जेल में ठूंस दिया गया

इतिहासकार रामचन्द्र गुहा बस एक कागज लेकर सड़क पर खड़े थे, उन्हें धक्का देते हुए पुलिस जेल ले गई. BHU में बेहद शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट कर रहे 25 छात्रों, प्रोफेसरों, पत्रकारों को पकड़कर जेल में डाल दिया गया. ये याद रहे कि वहां किसी भी तरह की कोई हिंसा नहीं रही थी. साफ है दूसरा मत रखने पर आपको जेल मिलना तय है. जेएनयू विश्वविद्यालय के बाहर मेन गेट को दो दिन तक एक भीड़ घेरे रही, जैसे कि कारसेवा के लिए आई हो, उसे किसी भी तरह की आलोचना पसन्द नहीं थी, उसे किसी भी तरह के नारे से दिक्कत थी, वह बस नोच लेना चाहते थे, कुचल देना चाहते थे.

बहरहाल, देश में इस समय जो माहौल बना है, वह आगे क्या रुख लेगा किसी को पता नहीं लेकिन आज जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना असम दौरा वहां के स्टूडेंट्स की धमकी के बाद खत्म करना पड़ा है, वह देश का मूड बताने के लिए काफी है. मोदी-शाह सरकार को चेहरे से स्टूडेंट्स ने नकाब उतार दिया है. ये दोनों संघी कार्यकर्ता सबकुछ कर सकते हैं लेकिन सरकार नहीं चला सकते. साबित हो चुका है. संघ के हाथों से तोते उड़ गए हैं. बस धैर्य से शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रहे. हर नया दिन इनके ताबूत में एक और कील ठोंक देता है.

  • युसुफ किरमानी एवं अन्य

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