हिमांशु कुमार
सुकडी वह आदिवासी महिला है पुलिस ने पहले जिसके पति की और कुछ साल बाद उसके बेटे की हत्या कर दी, जिसे पुलिस ने दो बार अपना अपराध छिपाने के लिए जबरदस्ती कागज़ात पर दस्तखत करने के लिए मजबूर भी किया. और जिसका मामला दो बार भारत के सर्वोच्च न्यायलय तक पहुंचा. लेकिन पहली बार सर्वोच्च न्यायालय ने उसके लिए इन्साफ मांगने वाले हिमांशु कुमार पर ही पांच लाख का जुर्माना लगा दिया. दूसरी बार इन्साफ की उसकी गुहार पर सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है.
सुकमा ज़िला छत्तीसगढ़ के पुराने बस्तर में शामिल था. अब यह एक अलग जिला बन चुका है. 2005 में भाजपा सरकार के नेताओं ने बड़ी कंपनियों से पैसा खाया. छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री रमन सिंह के भाजपा सांसद बेटे अभिषेक सिंह ने वह पैसा स्विस बैंक और पनामा की बेनामी कम्पनियों में लगाया, जिसके सबूत प्रशांत भूषण और रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया के सामने रख दिए थे.
पनामा की कम्पनियों का पता रमन मेडिकल स्टोर कवर्धा दर्ज़ था, जो मुख्यमंत्री का मेडिकल स्टोर था. पूंजीपतियों और कारपोरेट से रिश्वत खाकर भाजपा सरकार ने संविधान का उल्लंघन किया. छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों की ज़मीनों पर इन खनन कंपनियों का कब्जा कराने के लिए आदिवासियों के घरों में आग लगाने के लिए पांच हज़ार गुंडों को सरकारी राइफलें दीं और उन्हें विशेष पुलिस अधिकारी का दर्ज़ा दे दिया. इनके साथ पुलिस और अर्ध सैनिक बलों को भी शामिल कर दिया गया.
इन संयुक्त दलों ने 644 गावों में आदिवासियों के घरों में आग लगाईं उनके घरों में रखा नगदी तथा औरतों के जेवर लूट लिए. इन सिपाहियों द्वारा हजारों महिलाओं से बलात्कार किया. हज़ारों आदिवासियों की हत्या की गई. हज़ारों आदिवासियों को जेलों में ठूंस दिया गया. मडकम मुदराज जो एक गुंडा था और बिलकुल भी पढ़ा लिखा नहीं था. वह भी सरकारी विशेष पुलिस अधिकारी बन गया. उसे पहले थ्री नाट थ्री की राइफल मिली.
मडकम मुदराज ने बढ़ चढ़ कर गांवों में जाकर आदिवासियों के घर जलाना, उनकी हत्याएं करना, महिलाओं से बलात्कार करना शुरू किया. उसकी दहशत दूर दूर तक फ़ैल गई. पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा ने उसे कोया कमांडो बना दिया और उसे और खतरनाक एके 47 ऑटोमेटिक राइफल दे दी और उसे एक टीम का लीडर बना दिया.
जनवरी 2009 में मडकम मुदराज सुकमा ज़िले के सिंगारम गांव में अपनी टीम लेकर गया. इस टीम ने चार लड़कियों से बलात्कार किया और कुल उन्नीस आदिवासियों को लाइन में खड़ा करके गोली से उड़ा दिया.
मैं उन दिनों अपने गांधी आश्रम के माध्यम से अपने साथियों की मदद से आदिवासियों की सेवा का काम कर रहे थे. मारे गए आदिवासियों के परिवार के सदस्यों ने मुझसे सम्पर्क किया. मैं पीड़ित आदिवासियों को लेकर प्रदेश की राजधानी रायपुर गया और प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस करी और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में केस दायर कर दिया. इस घटना को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस के विधायकों ने विधान सभा में वाक आउट किया और विधान सभा के अध्यक्ष ने तीस कांग्रेसी विधायकों को निलम्बित कर दिया.
हाई कोर्ट ने किसी आरोपी के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज़ करने या जांच करने का आदेश नहीं दिया. इससे हत्या करने वाले और भी बेख़ौफ़ हो गये. अक्तूबर 2009 में नज़दीक के गांव गोमपाड़ में मडकम मुदराज और उसकी टीम ने जाकर सोलह आदिवासियों की हत्या कर दी..इस बार इन लोगों ने एक ढाई साल के बच्चे का हाथ काट दिया. उसकी मां के सर में चाकू मार दिया. उसकी आठ साल की मौसी का गला काट दिया. उसकी नानी के स्तन काट दिए. नेत्रहीन नाना का पेट फाड़ दिया. सर में चाकू लगने से महिला मर रही थी, उस हालत में इस टीम ने उसके कपड़े उतारे और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया.
इस घटना के पीड़ितों ने भी मुझ से संपर्क किया. मैं मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों को लेकर इस बार दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय आया क्योंकि हाई कोर्ट कोई सुनवाई नहीं कर रहा था. दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में प्रेस कांफ्रेंस की, जहां इन आदिवासियों ने अपनी आपबीती सुनाई. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई.
अगले सात साल तक जब सुप्रीम कोर्ट ने भी आरोपियों के खिलाफ कोई एफ़आईआर करने या जांच करने का आदेश नहीं दिया तो मडकम मुदराज की हिम्मत और ज़्यादा बढ़ गई. इस बार 2016 में वह अपनी टीम लेकर फिर से गोमपाड़ गांव में आया. इस बार उसने एक उन्नीस साल की लडकी जिसकी एक महीने पहले ही शादी हुई थी और वह अपनी मां से मिलने आई थी उसे घर से खींच कर बाहर निकला लिया. उस लडकी का नाम मड़कम हिड़मे था.
मडकम मुदराज उस लड़की को खींच कर बलात्कार करने के लिए जंगल की तरफ ले जाने लगा. लडकी की मां लक्ष्मी ने अपनी बेटी को छुडाने की कोशिश की तो सिपाही मडकम मुदराज ने लक्ष्मी की बंदूक के बट से बुरी तरह पिटाई की.
लड़की की पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने जब उसे बचाने की कोशिश की तो मडकम मुदराज के साथी ने उसे बंदूक के बट से मारा. उसकी गोद में छोटा बच्चा था, बंदूक के बट की चोट लगने से वह गोद का बच्चा मर गया.
मडकम मुदराज और उसकी टीम उस लडकी को गांव से सटी हुई पहाड़ी पर ले गए. लड़की की चीखने की आवाज़ें आती रहीं. मडकम मुदराज की टीम के लोग बंदूक लेकर गांव वालों को पहाडी पर जाने से रोकने के लिए खड़े रहे. लडकी से सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी योनी में चाकू डाल कर नाभि तक चीर दिया गया. उसकी लाश को मडकम मुदराज और उसकी टीम के लोग थाने लेकर चले गये. दो दिन के बाद लडकी की मां लक्ष्मी और पिता को थाने से लाश सौंप दी गई.
पुलिस ने प्रेस विज्ञप्ति में लडकी को माओवादी बताया और उसकी नक्सली वर्दी पहनी हुई लाश का फोटो मीडिया को दिया. लाश में गोलियों के सुराख थे लेकिन वर्दी में कोई छेद नहीं था. यानी पहले गोली मारी गई थी, बाद में वर्दी पहनाई गई थी. लक्ष्मी इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट गई और न्याय की मांग की. हाई कोर्ट में पुलिस ने कहा कि यह नकली मां है. लक्ष्मी ने कहा मेरा डीएनए मेरी बेटी से मिला लो. लेकिन हाई कोर्ट ने पुलिस की बात मान कर लडकी की मां लक्ष्मी की याचिका ख़ारिज कर दी.
इस घटना के बाद मडकम मुदराज की हिम्मत और भी बढ़ गई. 2018 में वह आपनी टीम को लेकर फिर से गोमपाड़ गांव में आया और गांव वालों को गालियां देते हुए हवाई फायरिंग करने लगा. मडकम मुदराज और उसके साथी पूरी तरह अपने कपड़े उतार कर नग्न हो गये और चिल्ला कर कहने लगे आज गांव की किसी लडकी को नहीं छोड़ेंगे, सबके साथ मज़े करेंगे. तुम लोग हाई कोर्ट गए, सुप्रीम कोर्ट गए मेरा क्या उखाड़ लिया.
उसका यह रूप देखकर गांव वाले घर से निकल कर जंगल की तरफ भाग गए. मडकम मुदराज और उसकी टीम ने गांव वालों के बकरे सुवर मुर्गे पकड कर गांव के बीच में आग जला कर भूनना खाना करते रहे और आदिवासियों के घरों में राखी ताड़ी और महुआ की शराब लूट कर पीते रहे.
दो दिन तक मडकम मुदराज और उसकी टीम गांव में ही रहे और गांव वालों को ललकारते रहे कि अगर दम है तो सामने आओ. इसके बाद मडकम मुदराज और उसकी टीम गांव वालों को खोजकर मारने निकली. पड़ोस के गांव नुलकातोंग में एक पेड़ के नीचे सोलह बच्चे और किशोर छिपे हुए थे. मडकम मुदराज और उसकी टीम ने पन्द्रह आदिवासियों को गोली से उड़ा दिया. मारे गये लोगों में सात छोटे बच्चे थे.
एक नाबालिग सोलह साल की लडकी को कूल्हे में गोली मार ले गये और नक्सली कह कर जेल में डाल दिया, जिसे बाद में अदालत ने बाइज्ज़त बरी कर दिया. इस मामले को लेकर आंध्र प्रदेश के मानवाधिकार संगठन एपीसीएलसी ने एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की.
अभी सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने हिमांशु कुमार पर इसी तरह की याचिका दाखिल करने के कारण पांच लाख का ज़ुर्माना लगाया था, उसी तरह मानवाधिकार संगठन एपीसीएलसी के याचिकाकर्ता सदस्यों को भी दण्डित कीजिये और इस याचिका को खारिज कर दीजिये. अगली सुनवाई अगले हफ्ते होगी.
आदिवासियों के ऊपर भयानक अत्याचार है. उनके जीवन के अधिकार का हनन हो रहा है. इसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय की है लेकिन जब कोई सर्वोच्च न्यायालय जाता है तो वहां न्याय मांगने वाले पर जुर्माना लगा दिया जाता है. आखिर आदिवासियों के जीवन के अधिकार की रक्षा कौन करेगा ?
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बताइए, आदिवासियों के लिए आपने क्या रास्ता छोड़ा है ?
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