आपने इस ट्रेंड पर गौर किया है क्या ? रिपोर्ट आ रही हैं कि राष्ट्रपति भवन के लिए प्रोटेस्ट करते हुए नागरिकों, लड़कियों को सिविलियंस ड्रेस में छिपे हुए अनजान लोगों ने भी लाठियों से ब्रूटली पीटा है. इस समय पुलिस को नागरिकों पर लाठीचार्ज करने का अधिकार तो पहले से ही मिला हुआ है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक खास संगठन के कार्यकर्ताओं की भीड़ ही पुलिस बन चुकी है. ABVP, RSS, BJP के कार्यकर्ता इस समय बिना वर्दी की पुलिस की तरह नागरिकों से ट्रीट कर रहे हैं, जैसे कि यह कार्यकर्ता भी पुलिसबल हों. यह सब लोकल विधायक, सांसद, सरकार की शह में ही हो रहा है.
1. फिलहाल इन संगठनों के कार्यकर्ता, जिसे चाहें ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते हुए कुचल दें, जिसे चाहें घेर लें. जेनएयू के मेन गेट को घेर लेने वाले लोग किस संगठन से थे, सबको मालूम है.
2. लाजपतनगर में उन दो लड़कियों को घेर लेने वाली भीड़, अमित शाह जिंदाबाद के नारे लगा ही रही थी.
3. कल गुजरात में आपने देखा ही, इंडिया टूडे की रिपोर्टर लाइव टीवी पर साफ-साफ बता रही थी कि NSUI के लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकाल रहे थे, और अचानक से ABVP के गुंडे आए, और लाठियां बरसाने लगते हैं. कंट्रोल करते समय पुलिस भी नगरिकों पर ही लाठी-डंडे बरसाने लगी.
मतलब इस कठिन दौर में नागरिकों को दो मोर्चों पर अत्याचार सहना पड़ रहा है एक पुलिस का, एक इन खास संगठनों के कार्यकर्ताओं की भीड़ का.
भारत में ये एकदम नया है. ऐसा केवल एकबार सिख दंगों के समय हुआ था. याद रहे केवल ‘दंगों’ के समय, जब पुलिस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं, दोनों में अंतर करना मुश्किल हो गया था, दोनों मिलकर किसी भी नागरिक को पीट सकते थे. लेकिन ऐसा सामान्य दिनों में कभी नहीं था. इंदिरा की इमरजेंसी के समय भी ऐसा कभी नहीं हुआ था, कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की भीड़ नागरिकों पर ‘मारो-मारो’ कहते हुए टूट पड़ती हो ! सत्ता पार्टी द्वारा, कुछ तो लिहाज हमेशा ही किया जाता था, लोकतंत्र का, संविधान का.
सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा सामाजिक व्यवस्था के रक्षकों की तरह काम करना बेहद ही खतरनाक है. इसी तरह रूस में जेकोबियन्स संगठनों के कार्यकर्ता नागरिकों को ट्रीट करने लग गए थे, ऐसे ही जर्मनी में भी नाजी पार्टी के कार्यकर्ता आम देशवासियों को पुलिस की तरह ट्रीट करने लगे थे. उसके बाद जो हुआ सबको मालूम है. ये भीड़ तंत्र की शुरुआत है, जिसका कोई अंत नहीं. ये बहुत बुरे दौर का अंदेशा है…
- श्याम मीरा सिंह
बिहार में पढ़ने वाले बच्चे जेएनयू, जामिया और डीयू को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं ?
अमित शाह जी, इससे अच्छा तो आप इमरजेंसी ही लगा दो
आप टेंशन मत लीजिए, जब तक आपके खुद की ‘सरकारी हत्या’ नहीं होती
जल्द ही हिटलर की तरह ‘अन्तिम समाधान’ और ‘इवैक्युएशन’ का कॉल दिया जाएगा
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