औरत का आग से पुराना नाता है
उतना ही पुराना जितनी कि आग..
जब पुरुष शिकार की तलाश में
भटक रहा था यहां वहां
औरतें उलट रही थी धरती.
और निहार रही थीं
धरती के भीतर पड़े बीज का मुस्कुराना.
जैसे मुस्कुराते हैं बच्चे मां की कोख में.
और फिर उनका उमग कर ऊपर आना…
उनकी आंखों के सामने ही घटित हो रहा था..
तब उन्हें क्या पता था
कि वे रख रही हैं नींव विज्ञान और खेती की.
वे पहली किसान और पहली वैज्ञानिक थी.
आग उस वक़्त आवारा थी,
जिसका कोई ठिकाना न था
कभी वह दावानल थी
तो कभी महज धुंआ-धुंआ…
औरत ने पहली बार साधा आग को
जैसे साधता है महावत मदमस्त हाथी को.
औरतों के बीच बहुत कुछ सांझा है
लेकिन उनके बीच आग का नाता बहुत पुराना है
चूल्हे की आग का लेन देन
उनके बीच रिश्ते की गर्माहट का एक कारण था
सभ्यता की शुरुआत हुई
मुक्त औरत गुलाम हुई
उसका आग पर नियंत्रण अब भी था
लेकिन आग की लपटें
अब पुरुष की सेवा में थी…
रात में राख से आग को ढककर
औरतें आग को
जिलाये रखती थी अगले दिन के लिए
क्योंकि आग का मरना सभ्यता का मरना था…
सदियों दर सदियों यह करते हुए
अचानक एक दिन किसी औरत को ख्याल आया
आग को अपने भीतर रखकर भी
आग को बचाया जा सकता है…
हालांकि यह आसान न था,
क्योंकि यह आग थी !
औरत ने जैसे ही आग को अपने भीतर रखा
एक चमत्कार घटित हुआ
उसकी गुलामी की बेड़ियां पिघलने लगी
औरत मुक्त होने लगी…
कानों कान यह राज
जंगल की आग की तरह औरतों में फैल गयी.
हालांकि आग को अपने भीतर रखने की प्रक्रिया में
न जाने कितनी औरतें झुलस गई.
लेकिन उनके पीछे एक दूसरी सभ्यता
उसी तरह अंखुआने लगी
जैसे कभी औरत की अन्वेषी दृष्टि के सामने
पहली बार अंखुवाये थे नन्हें नन्हें बीज…
- मनीष आजाद
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