यक्ष – लोग मार्क्स का नाम सुनते ही बिदक क्यों जाते हैं ? उन्हें किस बात का डर है ?
युधिष्ठिर – 90 फीसदी तो इसलिए बिदकते हैं क्योकि उन्हें यह समझाया गया है कि यह कोई भूत प्रेत है, इसकी छाया से भी डरना चाहिए. पकड़ लेगा तो भगवान भी नहीं छुड़ा सकते. ये तो भगवान से भी नहीं डरता.
यक्ष – और बाकी दस फीसदी ?
युधिष्ठिर – बाकी दस फीसदी जानते हैं कि यह क्या है इसलिए वो डरते हैं, क्योंकि यह दुनिया का पहला दार्शनिक था जो कहता था कि क्या लेकर आये थे, क्या लेकर जाना है…
यक्ष – ये तो निष्काम कर्म का दर्शन है. ये तो हम सदियों से सुनते आए थे…
युधिष्ठिर – Exactly ! हम सुनते आए है पर अमल नहीं करते. यह मूर्ख अमल करवाने लगता है. दूसरा यह कारण भी है कि उसने इस निष्काम कर्म के दर्शन को उलट कर सीधा कर दिया…
- ‘क्या लेकर आये थे’ से उसकी मुराद यह है कि जब कुछ लेकर नहीं आये तो फिर सम्पत्ति बटोरने में क्यों लगते हो ? खाली हाथ जाना है तो फिर निजी संपत्ति नहीं होनी चाहिए. जो भी सम्पदा है वह समाज की है. तुम्हारे दादा, परदादा, लकड़दादा किसी जमीन का पट्टा लिखवा के नहीं आये थे.
और - यह कि उसने निष्काम कर्म को सिरे ख़ारिज कर दिया और कहा सारे निखटट्टू, परजीवी, निष्काम कर्म ही चाहते हैं क्योंकि फल वह चांपना चाहते है लेकिन कर्म कोई और करे, वो भी निष्काम. इसीलिये इस दर्शन को उलटते हुए उसने कहा कि सबको कर्म करना चाहिए और उसके फल की न केवल कामना करनी चाहिए बल्कि यह भी ensure करना चाहिए कि फल में उसके कर्म के बराबर उसे भी हिस्सा मिले.
बस यही न्याय प्रभु लोग नहीं करना चाहते इसलिए इतना बदनाम कर देते हैं कि लोग बिना जाने सुने ही नाम सुनते ही भाग खड़े होते हैं.
क्या पांडव निष्काम कर्म कर रहे थे ? वह भी तो राजपाट के लिए कट मर रहे थे. निष्काम कर्म का दर्शन तो कुरुक्षेत्र के मैदान में ही ध्वस्त हो गया था.
यक्ष – आंय !
- पंकज मिश्रा
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]