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मारे जाएंगे

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जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएंगे

कठघरे में खड़े कर दिये जाएंगे
जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएंगे

बर्दाश्त- नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्या दा सफ़ेद
कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जाएंगे

धकेल दिये जाएंगे कला की दुनिया से बाहर
जो चारण नहीं होंगे
जो गुण नहीं गाएंगे, मारे जाएंगे

धर्म की ध्व जा उठाने जो नहीं जाएंगे जुलूस में
गोलियां भून डालेंगी उन्हें, काफ़िर करार दिये जाएंगे

सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएंगे

  • राजेश जोशी
    (‘दो पंक्तियों के बीच’ के कवि राजेश जोशी किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं. कविता, कहानी, नाटक तथा समसमायिक समाजिक, राजनीतिक या कि आर्थिक मुद्दों पर उनका बेबाक लेखन है. अतः कोई भी विस्तृत परिचय देना औपचारिक होगा ! यहां प्रस्तुत कविता जब वे लिखे, ताजा़तरीन सोवियत संघ के विघटन और भारत की संप्रदायिक राजनीति के उभार का समय था. देश भूमंडलीकरण और उदारीकरण से जनित बाज़ारवाद के बुखार में तप रहा था. अतः यह उन घटित-घटनाओं, व्यौरों और परिस्थितियों के निमित्त में साक्ष्य बन आया. जब यह कवि अपने समकालीन व्युत्पन्न स्थितियों तथा उस यथार्थ से टकराया होगा तो उनके कैनवास में यह सर चढ़ कर बोलने लगा होगा ! निश्चय ही तब प्रत्येक दृश्य और बिम्ब, अदृश्य की संभावना और शिनाख्तगी में अपनी ऊर्जा को संकलित कर पूरी इकठ्ठी ताकत में साकार हुई होगी, नहीं तो यह कविता भी इस तरह से स-आकार अभिव्यक्त नहीं ही हो पाती. इतर इसके मैं फिर कहूंगा कि राजेश जोशी की गिनती देश के शीर्ष कवियों में होती रही है तो निश्चय ही यह उनके प्रतिरोधी तेवर से हुई किन्तु राजेश जोशी आज जिस रुप में बद्रीनारायण की यात्रा पर निकल पड़े हैं, मुश्किल लगता है साख और धार को बचाए रखना ! – इंदरा राठौड़)

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ROHIT SHARMA

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