1976 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे. भाजपा-आरएसएस समर्थित दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के माध्यम से इन्हें हटाने की मांग करते हुए कहा था कि ‘यह संशोधन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषय-वस्तु के विपरीत था.’
समाजवाद क्या है ?
समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसका उद्देश्य समाज में आर्थिक समानता को स्थापित करना होता है. इस विचारधारा के अन्तर्गत नागरिकों को न्याय एवं स्वाधीनता प्रदान की जाती है. साधारण भाषा में कहा जाये तो समाजवाद एक ऐसी प्रणाली है, जिसकी मदद से देश की सरकार राज्य व्यवस्था एवं आर्थिक प्रणाली को नियंत्रित करती है.
समाजवाद देश की सरकार द्वारा संचालित किया जाने वाला एक सामाजिक कार्य है, जिसका उद्देश्य देश के नागरिकों को लाभ पहुंचाना और समाज के सभी वर्गों के बीच समानता को स्थापित करना होता है. इस व्यवस्था के अन्तर्गत देश की अर्थव्यवस्था पर हर नागरिक का सामाजिक रूप से पूर्ण नियंत्रण रहता है.
समाजवाद में मनुष्यों की समस्या कैसे खत्म होती है ?
समाजवाद में मानव की मूल समस्याओं को देश की सरकार प्राथमिकता के स्तर पर हल करती है- मसलन, रोजगार, आवास, शिक्षा, चिकित्सा, इन्फ्रास्ट्रचर आदि. यानी, देश के तमाम नागरिकों को आवास, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत समस्याओं को त्वरित आधार पर हल करता है और इसे तमाम नागरिकों के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराती है. रोजगार को हरेक नागरिक को पाना एक कानूनी अधिकार होता है. इस कारण समाजवादी व्यवस्था में अशिक्षा, बगैर इलाज मौतें, बेरोजगारी, भिखारी, वेश्यावृत्ति, चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार, छीनतई आदि जैसी समस्याओं से निजात मिल जाती है.
समाजवाद भारत की बहुसांस्कृतिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में सबसे जरूरी टास्क इसलिए है कि समाजवाद ही भारत की – जहां कोस-कोस पर पानी बदले, दस कोस पर वाणी – जैसी बहुरूपी राष्ट्रीयता को एक साथ विकास होने का अवसर प्रदान करती है, जिसे संघी मान्यता के अनुसार किसी एक रंग, भाषा, संस्कृति में नहीं ढ़ाला जा सकता.
विज्ञान के विकास के लिए समाजवाद क्यों है जरूरी ?
समाजवाद दुनिया की सबसे वैज्ञानिक व्यवस्था का नाम है. चूंकि यह व्यवस्था सबसे ज्यादा वैज्ञानिक है, इसलिए केवल इसी व्यवस्था में विज्ञान का सर्वाधिक विकास हो सकता है. इसे दो उदाहरणों से समझा जा सकता है-
जियो वनाम स्टारलिंक : भारत की अर्द्ध सामंती-अर्द्धऔपनिवेशिक समाजव्यस्था जिसमें हम रह रहे हैं, भारतीय दलाल पूंजीपतियों ने जियो के माध्यम से सर्वाधिक तेज इंटरनेट को ‘कर लो दुनिया मुट्ठी मेें’ कहते हुए स्थापित किया कि यह सारी दुनिया को जोड़ता है और सबसे आधुनिक और सबसे तेज-सबसे सस्ता इंटरनेट देता है.
लेकिन जियो का यह इंटरनेट कोरोना महामारी के दौरान करोड़ों भागते भारतीय प्रवासियों के दुःखद जीवन को आसान बनाने के बजाय भारत की अर्द्ध सामंती-अर्द्धऔपनिवेशिक समाजव्यस्था ने इसे आपदा में अवसर का नाम देते हुए जियो रिचार्ज का ऐन मौके पर न केवल कीमत ही बढ़ा दिया अपितु रिचार्ज की अवधि खत्म होते ही तुरंत न कवेल आउटगोइंग बल्कि इनकमिंग कॉल को भी बंद कर दिया गया था.
अब इसके दूसरे पहलू पर आते हैं- भारत में प्रधानमंत्री के विज्ञापन ब्यॉय के बाद अभी जियो चालू ही हुआ था कि दुनिया में लगातार हो रहे वैज्ञानिक विकास ने एलन मस्क की स्टारलिंक नामक सैटेलाईट इंटरनेट का विकास हो गया, जो न केवल बेहद सस्ता और तेज था अपितु समूची दुनिया में एक समान इंटरनेट की पहुंच को भी सुनिश्चित कर दिया है.
ज्यों ही स्टारलिंक की इंटरनेट ने भारत में अपनी धमक जमाई कि जियो के मालिक मुकेश अंबानी के हाथ-पांव फूल गये और भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर दवाब डालकर फौरन स्टारलिंक को भारत में अवैध घोषित कर दिया गया. और इस प्रकार विज्ञान के बढ़ते कदम को भारत की अर्द्ध सामंती-अर्द्धऔपनिवेशिक समाजव्यस्था ने बलपूर्वक रोक दिया.
जबकि समाजवादी व्यवस्था के तहत विज्ञान को हमेशा ही बेहतर माहौल और विकास के लिए बेहतर सुविधा प्रदान की जाती है, जिस कारण विज्ञान के विकास का उन्मुक्त माहौल मिल पाता है. तभी तो महज चंद वर्षों में सोवियत संघ, चीन वगैरह जैसे जर्जर देश को समाजवादी व्यवस्था ने दुनिया की महाशक्ति पद पर बिठा दिया.
कृषि में विज्ञान के विकास के लिए समाजवाद क्यों है जरूरी ?
भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन भारत के कृषि पर सबसे ज्यादा मार भारत की अर्द्ध सामंती-अर्द्धऔपनिवेशिक समाजव्यस्था की पड़ती है. नये नये वैज्ञानिक यंत्र किसानों को बेहद आसानी और उचित कीमत पर मिल ही नहीं पाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि कृषि का विशाल हिस्सा वैज्ञानिक यंत्रों यानी, विज्ञान के विकास का लाभ नहीं ले पाता है.
समाजवादी व्यवस्था में विज्ञान खुलकर सांसें ले पाता है, बकायदा सरकार की ओर एक हर जरूरतमंद जगहों पर कृषि यंत्रों का बंटवारा कर कृषि के विकास में असीम योगदान देता है जो केवल एक समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है.
समाजवाद पर क्यों हो रहे हैं हमलें ?
देश की सत्ता पर काबिज भाजपा-आरएसएस की सरकार जो देश में मौजूदा लोकतंत्र को खत्म कर देश को पीछे की ओर ले जाकर सामंती व्यवस्था बल्कि दास-मालिक व्यवस्था में ले जाना चाह रही है, जहां राजा-रानी की कहानी को वास्तविकता में लागू करने की कोशिश की जा रही है, जहां राजा की आज्ञा मात्र से किसी का सर उड़ाया जा सकता है, तो किसी को मालामाल किया जा सकता है. जैसे आज 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को जेल में डालकर तिलतिल मारा गया तो वहीं अडानी जैसे कुख्यात कॉरपोरेट को मालामाल किया गया.
संविधान पर हमले क्यों ?
यही कारण है कि आरएसएस-भाजपा की यह मोदी सरकार देश को सैकड़ों साल पीछे ले जाकर ‘ढ़ोल-गंवार-शुद्र-पशु-नारी…’ जैसी मानवद्रोही व्यवस्था को स्थापित कर मनुस्मृति को संविधान की जगह स्थापित करने की कोशिश कर रही है, जिसके राह में संविधान की प्रस्तावना में दर्ज समाजवाद और धर्म निरपेक्षता सबसे बड़ी बाधा है.
आरएसएस-भाजपा समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को निशाना बना रहा है. चूंकि भारत का संविधान कथनी में ही सही समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का पक्षपोषण करता है, इसलिए भाजपा-संघ सीधे संविधान पर हमला करता है, जिसका हर जागरूक प्रगतिशील और इंसाफपसंद मनुष्यों को विरोध करना चाहिए.
- (एक कार्यशाला में मेरे द्वारा पढ़ा गया पर्चा)
Read Also –
समाजवाद ही मानवता का भविष्य है
नेहरु द्वेष की कुंठा से पीड़ित ‘मारवाड़ी समाजवाद’ ने लोहिया को फासिस्ट तक पहुंचा दिया
प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ शब्द हटाने का बिल
लेनिन की कलम से : समाजवाद और धर्म
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]