औरतें अक्सर झूठ बोलती हैं,
झूठ बोलकर वे सखियों से मिल आती हैं,
बेटी की मार्कशीट खोजने का दिखावा करती हुई,
वह एलान करती हैं कि बेटी फर्स्ट पास हुई है,
यह झूठ जरूरी है,
ताकि बेटी की पढ़ाई जारी रह सके
और शादी कुछ दूर खिसक जाय.
राशन का हिसाब साफ होने पर भी
पति को उधार का हिसाब थमाती हैं,
ताकि मायके जाने पर भाई की बेटी के लिए
खिलौने और कपड़े ले जा सकें.
धरने से देर से लौटने वाले अपने बेटे के लिए
वह देर रात तक जागती है,
सुबह पति की तिरछी भौहें देखकर
धीमी आवाज में कहती-
‘आजकल बेटा एक दोस्त के यहां पढ़ाई कर रहा है’
देर रात बिस्तर पर बोला गया झूठ
शायद सबसे बड़ा झूठ होता
जो उसे पति के हिंसक ‘प्रेम’ से बचाता.
अगर ‘पहला पाप’ औरत ने किया था
तो ‘पहला झूठ’ भी औरत ने ही बोला होगा.
देवताओं की इस ‘सच्ची’ और ‘पुण्य’ दुनियां में,
औरत का झूठ और औरत का पाप
वह भूमिगत संसार रचता है
जहां देवताओं के खिलाफ
औरतों का संसार सांस लेता है…
- मनीष आजाद
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