चन्द्रभूषण
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का थर्ड प्लेनम अभी दुनिया की चर्चा में है. 15 से 18 जुलाई तक चलने वाली चीन की इस महत्वपूर्ण नीति निर्धारक कवायद में उसकी सीमा से बाहर बैठे पॉलिसी मेकर्स की भी खासी दिलचस्पी है. अभी वहां बेरोजगारी सामान्य से ज्यादा है और अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्र संकट का सामना कर रहे हैं. पूर्वी चीन सागर और दक्षिणी चीन सागर के अलावा भारत-चीन सीमा पर भी तनाव बना हुआ है. ऐसे में आगे की आर्थिक-कूटनीतिक दिशा को लेकर चीन पर सबकी नजर है.
प्लेनम को हिंदी में ‘पूर्णाधिवेशन’ कहा जाता रहा है. कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के अलावा बड़ी जिम्मेदारियां संभालने वाले अन्य पार्टी सदस्य भी इसमें शामिल होते हैं. चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की दो कांग्रेसों के बीच होने वाले कुल पांच पूर्णाधिवेशनों में ‘तीसरा’ एक रवायत की तरह सबसे खास होता आया है. तंग श्याओफिंग ने 1978 में चीन के आधुनिकीकरण की घोषणा ऐसे ही एक ‘थर्ड प्लेनम’ में की थी और 1993 में चीनी अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया था.
अभी के शीर्ष चीनी नेता शी चिनफिंग को भी सबसे ज्यादा सन 2013 में की गई उनकी थर्ड प्लेनम घोषणाओं के लिए ही याद किया जाता है. हालांकि इस बार इस कदमताल में इतनी देरी हो चुकी है कि और बातों से पहले यह विलंब ही दुनिया के लिए चकल्लस की चीज बन गया. कायदे से इसे अक्टूबर 2023 में हो जाना चाहिए था, लेकिन किसी न किसी बहाने टलते-टलते यह अपने तय समय से दस महीने बाद आयोजित हो पा रहा है. घड़ी की तरह चलने वाले चीनी पॉलिटिकल कैलेंडर को ध्यान में रखें तो यह देरी इतनी अटपटी है कि ढांचे के स्तर पर कुछ दिक्कतें पैदा हो जाने की अटकल भी कोई दूर की कौड़ी नहीं लग रही.
मंद पड़ती ग्रोथ
कुछ तथ्यों पर नजर डालें. कोविड को लेकर चीन ने कुछ ज्यादा ही सख्ती बरती और बाद में अर्थव्यवस्था को खोलने में भी देर कर दी. इससे महामारी में उसकी लय एक बार बिगड़ी तो पूरी तरह सम पर वह आज भी नहीं आ पाई है. 2023 में उसकी जीडीपी ग्रोथ 4.6 प्रतिशत दर्ज की गई जो 19 ट्रिलियन डॉलर के करीब की उसकी विशाल अर्थव्यवस्था के लिए बुरी नहीं कही जाएगी. लेकिन जितनी ऊंची जीडीपी हम वहां देखते आए हैं, उसे देखते हुए यह काफी कम है.
रीयल एस्टेट और एक्सपोर्ट का हाल बुरा बताया जा रहा है और उपभोक्ता सामानों का बाजार ठहरा हुआ है. सबसे बड़ी समस्या निवेश के स्तर पर देखी जा रही है. चीन में निजी और सरकारी उद्यमों का अनुपात 60 और 40 का है लेकिन प्राइवेट सेक्टर का निवेश पिछले एक साल में बढ़ना तो दूर, 0.4 फीसदी कम हो गया है और विदेशी निवेश 8 फीसदी नीचे आ गया है. शांघाई और हांगकांग के शेयर बाजारों में खड़ी गिरावट इसी रुझान का दूसरा पहलू है.
रोजगार पर आएं तो चीन की शहरी नौकरियों में 80 फीसदी निजी क्षेत्र से ही आती हैं. जाहिर है, प्राइवेट सेक्टर में निवेश का न आना वहां नए काम-धंधों और सेलरी ग्रोथ के आंकड़ों पर बुरा असर डाल रहा है. इस सिलसिले की शुरुआत को सीधे तौर पर कोरोना की बंदी से ही जोड़ा जा सकता है, लेकिन इसमें कुछ भूमिका शी चिनफिंग की नीतियों की भी रही है.
2012 की पार्टी कांग्रेस में पार्टी महासचिव पद पर उनके चुनाव को भ्रष्टाचार, असमानता और चीनी अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी के दबदबे के खिलाफ जनादेश की तरह प्रस्तुत किया गया था. इसी समझ पर चलते हुए उन्होंने एक रेलमंत्री, एक बहुत महत्वपूर्ण प्रांत के गवर्नर और थोड़ा ही समय पहले एक के बाद एक, कुल दो रक्षामंत्रियों को उनके पदों से बर्खास्त करके उनपर मुकदमा चलवाया और सख्त से सख्त सजाएं दिलाईं.
चीन के बौद्धिक उद्यमी के रूप में दुनिया भर में मशहूर जैक मा और उनके ऐंट ग्रुप पर पड़े चीनी हुकूमत के हथौड़े को भ्रष्टाचार के बजाय उनके ‘अति-आत्मविश्वास’ को दंडित करने की तरह पेश किया गया और विदेशी निवेश पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा. महंगी प्रॉपर्टी बेचने के लिए प्रसिद्ध एवरग्रैंड ग्रुप का डूबना चीन में रीयल एस्टेट सेक्टर के संकट का बड़ा नमूना था. ऐसी कंपनियों और उन्हें कर्ज देने वाले बैंकों के दिवालिया होने का सिलसिला शुरू हुआ तो कुछ इलाकों में प्रदर्शन कर रहे घर खरीदारों के खिलाफ टैंक तक भेजने पड़ गए.
तंग बनाम शी
दरअसल पिछले कुछ साल चीन में सस्ते कर्जे के दम पर खड़े हुए बहुत सारे धंधों के खिलाफ हर तरह की सख्ती के रहे हैं, जिसके बीच में आई कोरोना की महामारी ने इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं जाने दिया कि यह वहां एक नदी की धारा बदलने जैसा है. शी चिनफिंग के तौर-तरीकों में सफाई नहीं दिखती लेकिन उनका नीतिगत नजरिया मोटे तौर पर साफ ही कहा जाएगा.
नए चीन के प्रतीक पुरुष तंग श्याओफिंग की घोषित नीति थी- ‘बिल्ली जबतक चूहे पकड़ती है तबतक इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह काली है या सफेद.’ तात्पर्य यह कि देश में समृद्धि आए, लोगों में खुशहाली की उम्मीद जगे तो इसकी ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिए कि कौन से तरीके इसके लिए अपनाने पड़ रहे हैं. लेकिन इस नीति पर चलते हुए 2015 आते-आते हाल ऐसा हो गया कि दोहरी कमाई वाले एक शहरी मिडल क्लास परिवार के लिए भी अपने अकेले बच्चे को ठीक-ठाक शिक्षा दिलाना और उसके संतोषजनक करिअर के बारे में सोचना काफी कठिन हो गया.
यह खुद में विस्फोटक स्थिति थी और कम्युनिस्ट जार्गन में तो बर्दाश्त से बाहर थी. ऐसे में सबसे सख्त कार्रवाई चीनी हुकूमत ने ऑफलाइन और ऑनलाइन कोचिंग इंडस्ट्री के खिलाफ की, जिसमें भारी मात्रा में विदेशी पूंजी लगी थी. एक झटके में ऐसी सभी कंपनियों को पैदल कर दिया गया, उन्हें बाहरी पूंजी उठाने से रोक दिया गया और बच्चों को कोचिंग और ट्यूशन से दूर ले जाने के लिए ठोस नीतियां घोषित की गईं. पश्चिमी मीडिया ने इसको एक तुगलकी कदम के रूप में पेश किया और थर्ड प्लेनम को लेकर वहां छप रही टिप्पणियों में यह बात बार-बार आ रही है कि शी चिनफिंग को आगे ऐसी हरकतों से बाज आने का कोई संकेत यहां जरूर देना चाहिए.
एडवांस्ड सोशलिस्ट इकोनॉमी
अमेरिका और यूरोप के अखबारों में सबसे ज्यादा आक्रोश तकनीकी के सीमावर्ती क्षेत्रों में बढ़ाए जा रहे चीनी निवेश को लेकर है, जो पूरब और पश्चिम की होड़ में पिछले पांच सौ वर्षों में पहली बार पूरब का पलड़ा भारी करने वाला साबित हो रहा है. शिकायत का स्वर कुछ ऐसा है कि अपने यहां रोजगारपरक क्षेत्रों में पूंजी लगाने और उपभोक्ता खर्चे बढ़ाने के बजाय चीन का सारा जोर तकनीकी के ऐसे क्षेत्रों में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर क्यों है, जो सुदूर भविष्य में ही आम लोगों के काम आ सकते हैं.
थर्ड प्लेनम में चर्चा के लिए प्रस्तुत परिपत्र में बातें तो सारी गोलमोल सी ही हैं लेकिन उसमें सन 2035 तक ‘एडवांस्ड सोशलिस्ट इकोनॉमी’ हासिल करने के लक्ष्य को लेकर एक दृढ़ता भी है. तंग श्याओफिंग सन 2050 तक चीन में किसी तरह का लोकतांत्रिक समाज बना लेने की बात करते थे. इस तरह का कोई दिशा संकेत जब पार्टी कांग्रेसों में ही नहीं दिख रहा तो प्लेनम में क्या दिखेगा. लेकिन प्राइवेट सेक्टर और विदेशी पूंजी के लिए कानून और प्रशासन के स्तर पर आसानी पैदा करने के कुछ सुराग इसमें जरूर नजर आते हैं.
अपनी राजनीतिक व्यवस्था को गोर्बाचेव के रूस वाली राह पर नहीं जाने देना है और औद्योगिक विकास को जापान की तरह अमेरिका का स्थायी पिछलग्गू नहीं बनने देना है, ये दो खूंटे इस प्लेनम के परिपत्र में साफ झलकते हैं. पश्चिमी हमले की जद में आने के क्रम में चीनी सत्ता यूक्रेन की लड़ाई को अपने लिए सांस लेने के मौके की तरह देख रही है और अर्थव्यवस्था की अड़चनों से जूझने के लिए आक्रामक राष्ट्रवाद को ढाल की तरह इस्तेमाल करने की दृष्टि परिपत्र की भाषा में दिखाई पड़ रही है.
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