Home गेस्ट ब्लॉग चंद्रयान बनाने वाले मज़दूरों (वैज्ञानिकों) को 17 महीने से वेतन नहीं

चंद्रयान बनाने वाले मज़दूरों (वैज्ञानिकों) को 17 महीने से वेतन नहीं

40 second read
0
0
303
चंद्रयान बनाने वाले मज़दूरों (वैज्ञानिकों) को 17 महीने से वेतन नहीं
चंद्रयान बनाने वाले मज़दूरों (वैज्ञानिकों) को 17 महीने से वेतन नहीं

बंगाल की खाड़ी में, आंध्रप्रदेश समुद्री तट के नज़दीक स्थित द्वीप श्रीहरिकोटा से 13 जुलाई को दोपहर बाद, 2 बजकर 35 मिनट 17 सेकंड पर एक धमाके, चिंगारियों और धुंध के बीच से एक सफ़ेद रंग का खुबसूरत यान, आकाश को चीरता चला गया. नज़ारा बेहद रोमांचकारी था. विज्ञान की उपलब्धियां, एक अज़ीब रोमांच पैदा करती हैं. ये चंद्रयान-3, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलकर स्वयं एक छोटे उपग्रह की तरह बर्ताव करते हुए पृथ्वी के चक्कर लगाता रहेगा.

अंतरिक्ष केंद्र के वैज्ञानिक, उसकी गति और दिशा को नियंत्रित करते रहेंगे. उसका घेरा धीरे-धीरे बड़ा होता जाएगा और फिर पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल जाएगा. अनंत आकाश में, 3.84 लाख किमी दूर हमारा एक प्यारा पड़ोसी है, चन्द्रमा. वैज्ञानिक फिर चंद्रयान-3 को हमारे इस खूबसूरत पड़ोसी की कक्षा में प्रवेश कराएंगे. उसके बाद, यह, चन्द्रमा के चक्कर लगाना शुरू कर देगा.

चक्कर की परिधि, धीरे-धीरे छोटी होती जाएगी और वह चन्द्रमा के नज़दीक पहुंचता जाएगा. 42 दिन की आकाश-यात्रा के बाद, 23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर हमारा चंद्रयान-3 एक पैराशूट से ‘चंदा मामा’ का मेहमान बन जाएगा.

चंद्रयान-3 के सफ़ल प्रक्षेपण के साथ ही ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. ख़ुशी में आत्मविभोर हो वैज्ञानिक और कर्मचारी एक दूसरे को बधाई देने लगे. देश भर में लोगों ने मगन होकर, ये अद्भुत नज़ारा देखा. तालियां बजाने और खिलखिलाकर बधाइयां देने वालों में वे 3,000 इंजिनियर और मज़दूर भी शामिल थे, जिन्हें पिछले 17 महीने से वेतन नहीं मिला.

ये सभी कर्मचारी रांची स्थित केंद्र सरकार के उपक्रम, ‘हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन (एचईसी)’ में काम करते हैं. फ़रवरी 2022 के बाद, इन कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. इसके बावजूद इन्होंने इस चंद्रयान परियोजना का आधार अति महत्वपूर्ण एवं जटिल, ‘मोबाइल लांच-पैड’, दिसंबर 2022 में ही तैयार कर भेज दिया था. ‘हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन’, केंद्र सरकार का इदारा है, जो भारी उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आता है.

यह सरकारी विभाग अपना ख़र्च चलाने के लिए कई सालों से केंद्र सरकार से 1,000 करोड़ रु. की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार कह रही है, ‘पैसे नहीं हैं, क़र्ज़ लेकर काम चलाओ’. क़र्ज़ मिलना बंद हो गया, इसलिए वेतन मिलना बंद हो गया. प्रक्षेपित होते उपग्रह की रोमांचकारी तस्वीरों को लगातार ट्वीट करने वाले मंत्री-संत्री और इस उपलब्धि का श्रेय हथियाने को बेताब मोदी सरकार की गैरज़िम्मेदारी का ये आलम है कि ढाई साल से एचईसी में कोई चेयरमैन भी नियुक्त नहीं हुआ है. ख़ुद को ‘विश्वगुरु’ समझने की अकड़ में लोगों को भावविभोर कर वोट ठगने के मंसूबे पालने वाली मोदी सरकार, इस वैज्ञानिक उपलब्धि को एक झुनझुने की तरह इस्तेमाल करने वाली है.

3.8 टन के चंद्रयान-3 को इतनी तेज़ गति से छोड़ने के लिए की वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल जाए; बहुत ही शक्तिशाली लांच पैड की ज़रूरत होती है. कुल 615 करोड़ की इस परियोजना की क़ामयाबी के लिए, अत्याधुनिक लांच पैड, जीएसएलवी-मार्क-3 (एल वी एम 3) की भूमिका निर्णायक थी. रांची स्थित हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन के इंजीनियरों और दूसरे स्टाफ ने समय सीमा से पहले ही इसे तैयार कर लिया था. उसके सफलतापूर्वक प्रक्षेपण पर उन्होंने भूखे पेट, तालियां बजाई थीं और गर्व से एक-दूसरे को बधाई दी थी.

चंद्रयान-3 परियोजना की शानदार क़ामयाबी के लिए वैज्ञानिकों और परियोजना से सम्बद्ध सभी मज़दूरों को बधाई देनी तो बनती ही है, लेकिन ‘विश्वगुरु देश’ के नागरिक होने के नशे में झूमने से ख़ुद को संभालते हुए, इससे सम्बद्ध तीन अति महत्वपूर्ण पहलुओं पर, गंभीर चिंतन-डिबेट करना भी हमारी ज़िम्मेदारी है.

पहला; मोदी सरकार की अघोषित नीति है (अधिकतर नीतियां अघोषित ही हैं), कि योजनाबद्ध तरीक़े से सरकारी निकायों को आर्थिक रूप से बीमार बनाते जाओ और फिर ‘सरकारी विभाग निकम्मे होते हैं’, कहकर उसे अपने किसी प्रिय धन-पशु को सौंप दो. सरकारी इदारा जितना ज्यादा बीमार होगा, उतने ही कम दाम में बिकेगा और उसका ख़रीदार धन-पशु उतना ही ज्यादा खुश होगा और (मोदी एंड कंपनी को-सं.) उतनी ही ज्यादा बख्शीश देगा !!

मोदी-पूर्व काल के सबसे कमाऊ सरकारी इदारे, जैसे ओएनजीसी, एनटीपीसी और गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड, जो नव-रत्न कहलाते थे, तेज़ी से बीमार होते जा रहे हैं. पॉवर और गैस, इस युग की सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं. इन्हीं के ग्राहक धन-पशु, मोदी सरकार के सबसे लाड़ले हैं. पॉवर और गैस के इन इदारों को कौन ख़रीदेगा ? उत्तर हर कोई जानता है. अडानी और अंबानी आपस में बांट लेंगे.

‘राकेट लॉन्चिंग’ के भी निजीकरण की संभावनाएं मौजूद हैं. सरकार, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश को मंजूरी दे चुकी है. ‘अडानी डिफेन्स सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजी’ नाम की कंपनी मोदी सरकार बनने के एक साल होने से पहले ही, 25 मार्च 2015 को स्थापित हो चुकी है. क्या पता, इसीलिए ‘एचईएल’ का ‘बीएसएनएल’ बनाया जा रहा हो !!

यदि कोई ऐसा सरकारी निकाय है, जिसे कोई भी सेठ ख़रीदने को तैयार नहीं, तब भी उसे बीमार किया जाना ज़रूरी है, क्योंकि तब ही उसे हमेशा के लिए बंद किया जा सकेगा. निकाय को बीमार बनाने के दो तरीक़े हैं. उसे धन की व्यवस्था मत करो, अपने आप भूखा मर जाएगा. दूसरा तरीका है, उसमें महत्वपूर्ण पदों पर भर्तियां मत करो. ऐसे सरकारी निकायों के कर्मचारी जल्दी ही समझ जाते हैं कि उनकी नौकरी ख़तरे में है. ये सफ़ेद-पोश कर्मचारी अन्याय के विरुद्ध लड़ने की आदत तो कब से भूल चुके हैं. इसलिए, जो भी कहीं दूसरा जॉब पाता रहता है, छोड़कर जाता रहता है.

जन-मानस, सरकारी निकाय बेचने को देश के साथ सरकार की ग़द्दारी ना समझें, इसलिए अब इन्हें ‘बेचना’ नहीं, बल्कि ‘विनिवेश करना’ कहा जाता है. केंद्र सरकार में बाक़ायदा ‘विनिवेश मंत्रालय’ मौजूद है. जनवरी 31, 2023 की टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार ने अपने 9 साल के कार्यकाल में अब तक 4.07 लाख करोड़ रुपये विनिवेश द्वारा अर्जित किए हैं. मुमकिन है, रांची स्थित हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन भी ‘सेल काउंटर’ पर रखा जाना हो.

दूसरा महत्वपूर्ण विषय, जिस पर ‘चंद्रयान परियोजनाओं’ की सफलता, चर्चाओं की एक श्रृंखला शुरू कर सकती थी, वह है आकाश सम्बन्धी, अवैज्ञानिक धारणाओं, कल्पनाओं, अंध-विश्वासों, मूर्खताओं, अज्ञानताओं को, समाज की ज़हनियत से दूर कर, उनकी जगह तर्क़पूर्ण, वैज्ञानिक सोच प्रस्थापित करना. आकाश के बारे में ज्ञान की सीमाओं ने परलोक सम्बन्धी अंध-विश्वासों को सबसे गहरा जमाया और फैलाया है.

ऊपर आकाश में कहीं स्वर्ग-नरक-ख़ुदा-ईसा मसीह का दरबार लगता है, जहां देवताओं का पूरा स्टाफ बैठता है और पृथ्वी पर मौजूद 700 करोड़ लोगों के दैनंदिन के कार्यकलापों का हिसाब-क़िताब रखा जाता है. चांद पर परियां रहती हैं. ये सब किस्से, कहानियों की तरह पढ़ने के लिए ठीक हैं, लेकिन इनका असलियत से दूर-दूर तक कहीं कोई सम्बन्ध नहीं. ऐसा कोई ‘परलोक’ कहीं नहीं है.

एक अनंत, असीमित आकाश है, जिसमें मौजूद असंख्य ग्रह-उपग्रह, सौर्य मंडल, आकाश गंगाएं, अपने परस्पर गुरुत्वाकर्षण की बदौलत, अपनी निर्धारित कक्षा में स्थित हैं. अपनी नैसर्गिक द्वंद्वात्मक गति से गतिशील हैं. पृथ्वी से चन्द्रमा तक के 3.84 लाख किमी के रास्ते में, कहीं कोई स्वर्ग-नरक-ख़ुदा का दरबार किसी को नहीं मिला.

मौजूदा सत्ता व्यवस्था ऐसी उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धियों में भी, ये ज़रूर सुनिश्चित करती है कि समाज में मौजूद पाखंड अक्षुण्ण रहे, उसे आंच ना आए. चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण से पहले, 26 घंटे की काउंट-डाउन के दौरान परियोजना से जुड़े सारे वैज्ञानिक, इसरो के चेयरमैन, एस. सोमनाथ और सचिव शांतनु भटवाडेकर के नेतृत्व में, चंद्रयान-3 के नमूने के साथ पूजा-अर्चना के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर गए – ‘हमारा चन्द्रमा का मिशन क़ामयाब हो, इसीलिए हम भगवान से प्रार्थना करने आए हैं.’

इस प्रेस वार्ता और उससे पहले चंद्रयान-3 के नमूने को घेरकर बैठे भगवाधारी झुण्ड द्वारा की जा रही पूजा-अर्चना के पूरे पाखंड का लाइव प्रसारण हुआ, जिससे लोगों में पाखंड का स्तर कम ना होने पाए. उनमें विज्ञान पर भरोसा क़ायम ना हो. विज्ञान पढ़ते वक़्त भी उनके दिमाग में इस सच्चाई का प्रवेश ना होने पाए कि कोई भी घटना किसी वज़ह से ही घटती है. जो घट रहा है, सब किसी नियम के तहत घट रहा है. सब इहलौकिक है, कुछ भी अलौकिक नहीं.

विज्ञान के छात्रों को, स्कूल-कॉलेज में पढ़ते हुए लगता है कि ये सब मात्र पढ़ने की बातें हैं. परीक्षा में सवाल का जवाब लिखकर अच्छे अंक पाने की बातें हैं. इनका जीवन से कोई वास्तविक सम्बन्ध नहीं, क्योंकि होगा वही जो तिरुपति बालाजी भगवान चाहेंगे !! संसार का अंतिम ज्ञान तो इन भगवाधारी पण्डे-पुजारियों को प्राप्त हो चुका है. बड़े से बड़ा वैज्ञानिक अथवा इंजीनियर भी, आख़िर में, इन्हें ही रिपोर्ट करता है.

तीसरा सबसे महत्वपूर्ण विषय जिस पर चंद्रयान-3 से जुड़े कर्मचारियों को पिछले 17 महीने से वेतन ना मिलने की हकीक़त जानकर समाज में तीखी चर्चा-डिबेट शुरू हो जानी चाहिए थी, वह है कि मोदी सरकार का वैज्ञानिक शोध के विषय पर मूल-नीति क्या है ? सरकार का मानना है कि वैज्ञानिक शोध, उच्च शिक्षा में निवेश करने की ज़रूरत ही नहीं है. कितने ही एम फ़िल, पीएचडी कर रहे छात्रों को छात्रवृत्तियां मिलनी बंद हो चुकी हैं. वे अपने शोध कार्य छोड़ने को मज़बूर हो चुके हैं.

2015-16 से 2022-23 के बीच सामाजिक सेवाओं पर कुल ख़र्च, रु. 9,15,500 करोड़ से बढ़कर 21,32,059 करोड़ हो गया, लेकिन इसी अवधि में इस मद में शिक्षा का बजट 42.8 % से घटकर 35.5% रह गया (द हिन्दू 31.01.23). ‘पैसा नहीं है’, कहकर मोदी सरकार ने 2022 में ‘मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप’, जिसके तहत शोध कार्य के लिए शोध-कर्ता छात्र को हर महीने, 31,000 रु. मिला करता था, बंद कर दी.

ग़रीब, मेधावी छात्रों को दसवीं से पहले मिलने वाले सारे वजीफे, बंद कर डाले गए हैं. यहां तक कि ग़रीब परिवारों के जिन बच्चों ने खर्च चलाने के लिए स्कालरशिप मिलेगी, यह सोचकर जेएनयू में दाखिले लिए थे, कोर्स के बीच ही उनकी स्कालरशिप मिलनी बंद हो गई. जैसे-तैसे क़र्ज़ लेकर कर घर से लगाया पैसा भी डूब गया.

मोदी सरकार को ज्ञान-विज्ञान पर किसी शोध की ज़रूरत ही नहीं, क्योंकि उनके ‘दर्शन’ के अनुसार सारा ज्ञान वेदों में मौजूद है !! हमारे पूर्वज दुनिया के सबसे विद्वान थे. ऐतिहासिक तथ्यों से दूर, इस बात को मान भी लें तो भी ये कैसे हो सकता है कि हज़ारों साल बाद भी, उनका वही ज्ञान उसी रूप में पूरी दुनिया का मार्गदर्शन करेगा !!

आस्था से सबकुछ हो सकता है !! हे मनुष्य, मोदी राज में सवाल मत करो. मोदी को सबसे ज्यादा मज़ा आता है फीता काटने में, हरी झंडी दिखाने में, नारियल फोड़ने में और किसी भी काम को ‘इवेंट’ बनाकर तालियां बटोरने में. पिछली बार तो चंद्रयान प्रक्षेपण के वक़्त इसरो के प्रक्षेपण नियंत्रण कक्ष में ही जा धमके थे. ऐसे विडियो भी दिखे थे, जिनमें वे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष-विज्ञान की, मानो कुछ टिप्स दे रहे हों !! उस चंद्रयान का पता ही नहीं चल पाया था, कहां ग़ायब हो गया !!

चंद्रयान-3 परियोजना की उल्लेखनीय क़ामयाबी पर, जिसे भी सच में गर्व है, उसे इस हकीक़त पर ज़रूर आक्रोशित होना चाहिए कि जिन 3,000 लोगों ने अपनी मेहनत से, आधुनिक लांच पैड जीएसएलवी-मार्क-3 (एल वी एम 3) का निर्माण किया उन्हें 17 महीने से वेतन क्यों नहीं मिला ? सरकार के लिए तो ये शर्म से डूब मरने जैसी बात है. क्या कोई मंत्री-संत्री 17 महीने बिना वेतन-भत्ते लिए रह सकता है ?

जो सरकार अपने कार्यकाल में 10 लाख करोड़ रु. से अधिक के कॉर्पोरेट क़र्ज़ माफ़ कर चुकी, जिस सरकार ने कोविद-काल में भले अनंत पैदल यात्रा के दौरान मरते मज़दूरों के लिए कुछ ना किया हो, लेकिन कॉर्पोरेट को 20 लाख करोड़ का पैकेज घोषित किया था, जो सरकार कॉर्पोरेट टैक्स को 37% से घटाकर 25% पर लाकर 2.5 लाख करोड़ का तोहफ़ा सबसे अमीर धन्ना सेठों को दे चुकी हो, उसके पास, ‘हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन (एच ई सी)’, जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को बचाने के लिए 1000 करोड़ रु. नहीं हैं !!

जिस बलशाली प्रधानमंत्री का कथित तौर पर दुनिया भर में डंका बज रहा है, दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष, जिसका ऑटोग्राफ लेकर खुद को धन्य समझते हैं, उसके शासन में 3000 कर्मचारियों को 17 महीने से वेतन नहीं !! जो सरकार, ख़ुद अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान ना कर रही हो, वह कारखानेदारों को मज़दूरों के वेतन का भुगतान करने को किस मुंह से कहेगी ?

खेत में हल चलाता किसान हो, पानी भरे खेत में धान रोपता मज़दूर हो या आकाश में रोमांचकारी करिश्मे दिखाने वाला वैज्ञानिक, सभी उजरती मज़दूर हैं. सरकारें आज वित्तीय पूंजी के इशारे पर भरतनाट्यम कर रही हैं. पूंजी को आज उत्पादन बढ़ाने के लिए किसी शोध की ज़रूरत ही नहीं क्योंकि उत्पादन बढ़ाने की ही ज़रूरत नहीं. पूंजी के इस ज़ालिम निज़ाम ने उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी वैज्ञानिक तौर-तरीक़ों के विकास को इसलिए रोका हुआ है, क्योंकि पहला स्टॉक ही ख़त्म नहीं हो रहा.

इस निज़ाम में सब कुछ मुनाफ़े के लिए ही होता है. मुनाफ़ा नहीं, तो उत्पादन क्यों ? 85% समाज कंगाली के उस स्तर को छू चुका की खाने को दाने खरीदने लायक़ भी नहीं बचा. चंद्रयान जैसे चमचमाते प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिक, इंजिनियर हों या गांव के ढोर चराते सीमांत किसान, खेत मज़दूर सभी को इकट्ठे होकर ना सिर्फ़ पूंजी की गुलामी से अपनी मुक्ति के लिए लड़ना है, बल्कि विज्ञान और तकनीक के चहुंमुखी, अबाध विकास के रास्ते में रोड़ा बने, इस पूंजी के निज़ाम को भी ठिकाने लगाने के सिवा पर्याय नहीं.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…