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संसद में ‘जय संविधान’ के नारे से भाजपा को इतनी नफरत क्यों ?

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संसद में 'जय संविधान' के नारे से भाजपा को इतनी नफरत क्यों ?
संसद में ‘जय संविधान’ के नारे से भाजपा को इतनी नफरत क्यों ?
मुनेश त्यागी

पिछले दिनों जब संसद में ‘जय संविधान’ के नारों पर आपत्तियां उठायीं गईं और लोकसभा स्पीकर द्वारा सांसद दीपेंद्र हुड्डा को ‘जय संविधान’ का नारा लगाने से रोक दिया गया तो इस पर बड़ा अचंभा हुआ और यह विश्वास ही नहीं हुआ कि संसद में किसी सांसद, किसी पार्टी या स्पीकर को, जय संविधान का नारा लगाने पर कोई आपत्ति हो सकती है. हम पिछले कुछ दिनों से देख रहे हैं कि आरएसएस और बीजेपी के नेताओं में और आरएसएस के पूरे तंत्र में, विपक्षी दलों से लगातार आपत्ति और असहमतियां बढ़ती जा रही है.

हकीकत यह है कि आरएसएस के अधिकांश संगठनों और उसकी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के दस साल की सत्ता और सरकार ने, संविधान के बुनियादी प्रावधानों का सम्मान और पालन नहीं किया है और उसके अनिवार्य पहलुओं और सिद्धांतों जैसे…संप्रभुता, जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, न्याय, समता, समानता, आजादी, भाईचारा, आरक्षण, यूनियन, धार्मिक बराबरी, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, सस्ता और सुलभ न्याय, आर्थिक समानता, सस्ती और आधुनिक शिक्षा, सस्ते और मुफ्त इलाज की सुविधा, ज्ञान विज्ञान की संस्कृति को, बिल्कुल नजर अंदाज और धरासई कर दिया है.

सरकार ने आम जनता, गरीबों, किसानों और मजदूरों का हितरक्षण नहीं किया है, किसानों को एमएसपी एसपी नहीं दी गई है और मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है, उनके तमाम अधिकार जैसे छीन लिए गए हैं और उनमें से अधिकांश को सेवायोजकों का आधुनिक गुलाम बना दिया गया है, नौजवानों को नौकरी और रोजगार से वंचित किया गया है और पिछले दो सालों के दौरान सत्तर से अधिक परीक्षाएं कैंसिल की गई हैं और समाज में कुछ लोगों का ही प्रभुत्व और वर्चस्व बढ़ता और कायम होता जा रहा है.

इस सरकार ने जनता की रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और छोटे उद्योग धंधों को स्थापित करने के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है. कमरतोड़ मंहगाई और आकंठ भ्रष्टाचार को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया है, जाति, वर्ण, उच्च नीच और छोटे-बड़े की सोच को बदलने के लिए उसने कोई काम नहीं किया है, बल्कि हजारों साल से मौजूद इस विभाजनकारी सोच और मानसिकता को आगे बढ़ाया गया है. समाज में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में पहले से मौजूद शोषण, जुल्म, अन्याय, गैरबराबरी को खत्म करने का कोई काम नहीं किया गया है और इस विभाजनकारी सोच को घटाया नहीं गया है बल्कि इसे और जोरदार तरीके से आगे ही बढ़ाया गया है.

अहम सवाल यह है कि यह सब क्यों हो रहा है ? यही आज सबसे बड़ा सवाल उठकर खड़ा हो गया है. यह सब संविधान विरोधी और जनतंत्र विरोधी काम इसलिए हो रहे हैं कि आज आरएसएस अपने अनेकों संगठनों और मुख्य रूप से राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से राज सत्ता पर काबिज हो गया है. उसका भारत के संविधान में लिखित मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों में कोई यकीन नहीं है, ना तो आज है और ना ही आजादी के आंदोलन के दौरान था. उसने अपने नेताओं के मुख से बार-बार यही कहलवाया था कि इस देश को किसी संविधान की जरूरत नहीं है, यहां तो पहले से ही मनुस्मृति मौजूद है. इस देश को तिरंगे झंडे की नहीं बल्कि भगवा झंडे की जरूरत है.

उसके सारे संगठन आज भी वर्ण व्यवस्था और समाज विरोधी जातिवाद में विश्वास रखते हैं. हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म और अन्यायों को वे खत्म नहीं करना चाहते हैं बल्कि उन्हें बनाए रखने के हामी ही हैं. वे सब सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समता और समानता के वाहक नहीं हैं बल्कि उनके मार्ग में सबसे ज्यादा बड़ी बाधाएं बने हुए हैं. वे सब आज भी हिंदुत्व और मनुवाद की राजनीति को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.

मोदी सरकार के दस सालों के कारनामों पर एक नजर दौड़ना जरूरी है. उसने अपने दस साल के शासन में जनता की एकता पर हमला किया है, सांप्रदायिक नफरत फैलाई है, गंगा जमुनी तहजीब और संस्कृति पर लगातार हमले किए हैं, जनता के आपसी सहयोग और भाईचारे को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है, किसानों मजदूरों के अधिकारों और आंदोलनों पर लगातार हमले किए हैं, उसका व्यवहार और सोच एकदम अलोकतांत्रिक, तानाशाहीपूर्ण और फासीवादी है, उसकी मानसिकता और आचरण अव्यावहारिक और जनविरोधी हैं. उसने देशी विदेशी उद्योगपतियों और धनवान लोगों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए के अलावा कुछ नहीं किया है.

उसने चुनाव आयोग की निष्पक्षता, पारदर्शिता और ईमानदारी पर बड़े-बड़े सवाल पैदा कर दिए हैं और उसे अपनी कठपुतली बना लिया है. उसने संसद में विपक्षी नेताओं के बोलने पर रोक लगाई है, बाधा उत्पन्न की है, उनके माइक बंद किए हैं और वह जो कानून बना रही है उन कानूनों को बनाने में उसने विशेषज्ञों और विपक्षी पार्टियों से कोई सलाह मसविरा या बहस नहीं की है, उसने जनता को राहत देने का काम नही किया है और उसने अपने हिंदुत्ववादी और मनुवादी शासन और राजव्यवस्था को कायम करने के लिए यह सब किया है.

फिलहाल हुए चुनावों से पहले सरकार की इन तमाम जनविरोधी, संविधान विरोधी और जनतंत्र विरोधी नीतियों पर इंडिया गठबंधन की तमाम पार्टियों ने विचार विमर्श किया, सरकार के सब कामों पर नज़रें दौड़ाई, उसके सब कामों का विश्लेषण और आंकलन किया और उन्होंने पाया के इस सरकार का भारत के संविधान, जनतंत्र और सामाजिक न्याय में, जनता का भाईचारा कायम रखने में और सबको सस्ता सुलभ न्याय देने में, सबका विकास करने में, सबको शिक्षा और स्वास्थ्य देने में, सबको रोजगार और नौकरी देने में उसका कोई विश्वास नहीं है.

उसके पिछले दो सालों के शासन में सत्तर परीक्षाएं लीक हुई हैं, जो यह दर्शा रहा है कि यह सरकार गरीबों और किसानों मजदूरों के बच्चों को नौकरी देना नहीं चाहती और उसने जनहित में लागू किए गए आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों को व्यवहार में जैसे खत्म ही कर दिया है.

इंडिया गठबंधन के नेताओं ने इन सब मुद्दों पर गहन विचार विमर्श किया और एकजुट होकर चुनावों के दौरान इन मुद्दों को गम्भीरता और जोरदार तरीके उठाया, इन सब मुद्दों को जनता के बीच ले गए और इन नारों और कार्यक्रमों को जनता ने अपने सिर माथे पर लिया, और इन्हें अपनाकर गरीब और परेशान जनता ने मोदी सरकार से मुख मोड़ लिया और उसने उसके चार सौ पार के नारे को धराशाई कर दिया, उसके सांसदों की संख्या घटा दी और वह संसद में अपनी मन चाही संख्या को पार नहीं कर पाई.

इसलिए अब संसद में वह एक मजबूत विपक्ष को मजबूती के साथ काम करते देखना नहीं चाहती. वह नहीं चाहती कि भारत का विपक्ष जनता के मुद्दों को उठाये, नौकरी और रोजगार की विफलताओं पर कोई चर्चा करें, लगातार लीक हो रहे परीक्षाओं की चर्चा करे, वह संविधान और जनतंत्र पर कोई चर्चा करे. अब उसे डर लगने लगा है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन के लोग संविधान और जनतंत्र के नारे को संसद में जितना उठाएंगे, उससे सरकार और बीजेपी को उतनी ही परेशानी होने वाली है और हो सकता है कि भविष्य में संविधान, आरक्षण, जनतंत्र और उसकी रोजी-रोटी पर किए गए हमलों से परेशान होकर जनता, उसे सरकार से ही बेदखल कर दे.

इसलिए एक सोची समझी साजिश और डर के तहत संसद में ‘जय संविधान’ के नारे लगाने पर जान बुझकर रोक लगाई जा रही है. अब लगने लगा है कि संसद और संसद के बाहर हो रही संविधान और जनतंत्र की मजबूत बहस, आरएसएस और बीजेपी के नेताओं को चैन की नींद नहीं सोने देगी. हमारा गंभीरता से यह मानना है कि अब यह ‘जय संविधान’ का नारा ही, भारत के किसानों, मजदूरों, नौजवानों और छात्रों के भविष्य की रक्षा करेगा. इस नारे को जितना दबाया जाएगा, उतने ही जोरदार तरीके से इस नारे की आवाज पूरे देश में गूंजेगी और यही नारा पूंजीपतियों और संप्रदायिक ताकतों के इस जन विरोधी गठजोड़ को सरकार और सत्ता से बाहर करेगा.

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