Home गेस्ट ब्लॉग विश्व बैंक ने की दुनिया में मंदी आने की घोषणा, क्या हम लोग इसका मतलब समझ पा रहे हैं ?

विश्व बैंक ने की दुनिया में मंदी आने की घोषणा, क्या हम लोग इसका मतलब समझ पा रहे हैं ?

3 second read
0
0
240
Ravindra Patwalरविन्द्र पटवाल

विश्व बैंक ने दुनिया में मंदी आने की घोषणा कर दी है. उसके अनुसार पूरी दुनिया के बैंक लगातार बैंक की ब्याज दरों में वृद्धि कर बढ़ती महंगाई को रोकने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस सब के बावजूद भी महंगाई नहीं रुकेगी. विश्व बैंक ने इस बात की ओर भी इशारा किया है कि यह कई दशकों बाद देखने को मिल रहा है कि दुनिया भर के बैंकों के द्वारा लगभग लयबद्ध तरीके से ब्याज दरों में वृद्धि की जा रही है. इसके पीछे की कहानी ठीक ठीक तो नहीं पता, लेकिन यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किसी बड़े अनिष्ट की ओर संकेत कर रहा है.

अभी पिछले 2 साल दुनिया कोरोनावायरस से उबर भी नहीं पाई है लेकिन दुनिया भर के देशों में जान माल के नुकसान से भी ज्यादा नुकसान करोड़ों लोगों के एक बार फिर से गरीबी की दलदल में फिसलने की ओर हुई है. भारत जैसे देश ने जहां पिछले 30 वर्षों के प्रयासों से 20 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने में सफलता पाई थी, वह एक बार फिर से 2 साल के भीतर ही उसी दशा को प्राप्त हो गया है.

कोरोना का संकट जैसे ही खत्म हुआ, यूक्रेन रूस संघर्ष शुरू हो गया. इसके पीछे अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो गुटों के द्वारा जबरन रूस की सीमा पर अपनी फौजों को स्थापित करने की चेष्टा थी, जिसका रूस पिछले कई वर्षों से विरोध कर रहा था. यूक्रेन के साथ संयुक्त सैनिक युद्ध अभ्यास और उसे जल्द ही यूरोपीय संघ और नाटो में मिलाने की घोषणाएं करके पिछले 7 महीनों में हमने देखा है कि दुनिया के ऊपर इस युद्ध का कितना भारी बोझ लाद दिया गया है.

जब बेहद धनी और विकसित यूरोपीय देशों में महंगाई और ऊर्जा संकट के कारण भारी तबाही मची हुई है, तो सोचिए अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और भारतीय उपमहाद्वीप का क्या हाल होगा ? लेकिन चूंकि यहां के सैकड़ों करोड़ लोगों की कोई आवाज ही नहीं है, इसलिए वह आवाज किसी को सुनाई नहीं देती. ऊपर से अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से लगातार ब्याज दरों में वृद्धि और उसका इशारा पाते ही यूरोपीय देशों और भारत जैसे देशों में आरबीआई के द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से महंगाई को रोकने कि कुचेष्टा का प्रतिफल यही हो रहा है कि भारत में बड़ी तेजी से एक तो डॉलर खत्म हो रहा है और दूसरा महंगाई जस की तस बनी हुई है.

डॉलर के मुकाबले रुपया 80 से नीचे बनाए रखने के लिए अभी तक के सारे प्रयास विफल साबित हुए हैं. यह एक तरह से देश के सर्वाधिक गरीब लोगों को जीते जी मार डालने की कोशिश है. भारत कुल मिलाकर चार बड़े हमलों को झेल चुका है, जिसमें पहला नोटबंदी, दूसरा जीएसटी, तीसरा कोरोनावायरस महामारी और अब महंगाई के साथ-साथ उच्च ब्याज दर है.

कहीं यह चीन के दुनिया में नंबर एक बन जाने को विफल करने की सोची समझी कोशिश तो नहीं है ? क्योंकि चीन की नीति इसके बिल्कुल उलट चल रही है. वहां पर ब्याज दरों को बढ़ाने की बजाय घटाया जा रहा है. लगता है चीन ने यह मान लिया है कि अब निर्यात पर आधारित उसकी अर्थव्यवस्था के बजाय उसे अपने घरेलू बाजार पर ही ध्यान देना होगा और उसमें निवेश के जरिए उपभोक्ताओं को अधिक से अधिक खरीद के जरिए विकास दर को बनाए रखना होगा.

इस कुचक्र में यदि भारत जैसे विशाल देश, विकसित विकासशील देश बड़े पूंजीपति धनी देशों की नकल करेंगे तो बड़े-बड़े पूंजीपतियों और उच्च मध्यवर्ग तो जरूर कुछ कष्ट सहकर भी बच जाएगा, लेकिन 120 करोड़ लोगों के लिए तबाही का यह सबब बनने जा रहा है. क्या हम लोग इस बात को समझ पा रहे हैं ?

Read Also –

 

[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…