मन्दिर से पहले मस्जिद थी
मस्जिद से पहले मन्दिर था
उस मन्दिर से पहले क्या था ?
एक खेत था शायद
धान का होगा या गेहूं का
सबकी भूख से रिश्ता था
भूख का कोई मज़हब नहीं है !
वो खेत कब का ज़ब्त हुआ
उस खेत के लिए कौन लड़ेगा ?
खेत से भी पहले क्या था
अल्लाह राम के नाम से पहले
क़ाबा काशी धाम से पहले
राम-राम सलाम से पहले
शायद घना एक जंगल था
जंगल में सब मंगल था
आदम अभी आदमी नहीं था
उसे आग लगानी नहीं आती थी
आग का कोई मज़हब नहीं है
वो जंगल जल कर राख़ हुआ
उस जंगल के लिए कौन लड़ेगा ?
जंगल से भी पहले क्या था
सां सां करता कहकशां था
हरसूं सिर्फ़ धुआं धुआं था
तूं कहां था, मैं कहां था
ना कोई हिन्दू ना मुसलमां था
ना किसी का नामो निशां था
बेनामोनिशां का कोई मज़हब नहीं था
वो कहकशां अब दैरो-हरम हुआ
कहकशां के लिए कौन लड़ेगा ?
- विनोद धुवां
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