प्रधानमंत्री मोदी ने झूठ बोलने की सारी हदें पार कर दी हैं. संविधान पर बहस का जवाब देते हुए कह दिया कि कांग्रेस की ज़्यादातर कमेटियों ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री चुना था, लेकिन नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया.
हक़ीकत ये है कि प्रधानमंत्री पद के लिए कभी चुनाव हुआ ही नहीं. कमेटियों का प्रस्ताव अध्यक्ष पद के लिए था. नेहरू प्रधानमंत्री बनेंगे, इसकी घोषणा महात्मा गांधी सालों पहले ही कर चुके थे, जब उन्होंने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. किसी भी कांग्रेसजन को संदेह नहीं था कि आज़ाद भारत में प्रधानमंत्री कौन बनेगा.
ख़ुद सरदार पटेल ने नेहरू को अपना नेता माना. दोनों के बीच कैसे संबंध था, इसकी बानगी देखिए – भारत की आजादी का दिन करीब आ रहा था. मंत्रिमंडल के स्वरूप पर चर्चा हो रही थी. 1 अगस्त 1947 को नेहरू ने पटेल को लिखा –
‘कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना ज़रूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूं. इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं.’
जवाब में पटेल ने 3 अगस्त को नेहरू के पत्र के जवाब में लिखा –
‘आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद. एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता. आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी.
‘आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी औऱ निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है. हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है. आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं.’
यही नहीं, अपनी मृत्यु से कुछ पहले 2 अक्टूबर 1950 को इंदौर में एक महिला केंद्र का उद्घाटन करने गये पटेल ने अपने भाषण में कहा –
‘अब चूंकि महात्मा हमारे बीच नहीं हैं, नेहरू ही हमारे नेता हैं बापू ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और इसकी घोषणा भी की थी. अब यह बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं एक गैर-वफादार सिपाही नहीं हूं.’
वैसे, यह मसला कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी मामला था जो आज़ादी की लड़ाई लड़ रही थी लेकिन अंग्रेज़ों के तलवे चाटने वाले आरएसएस की शाखाओं से ज़हर पीकर निकले लोगों की रुचि ये बताने में है कि सरदार पटेल के साथ नाइंसाफ़ी हुई, जबकि सवाल आरएसएस के ग़द्दारी का है.
इतिहास गवाह है कि अंग्रेज सावरकर को उस समय 60 रूपया महीना पेंशन देते थे, जब सोना पांच रुपया तोला हुआ करता था. सावरकर ने अंग्रेजों से 6 बार लिखित में माफी मांगा था. संघ सावरकर और गोडसे अंग्रेजों से पैसा लेकर आजादी के क्रांतिकारियों के खिलाफ मुखबिरी का काम करते थे.
अंग्रेजों के लिए मुखबिरी का काम करते हुए संघ सावरकर ने एक एक करके गरम दल के सभी क्रांतिकारियों को मरवा दिया. चंद्रशेखर आजाद को मरवाने के लिए इन लोगों ने बहुत बड़ी मुखबिरी किया था. भगत सिंह के खिलाफ केस लड़ने वाला वकील राय बहादुर सूर्य नारायण शर्मा संघी था, भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाला सर सादी लाल और शोभा सिंह दोनों संघी थे.
1942 में जब महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा देकर आंदोलन शुरू किया, तब संघ सावरकर ने उसका पुरजोर विरोध किया था. जैसे तैसे भारत को आजादी मिली. जब हमारा भारत स्वतंत्र हुआ तब संघ सावरकर ने स्वतन्त्र भारत की शासन सत्ता को अपने कब्जे में लेने के लिए बहुत बड़ा दांव खेला. भारत देश की आजादी के साथ भारत की 600 से अधिक लगभग सभी रियासतों को भी अंग्रेजों ने स्वतन्त्र कर दिया था.
सावरकर की चाल थी कि महात्मा गांधी को मारकर भारत की स्वतन्त्र रियासतों को अपने पक्ष में करके देश की शासन सत्ता को अपने कब्जे में कर लेना है. सावरकर को मालूम था कि गांधी के जीवित रहते भारत का विभाजन असम्भव है. महात्मा गांधी ने स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि मेरे जीते जी भारत का विभाजन नहीं होगा. महात्मा गांधी को मारने के बाद भी भारत की शासन सत्ता पर कब्जा करना आसान नहीं था, क्योंकि देश कि आजादी की लड़ाई सभी धर्मों ने एक साथ मिलकर लड़ा था. उस समय हिन्दू मुस्लिम एकता अपने चरम सीमा पर थी.
हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने और भारत का विभाजन करवाने के लिए हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने मिलकर समूचे भारत को गृह युद्ध में धकेल दिया था. सावरकर ने जिन्ना को पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान, 55 करोड़ रूपए की मांग करने के साथ-साथ दोनों पाकिस्तान को जोड़ने के लिए भारत के बीचों बीच एक चौड़े कारीडोर की मांग करने के लिए उकसाया था. दरअसल सावरकर, जिन्ना को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाकर खुद भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहता था.
सावरकर और जिन्ना का एक ही मकसद था, भारत विभाजन के बाद अपने अपने देश का प्रधानमंत्री बनना. भारत विभाजन के दौरान सावरकर ने हिन्दू मुसलमान के बीच में बहुत बड़ा दंगा करवा दिया, जिसमें अनगिनत निर्दोष महिला पुरुष बच्चे मारे गए. गरम दल के क्रांतिकारियों को संघ सावरकर ने अंग्रेजों के हाथों पहले ही मरवा दिया था, इसलिए गांधी जी को मारना आसान हो चुका था.
अंततः सावरकर ने गोडसे के हाथों गांधी जी को मरवा दिया और रियासतों को अपने पक्ष में खड़ा करने में जुट गया. लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, सावरकर के खतरनाक इरादे को समझ गए. सरदार वल्लभ भाई पटेल बिना समय गंवाए आनन-फानन में भारत की लगभग 556 स्वतंत्र रियासतों को अपने पक्ष में करके संघ के ऊपर बैन लगा दिया और स्वतन्त्र भारत को बर्बाद होने से बचा लिया.
RSS को यह बात अच्छी तरह से मालूम हो चुकी थी कि यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तो आरएसएस का सम्पूर्ण विनाश कर डालेंगे. सरदार पटेल प्रधानमंत्री ना बन सकें उसके लिए RSS ने गुप्त रूप से काम किया.
पटेल ने कहा था कि आरएसएस वालों ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद मिठाई बांटी थी. उन्होंने इस संगठन को देश के लिए ख़तरनाक मानते हुए प्रतिबंधित किया था. ये लोग सरदार पटेल के गुण गा रहे हैं ताकि नेहरु को नीचा दिखा सके. हद है बेशर्मी की.
- पंकज श्रीवास्तव और मुमुक्षु आर्य के लेखन को संयुक्त किया गया.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]