जगदीश्वर चतुर्वेदी
पीएम नरेन्द्र मोदी से यही कहना चाहेंगे कि जनता के सच को देखो, रोज अखबारों में आपकी नीतियों की असफलता के नए-नए कारनामे सामने आ रहे हैं, और एक आप हैं जो इन कारनामों पर सफाई तक नहीं दे रहे. कम से कम रोज अपने पुराने चुनावी भाषणों के कैसेट ही जबरिया टीवी चैनलों से सुनवा दीजिए. उन भाषणों में मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी को बहुत गरियाया करते थे, उनके सामने अपनी मर्दानगी के ताल ठोंककर दावे किया करते थे, और कहते थे बस मुझे एकबार पीएम बन जाने दो विकास के नए शिखर पर देश को ले जाऊंगा.
मैंने तब भी लिखा था कि मोदी झूठ बोल रहे हैं. उनको विकास का कखग तक नहीं आता, हां विनाश का पूरा पहाड़ा जरूर जानते हैं. उनके पास ताकत थी, आज उससे भी अधिक ताकत है, लेकिन आज सबसे अधिक असफल नजर आ रहे हैं. विकास के नारे ने बाजार और औद्योगिक तबाही का रास्ता अख्तियार कर लिया है. सरकारी संपदा की खुली लूट हो रही है और इसको ही विकास कहा जा रहा है.
विगत नौ साल में 22 करोड़ लोगों की नौकरी चली गयी लेकिन संघियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही. मोदी को चुनाव जीतना था, चंदा वसूली करनी थी इसलिए जमकर बड़े-बड़े कर्जे बांटकर मध्यवर्ग-उच्च मध्यवर्ग और पूंजीपतिवर्ग को निहाल किया गया. बैंकों के लाखों करोड़ रूपये मुफ्त में बांटकर अपना मोटा चंदा सीधा किया. इस सबका परिणाम आज सामने है, कर्जखोर लोग कर्ज नहीं चुका रहे और आप भी उनकी शान बघारते हुए उनको निहार रहे हैं. एक भी एक कर्जखोर को मोदी ने आजतक गिरफ्तार नहीं किया, बल्कि उलटे विगत नौ सालों में हजारों करोड़पति बैंकों से कर्ज लेकर विदेश भाग गए. देश में भयानक आर्थिक तबाही मची हुई है लेकिन मोदी को गैर जरूरी मसलों से ही फुर्सत नहीं मिलती.
चलो यही बताओ विगत नौ साल में कितना विकास किया और कितना विनाश किया. सिर्फ आंकड़े बताना. हो सके तो किसी साइबर सैल वाले को ही लगा दो झूठ बोलने के लिए, झूठे आंकड़े देने के लिए, लेकिन जान लो रिजर्व बैंक का गवर्नर और नीति आयोग का उपाध्यक्ष आपके और आपके साइबर सैल के झूठे दावों को नहीं मानते. वे रोज बयान देकर बता रहे हैं कि देश नरक में जा रहा है.
मोदी और संघियों की हिन्दूमेधा महान है. जनता चीखे-चिल्लाए इन पर कोई असर नहीं होता. जनता के दुःख, बेकारी, मंदी, निरूद्योगीकरण आदि परेशान नहीं करते. मोदी महान है, विपक्ष को मारने में लगा है, कश्मीर को मारने में लगा है. गरीबों को मारने में लगा है. इनको मारना क्या वीरत्व है ? कमजोर को मारना वीरता नहीं कायरता है. जो लोग मोदी एंड कंपनी से लड़ना चाहते हैं वे जनांदोलन और गद्य लेखन के बिना उसे परास्त नहीं कर सकते. आप गद्य लिखे बिना इस सरकार को नहीं पछाड़ सकते. जमकर गद्य लिखें. गद्य के गर्भ से ही सीधे प्रतिवादी आवाजें निकलेंगी. प्रतिवादी वीडियो बनाएं. आम जनता की पीड़ा को महसूस करें.
अब आर्थिक तबाही आपके आंगन में दाखिल हो चुकी है. देश का समूचा अर्थतंत्र नष्ट हो रहा है और फेसबुक मित्र आराम से मंत्रियों -संघियों-लेखकों के साथ फोटोसत्र कर रहे हैं. फेसबुक पर करोडों जनता के दुख को व्यक्त करने के लिए तुम्हारे पास एक भी पंक्ति नहीं होती, जबकि इस देश की करोडों जनता के टैक्स से अर्जित धन के बलबूते पर तुमको तनख्बाह मिलती है.
मीडिया से पारिश्रमिक मिलता है, तुमको तनख्वाह न तो सरकार देती है और न कोई मीडिया घराने का मालिक देता है, न कोई बैंकर देता है, यह तनख्वाह तुमको जनता के पैसों से मिलती है और एक तुम हो जो निर्लज्जों की तरह रोज मोदी सरकार की अंधी हिमायत में व्यस्त हो. कम से कम रोटी देने वाली जनता के दुःखों को देखकर तुम कुछ तो शर्म करो. यह देश जनता का है, मोदी-आरएसएस-कांग्रेस आदि किसी दल विशेष का नहीं है. अफसोस है तुम अभी तक हिन्दू राष्ट्रवाद के नशे से बाहर नहीं निकले हो.
जहर उगलने के कु-संस्कार
मुझे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ जहर उगलने वालों पर तरस आता है. कभी सोचता हूं यदि इन ‘भलेमानुषों’ की मान ली जाय, हमारे समाज से सभी धर्मनिरपेक्ष विचार, कलाएं, साहित्य रुप, राजनेता और उनके विचार खत्म कर दिए जाएं, मुसलमानों-सिखों-ईसाईयों के योगदान को खत्म कर दिया जाय, सिर्फ हिन्दू और हिन्दू समाज में रहें, हिन्दू विचार, सृजन, राजनेता, सामाजिक नेता और कर्म को ही रहने दिया जाय तो भारतीय समाज कितना विद्रूप और जंगली लगेगा.
इन ‘भलेमानुषों’ को कौन समझाए धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ सभ्य होना है. जो सभ्य है वह धर्मनिरपेक्ष है. जो असभ्य है वह न तो हिन्दू हो सकता है और न धर्मनिरपेक्ष हो सकता है.
संघ ने युवाओं में एक असहिष्णु समूह तैयार किया है जो विवेक से घृणा करता है, उन्माद से प्यार करता है. उन्माद को ही सच मानता है. दुर्भाग्य है कि वे नहीं जानते या जानबूझकर कर रहे हैं कि उन्माद ही कथन है, बयान है, तर्क है, जनमत है. मित्रों, उन्माद तो सामाजिक अपराध है और मनुष्यत्व की मृत्यु है. यह लोकतंत्र के लिए एडस है.
संधियों की मानसिकता का उदाहरण है अनंतमूर्ति की मृत्यु पर पटाखे छोड़कर जश्न मनाना. उससे ये लोग अपनी वर्गीय ग्लोबल वैचारिक पहचान दर्शा रहे थे. अजातशत्रु व्यक्ति की मौत पर जश्न तो सिर्फ जल्लाद और फासिस्ट ही मना सकते हैं. मौत पर जश्न मनाने, पटाखे छोड़ने की संस्कृति असल में तालिबान के प्रभाव से भारत में आई है. इस संस्कृति की ग्लोबल जड़ें हैं. इस संस्कृति का न तो हिन्दू परंपराओं से सम्बन्ध है और न भारतीय परंपरा से सम्बन्ध है. यह तो तालिबान परंपरा है. हम सबके लिए चिन्ता की बात है कि तालिबान का भारत में असर हो रहा है.
संघ परिवार की आपत्तिजनक गतिविधियों में से एक है उसका अहर्निश मुस्लिम विद्वेष और सामाजिक विभाजन के मसलों को हवा देना. साथ में हिन्दुत्व के आधार पर समाज को एकजुट करना और यह सब वे अबाधित ढ़ंग से कर रहे हैं. प्रिंट में इस तरह के मसलों पर प्रचार से सीमित क्षेत्र में असर होता था पर इंटरनेट पर असीमित क्षेत्र पर असर होता है.
भारत सरकार को संघ परिवार और इसी तरह के अन्य फंडामेंटलिस्ट और आतंकी गुटों की प्रचार सामग्री को तेजी से नेट से हटाने या ब्लॉक करने का काम करना चाहिए और अहर्निश चौकसी बढ़ाकर रीयल टाइम में हस्तक्षेप करने वाली मशीनरी खड़ी करनी चाहिए. देश की सीमाएं जिस मुस्तैदी से सेनाएं देखती है ठीक उसी मुस्तैदी और उससे भी ज्यादा सजगता के साथ इंटरनेट सामग्री की निगरानी, छंटाई, प्रतिबंध और कानूनी एक्शन के बारे में सोचा जाना चाहिए. सरकार इस निगरानी के काम से अब तक भागती रही है. इसका ही यह कु-परिणाम था कि नेट का विभाजनकारी ताकतें इस्तेमाल करने में सफल रही हैं.
टाइम्स ऑफ इण्डिया (2012) में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पाक से आयी घृणा सामग्री का 20 फीसदी हिस्सा भारत में हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अपलोड किया था और बड़े पैमाने पलायन और भय पैदा करने वाले एमएमएस भी उन्होंने भेजे थे.
सोशल मीडिया-इंटरनेट पर हिन्दुत्ववादी यूजरों के खिलाफ राजनीतिक सचेतनता बेहद जरूरी है. वरना ये लोग देश को सामाजिक विभाजन और हिंसाचार का स्थायी अड्डा बना देंगे. हम भारत सरकार से मांग करते हैं कि सभी किस्म के घृणा सामग्री वाले फेसबुक, ब्लॉग और ट्विटर एकाउंट तुरंत बंद करे या उनको ब्लॉक करे और जिन लोगों ने ऐसी सामग्री दी है उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करे.
फेसबुक आदि नेट माध्यमों को सामाजिक विभाजन और घृणा के प्रचार का माध्यम नहीं बनाने दे. हम सब मिलकर ऐसे लोगों को नंगा करें जो घृणा फैला रहे हैं. लोकतांत्रिक हकों के लिए लड़ना, परिवर्तन के लिए संघर्ष करना, सामाजिक परिवर्तन के विचारों का प्रचार करना संविधान सम्मत है, कानून सम्मत है, लेकिन घृणा और सामाजिक विभाजन का प्रचार आपराधिक कृत्य है और इसकी फेसबुक आदि माध्यमों पर सरकार इजाजत न दे और निगरानी बढ़ाए.
असल में भारत बदल रहा है. जाति और धर्म के क्षेत्र में मिश्रित जाति और मिश्रित धार्मिक परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इससे पुराने ढांचे पर भी दबाव बढ़ रहा है. वो टूट रहा है. समाज में मिश्रित सामाजिक और धार्मिक संरचनाएं जन्म ले रही हैं.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]