रक्षा बंधन के दिन, 11 अगस्त, 2022, मज़दूर बस्ती, आज़ाद नगर में रहने वाली ग़रीब, दलित, विधवा महिला की 11 वर्षीय मासूम गुड़िया, बस्ती में पब्लिक शौचालय ना होने की वज़ह से रात 8 बजे, रेल पटरियों के किनारे शौच को गई और फिर अगले दिन उसकी लहू-लुहान लाश उसकी किराए की झोंपड़ी में वापस आई. बस्ती में शौचालय होता तो गुड़िया आज जिंदा होती.
ये है, इस देश की हक़ीक़त, जिसका प्रधानमंत्री छींट की पगड़ी बांधकर, हाथ लहराकर, ऐतिहासिक लाल किले से चीखकर बोलता है, ‘दुनिया आज हमारी तरफ़ देख रही है. हमें समूची दुनिया को रास्ता दिखाना है, अब हमें रोका नहीं जा सकता’, शर्म इन्हें मगर नहीं आती !!
उसके एक साल बाद भी हत्यारों का कोई पता नहीं, कहीं कोई सुराग नहीं. क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फ़रीदाबाद ना उस दिन अपना फ़र्ज़ भूला था, जब 15 अगस्त दोपहर बाद हुई विशाल सभा में, 16 अगस्त को डीसी कार्यालय को घेर लेने का फैसला हुआ था, लेकिन उसी रात तलाशी के बहाने चले, पुलिस दमन से डरकर सभा का आयोजक संगठन पीछे हट गया था, और ना आज उस घटना को एक साल हो जाने के बाद भूला है.
उसी जन-आंदोलन की आक्रोशपूर्ण ऊर्जा से मज़दूर-नगरी फ़रीदाबाद की धरती से ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ नाम के मेहनतक़शों के अपने जन-संगठन का उद्भव हुआ था. रविवार, 13 अगस्त को शाम 5 बजे, आज़ाद नगर तथा फ़रीदाबाद में अन्य इलाक़ों के मज़दूर, जिनमें महिलाओं की तादाद पुरुषों से ज्यादा थी, लाल झंडे-बैनर-तख्तियां लिए रामशरण चौक पर इकट्ठे होने शुरू हुए. 6 बजे एक शानदार, अनुशासित मोर्चा, धीरे-धीरे आगे बढ़ा और लखानी चौक पर पहुंचकर सभा में बदल गया.
मज़दूर जब भी, अपनी आर्थिक मांगों के लिए ना लड़कर, राजनीतिक संघर्ष चलाते हैं, किसी सामाजिक मुद्दे पर मोर्चा निकालते हैं तो सड़क के किनारे खड़े होकर देख रहे लोगों का समर्थन एक दम अलग ही रूप में नज़र आता है. रामशरण चौक और लखानी चौक के बीच, डाबरी मोड़ पर मौजूद सैकड़ों मज़दूरों का उत्साहपूर्ण रेस्पोंस देखकर मोर्चा ठहर गया. धीरे-धीरे, मोर्चे में मौजूद मज़दूर और तमाशबीन मज़दूर एक होकर नारे लगाने लगे और फिर एकाकार हो गए. उनमें से कई मज़दूर तो उसके बाद लखानी चौक पर हुई सभा में अंत तक हाज़िर रहे.
महिलाओं के मुद्दों पर समाज की संवेदनशीलता को, मोदी सरकार के बलात्कारियों को बचाने के कारनामों ने इस क़दर जगा दिया है कि लखानी चौक पर भी आते-जाते ऑटो और अपने वाहनों से जा रहे लोग, थोड़ी देर को ही क्यों ना हो, सभा में शिरक़त करते रहे. कामरेड्स नरेश, सत्यवीर सिंह, कविता, पूनम, रेखा, रजनीश तथा शेरसिंह ने सभा को संबोधित किया.
मोर्चे को कवर कर रहे, शहर के, जाने-माने जन-पत्रकार शेखर दास ने सभा में गूंज रहे नारों के थमते ही सवाल किया, ‘आज 13 अगस्त है, जिसे देखो वह हाथों में तिरंगा लिए घूम रहा है, एक पार्टी, तिरंगा यात्रा भी निकाल रही है; क्या बात है कि आपकी सभा में तिरंगे की जगह, लाल झंडे लहरा रहे हैं ?’
वक्ताओं ने इस सवाल के जवाब के साथ ही बोलना शुरू किया. हमारे हाथों में लाल झंडे इसलिए हैं क्योंकि हम सरकार को बताना चाहते हैं कि असली आज़ादी आज, नशे का व्यापर करने वालों, दारू के ठेकेदारों, जमाखोरों, बलात्कारियों को मिली हुई है. मज़दूरों की आज़ादी अभी अधूरी है. प्रमाण हाज़िर है, पूरा एक साल हो गया और मासूम गुड़िया के हत्यारे खुले घूम रहे हैं. साधन-संपन्न पुलिस उन्हें आज तक नहीं पकड़ पाई.
76 साल की आज़ादी और ‘अमृत काल’ से मज़दूरों को क्या मिला, सरकार बताए ? पीड़ित महिला दलित समाज से आती हैं. हरियाणा सरकार के समाज कल्याण विभाग से वह ₹8.25 लाख रु. पाने की हक़दार है, लेकिन हत्यारों को पकड़ने में, हरियाणा पुलिस की विफलता से, इस मामले में एससी-एसटी एक्ट नहीं लगा और ग़रीब, विधवा महिला मज़दूर को उसका हक़ नहीं मिला. इसमें उसका क्या क़सूर है ? साथ ही बस्ती में खौफ़ है.
एक साल के हमारे आंदोलन से पुराना शौचालय ठीक हुआ और एक 10 सीट वाला नया शौचालय बनना शुरू हुआ है, लेकिन 12,000 की आबादी के लिए ये नाकाफी हैं. मज़दूर बस्तियों में सरकार एक पैसा भी ख़र्च करने को क्यों तैयार नहीं होती ? मज़दूर भी, उपभोग की हर वस्तु पर उसी दर से जीएसटी अदा करते हैं, जिस दर से इस देश का सबसे बड़े धन-पशु अडानी और अंबानी अदा करते हैं.
हमारे हाथों में ये लाल झंडे इसलिए लहरा रहे हैं, और लहराते रहेंगे, क्योंकि हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हम भी इंसान हैं. हम ये अन्याय बर्दास्त नहीं करेंगे. हमारी बच्चियों के शरीर, इस तरह लहु-लुहान होकर घर नहीं आएंगे. हमारी बच्चियां दरिंदों का शिकार नहीं बनेंगी. सरकार को यह अन्यायपूर्ण भेदभाव बंद करना होगा. हम जिंदा इंसान हैं. हम लड़ना जानते हैं. अपना हक लेना जानते हैं. सुई से लेकर जहाज तक और अनाज से लेकर ताज़ तक, सब हमारी मेहनत से बने हैं. मोदी के नए महल के साथ, सत्ताधीशों के सभी महल-चौबारे, ये ऊंची-ऊंची अटारियां हमारे ही श्रम की गवाही के दस्तावेज़ हैं.
हमारे ही श्रम की चोरी कर, मंत्री-संत्री ऐश करते हैं, सरमाएदारों के क़र्ज़ माफ़ करते हैं, उन्हें रियायतों के तोहफ़े अता फ़रमाते हैं. आज़ादी के नाम पर, मज़दूरों के साथ, बहुत बड़ा धोखा हुआ है. वे ठगे गए हैं. ये आज़ादी अडानी-अंबानी, को, राम रहीम- बृज भूषण को, मोनू मानेसर-बिट्टू बजरंगी और उन्हें पालने-पोसने वाले उनके आक़ाओं को मिली है. मज़दूरों को आज़ादी उस दिन मिलेगी, जिस दिन उनकी बस्तियों में सभी नागरिक सुविधाएं होंगी, शिक्षा-चिकित्सा का समुचित इन्तेजाम होगा. यही नहीं, जिस दिन उनके उत्पादन का मालिकाना, उनके हाथ में होगा, उनका राज़ होगा, मज़दूरों को असली आज़ादी उस दिन मिलेगी. मज़दूर अपने संघर्षों के दम पर उस असली आज़ादी को भी हांसिल करके रहेंगे.
मोर्चे-सभा में शामिल मज़दूर, हाथों में ये तख्तियां लिए हुए थे – ‘मज़दूर, महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ना जानते हैं’, ‘फासिस्ट जिस पर हमला करेंगे- मज़दूर उसके साथ लड़ेंगे’, बलात्कारियों-हत्यारों को बचाना बंद करो- मोदी सरकार शर्म करो’, ‘आज़ाद नगर की गुडिया को न्याय दिलाकर रहेंगे’, ‘फ़ासीवाद का एक जवाब- इंक़लाब जिंदाबाद’, ‘नशे की लत को ठोकर मारो- अशफ़ाक़-बिस्मिल की राह चलो’, ‘महिला सम्मान पर हमला नहीं सहेंगे- मिलजुलकर संघर्ष करेंगे’, ‘नशाखोरी और गंदे विडियो पर रोक लगाओ’, ‘धर्म के नाम पर बांटने वालों को उनकी औक़ात दिखाओ’, ‘बिन हवा ना पत्ता हिलता है- बिन लड़े ना कुछ भी मिलता है’, ‘महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करो’, ‘कौन बनाता हिंदुस्तान- भारत का मज़दूर किसान’, ‘मज़दूर जब भी जागा है- इतिहास ने करवट बदली है’.
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा ने शहर के सभी मज़दूरों-मेहनतकशों और जागरुक, संवेदनशील नागरिकों से आह्वान किया कि हर साल, 11 अगस्त को ‘महिला संघर्ष दिवस’ के रूप में मनाया जाए. सभा में ये शपथ भी ली गई. ‘मैं शपथ लेता हूं कि मैं हमेशा महिलाओं का सम्मान करूंगा. महिलाओं के साथ ग़ैरबराबरी और दमन-उत्पीड़न का, चाहे वह परिवार के अंदर हो या बाहर, पुरज़ोर विरोध करूंगा. महिला सम्मान के लिए ज़ारी संघर्षों का हिस्सा बनूंगा. मैं ऐसे समाज के निर्माण के आंदोलनों का भी हिस्सा बनूंगा, जो प्यार और परस्पर सम्मान पर आधारित हो, जहां जाति, धर्म और लिंग भेद ही नहीं, बल्कि आर्थिक गैर-बराबरी आधारित भेद-भाव एवं उत्पीड़न भी ना हो.’
5 बजे, मोर्चा शुरू होने से, शाम 7.30 बजे सभा के अंत तक, लाल झंडे लहराते रहे और ज़ोरदार नारे गूंजते रहे. क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, हरियाणा सरकार से मांग करता है कि –
- मासूम गुड़िया के हत्यारों को, पुलिस एक साल बाद भी नहीं पकड़ पाई. पुलिस के निकम्मेपन का ठीकरा, सदमे से टूट चुकी, ग़रीब, दलित, महिला मज़दूर के सर पर ना फोड़ा जाए. समाज कल्याण विभाग से, उनका हक़, रु 8.25 लाख की आर्थिक मदद, उन्हें तुरंत उपलब्ध कराई जाए.
- अपनी मासूम बच्ची की ऐसी दर्दनाक मौत से, पीड़ित महिला पूरी तरह टूट चुकी हैं. वे किराए के घर में रहती हैं. उन्हें एक घर उपलब्ध कराया जाए अथवा घर का किराया हमेशा के लिए सरकार भरे.
- अगर पुलिस अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ है, तो यह जांच सीबीआई को सोंपी जाए.
- आज़ाद नगर, सेक्टर 24 में मौजूद पुराना शौचालय तथा नया बन रहा शौचालय, ‘चन्द्रिका प्रसाद स्मारक सामुदायिक भवन’ के साथ संलग्न हैं. यह सामुदायिक भवन खंडहर हो चुका है, जबकि वहां बच्चों का एक स्कूल भी चलता है. कभी भी, कोई गंभीर हादसा हो सकता है. नगर निगम आयुक्त ने इस सामुदायिक केंद्र के जीर्णोद्धार का आश्वासन दिया था. दुःख की बात है कि मज़दूर बस्तियों में काम होना हो तो, आश्वासन और कार्यान्वयन के बीच बहुत ही लंबा वक़्त लगता है. इस सामुदायिक केंद्र की मरम्मत, वाइट वाश, रंग-रौगन तत्काल कराया जाए.
- फरीदाबाद से सत्यवीर सिंह की रिपोर्ट
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