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माओवादी कौन हैं और वह क्यों लड़ रहे हैं ? क्या है उनकी जीत की गारंटी ?

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हम इसलिए नहीं हारे कि
हम लड़े नहीं साथी
बल्कि हम इसलिए हारे कि
हम जरूरत से बहुत-बहुत-बहुत कम लड़े

यह किसी नामचीन कवि के कविता का एक हिस्सा है. मुझे उस कवि का नाम याद नहीं है, और न ही उनकी कविता की हूबहू इन पंक्तियों की. लेकिन उनकी कविता का आशय यही था, जो एक दुकान में पोस्टर की शक्ल में मौजूद था. मुझे वह पोस्टर कविता बहुत खूबसूरत लगा. फलतः मैंने वह पोस्टर कविता खरीद लिया और अपने हॉस्टल के कमरे के दिवाल पर टांग दिया.

मैं जब कॉलेज से लौटकर आया तो देखा कि वह पोस्टर वहां नहीं है. मुझे बेहद गुस्सा आया. पूछने पर मालूम हुआ कि हॉस्टल सुपरिंटेंडेंट आया था और वह पोस्टर देखकर भड़क उठा और तत्क्षण उसे जप्त कर लिया. फिर उसने फरमान सुनाया कि मेरे हॉस्टल आते ही सुपरिटेडेंट के कक्ष में आने के लिए कहा जाये. मैं नहीं गया लेकिन एक सवाल छोड़ गया कि सच को ठीक इसी तरह कहा जा सकता है, इसके अलावा और कोई जरिया नहीं है.

अब जब छत्तीसगढ़ में भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा किया है कि वह 31 मार्च, 2026 तक भारत से माओवादियों को खत्म कर देंगे, सवाल है क्या अमित शाह और उसकी सैन्यतंत्र सच में ऐसा कर सकता है ? ज्ञात हो कि छतीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने बाद से इस वर्ष के जनवरी से अबतक छत्तीसगढ़ में 194 माओवादियों का हत्या किया जा चुका है.

समूचे देश में आम मेहनतकश जनता और औरतों के खिलाफ भाजपा शासित यह भारत सरकार जिस तरह हत्या और बलात्कार का उद्योग खोल दिया है, लूट, भ्रष्टाचार और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश का कुचक्र चला दिया है, विरोध के किसी भी स्वर को खत्म करने के लिए सेना, पुलिस, सीबीआई, ईडी, सुप्रीम कोर्ट बगैरह का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है, माओवादियों के खिलाफ उसकी घोषणा का एक समीक्षा कर ही लेनी चाहिए.

माओवादी कौन हैं और वह क्यों लड़ रहे हैं, का सीधा जवाब है वह देश के 95 फीसदी गरीब मेहनतकश आवाम के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा, मकान, इंसाफ की गारंटी देने की लड़ाई लड़ रहा है. चूंकि मौजूदा भारत सरकार न केवल इस गारंटी को देने से इंकार कर रही है अपितु, जो कुछ भी अभी तक जनता को मिला हुआ था, उसे भी छीन रही है. तो ऐसे में सीधा कहा जाना चाहिए कि यह 95 फीसदी बनाम 5 फीसदी के बीच की लड़ाई है.

जैसा कि सीपीआई (माओवादी) के पूर्व महासचिव व सिद्धांतकार गणपति ने अपने एक साक्षात्कार में बताया है कि माओवादी पार्टी देश की जनता और उनके विकास का केंद्र बनना चाहती है, उनकी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना चाहती है. हम 95% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. लोगों को एकजुट करने के लिए अधिक अनुकूल वस्तुगत परिस्थितियां हैं और लोग भी ऐसी पार्टी चाहते हैं जो उनके हितों की सेवा करे. हम बुर्जुआ और शोषक व्यवस्था में आंशिक सुधार के लिए काम नहीं कर रहे हैं. हम लोगों की सामाजिक-आर्थिक मांगों के साथ-साथ समाज के बुनियादी ढाचे में गुणात्मक बदलाव के लिए लड़ रहे हैं.

जल-जंगल-जमीन के सवाल को लेकर राजसत्ता पर कब्जा करने की राजनीति की शुरुआत भारत में पहली बार नक्सलबाड़ी से हुआ और समूचे देश में गूंज गया. ‘भारत में वसंत का बज्रनाद’ बताते हुए माओ त्से-तुंग की अध्यक्षता वाली चीन ने पूरजोर समर्थन किया और यह पहली बार था जब भारत की कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आंदोलन को दुनिया के कम्युनिस्ट जगत में व्यापक समर्थन मिला.

नक्सलबाड़ी से राजसत्ता पर कब्जा करने की निकली चिंगारी को बुझाने की कोशिश में भारत सरकार को नानी याद आ गई और तकरीबन 20 हजार से ज्यादा बंगाली युवाओं समेत नक्सलबाड़ी की राजनीति के प्रणेता चारु मजुमदार की हत्या करने के बाद भी यह चिंगारी बुझ न सकी और दावानल की भांति समूचे देश में फैल गई और तमाम जगहों पर लोगों ने हथियार उठा लिए.

फिर क्या था, जल्दी ही वह दौर भी आ गया जब शासक वर्ग को नक्सलवादियों के कत्लेआम के लिए बकायदा एक तंत्र विकसित करना पड़ा, बावजूद इसके नक्सलवादियों ने भारत के इतिहास में पहली बार 2004 में एक केन्द्रीय पार्टी सीपीआई (माओवादी) का गठन कर भारत सरकार को सीधी चुनौती पेश कर दी. इतना ही नहीं उसने बकायदा एक राजसत्ता की भी स्थापना कर दी – जनताना सरकार.

माओवादियों ने भारत की मेहनतकश जनता के सामने ‘भारत सरकार’ के अन्याय और जुल्म के विकल्प में ‘जनताना सरकार’ की अवधारणा पेश की और उसे जमीन पर उतारा. जनताना सरकार के तहत माओवादियों ने अपने समस्त प्रभाव क्षेत्र में शिक्षा के लिए स्कूलों, चिकित्सा के लिए अस्पतालों, न्याय के लिए जन-अदालतों, सड़कें, बिजली के लिए सौर ऊर्जा समेत अन्य माध्यम, यहां तक कि जरूरत मंदों के लिए मकानों तक का भी निर्माण कर रहा है. झील, तलाबों आदि तो बनाये ही जाते हैं. इसके अलावा जनता की मांग के अनुसार अन्य कार्य भी किये जाते हैं

ऐसा नहीं है कि यह सारे कार्य केवल दण्डकारण्य में ही किये जाते हैं, समूचे देश में हर उस जगह जहां माओवादियों की जनताना सरकार का प्रभाव ये सारे कार्य किये जाते हैं. महिलाओं के खिलाफ हिंसा या बलात्कार पर तो सबसे पहले रोक लगाती है और अपराधियों को तत्क्षण दंडित करती है.

तात्पर्य यह है कि माओवादियों की जनताना सरकार अपने प्रभाव क्षेत्र की जनता की हर जरुरतों का ख्याल रखती है, जो किसी भी सरकार को रखना चाहिए. चूंकि भारत सरकार केवल लुटेरों का एक गिरोह बनकर लोगों के संसाधनों को लुटने और मारने आती है, औरतों के साथ बलात्कार करने आती है, तो स्वभाविक तौर पर जनताना सरकार उसके काम में बाधा के तौर पर नजर आती है, इसलिए वह जनताना सरकार को खत्म करना चाहती है. चूंकि जनताना सरकार को संरक्षण सीपीआई (माओवादी) देती है, इसलिए भारत की यह भ्रष्ट, शोषण-दमनकारी सत्ता माओवादियों को खत्म करने का सायरन बजाती रहती है.

यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य बताना जरूरी है कि जनताना सरकार के अधीन इलाकों में महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं होता है, उसे पूरी स्वतंत्रता होती है, बलात्कार जैसी घटनाएं, जो भारत के अन्य हिस्सों में रोज की बात है, यहां नहीं होती. यही कारण है कि जनताना सरकार के क्रियाकलापों में महिलाओं की सबसे ज्यादा भागीदारी होती है. इतना ही नहीं जनताना सरकार की हिफाजत के लिए मौजूद माओवादियों और उसकी पीएलजीए आर्मी में भी महिलाओं की भागीदारी 60% से भी अधिक है, जो मौजूदा भारत सरकार का मूंह चिढ़ाने के लिए काफी है. जहां आज भी महिलाओं के 30% आरक्षण देने पर भी बबाल काटा जाता है.

यही कारण है कि भारत की यह सरकार न केवल जनताना सरकार को खत्म करने के लिए लाखों की तादाद में प्रशिक्षित सैन्य टुकड़ियों को लगाई है, बल्कि जनताना सरकार द्वारा संचालित व निर्मित स्कूलों, चिकित्सा संसाधनों बगैरह को भी ध्वस्त कर रही है. स्वभाविक तौर पर यह जनाक्रोश को भड़कायेगी. इतना ही नहीं, जिन 194 माओवादियों और उनके समर्थकों की ठंढ़े दिमाग से हत्या की गई है, वह इस जनाक्रोश में घी ही डालेगी.

बात केवल यहीं पर थम जाये तो एक बात होगी. जैसे जैसे जनताना सरकार का प्रभाव क्षेत्र बढ़ता जायेगा, हत्याओं की संख्या भी बढ़ती जायेगी. आश्चर्य नहीं होगा यह संख्या एक दिन में हजारों तक पहुंच जाये. यानी, यह दो सत्ताओं (भारत सरकार और जनताना सरकार) के बीच की लड़ाई है, जिसमें जनताना सरकार को न केवल भारत सरकार की पुलिस बल्कि सेनाओं से युद्ध लड़ना होगा और उसे हराना होगा. गौरतलब हो कि भारत सरकार जो अत्याधुनिक हथियार और परमाणु बम बनाया है, उस सबका इस्तेमाल भारत की मेहनतकश जनता के उपर ही किया जायेगा.

बल्कि यों कहें, भारत सरकार के सेनाओं को हराने के बाद जाहिरा तौर पर अमेरिकी सेना यानी, नाटो से भी लड़ना होगा. उस वक्त यह संख्या (दोनों ओर से) रोज हजारों में भी हो सकती है. यही कारण है कि एक पत्रकार के आंकलन में जनताना सरकार की जीत की सूरत में हत्याओं की यह संख्या 25 से 30 करोड़ तक हो सकती है. चीन की समाजवादी सरकार की स्थापना में तकरीबन 2 करोड़ लोगों की मौतें हुई थी, वह भी तब जब चीन की जनसंख्या 45 करोड़ के आसपास थी. भारत के संदर्भ में जनसंख्या के अनुपात में 25-30 करोड़ की संख्या बेहद मामूली है.

भारत सरकार, जो कॉरपोरेट घरानों की चाकर बनी हुई है और उसका लठैत बनकर देश की मेहनतकश जनता पर शोषण-दमन का चक्र बैठाकर जिस स्वर्ग को अपने लिए बना रखा है, उसे वह इतनी आसानी से छोड़ने नहीं जा रहा है, वह जान लड़ा देगा. खून की दरिया बहा देगा. ऐसे में जनताना सरकार को भी अपनी ताकत और प्रभाव क्षेत्र में चौगुनी गति से इजाफा करना होगा. क्योंकि नुकसान बड़ा होगा तो उसकी भरपाई के लिए भी बड़ा क्षेत्र मजबूती से तैयार करना होगा.

यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि दमन जितना होगा, प्रतिरोध उतना ही तीखा होगा. जैसा कि माओवादियों की सेन्ट्रल कमिटी की ओर से एक पत्रकार को प्रेषित पत्र में स्पष्ट किया गया था. उन्होंने बताया कि – ‘जब से माओवाद का जन्म हुआ है, 1980 से तब से लेकर 2003 तक उन्हें जितनी उपलब्धी नहीं मिली, उससे ज़्यादा उपलब्धी जब भाजपा की सरकार आई, तब मिली. भाजपा के शासनकाल में माओवादियों ने एक सल्वाजुडूम को हराया. उन्होंने अपरेशन ग्रीन हंट को भी मूंहतोड़ जवाब दिया और ऐसा ही अपरेशन समाधान को समझकर उसका समाधान निकाला.’

उन्होंने आगे लिखा है कि ‘2003 में जब पहली बार भाजपा सत्ता में आई तब हमारे पास कोई बटालियन की बात तो दूर कंपनी तक नहीं थी लेकिन उनके शासन काल में बहुत सारे कंपनी, प्लाटून और यहां तक की बटालियन भी बन गए. हमें एक तार मेटला का अनुभव मिला. जीरा गुड़ा मतलब की जो टेकल गुड़म में जहां 22 जवान मारे गए थे, तक की अनुभव को हमने देखा है, उनसे सीखे हैं और साथ ही साथ हमारी बहादुर जनता अपने प्यारे बच्चों को सैकड़ों की संख्या में पीएलजीए में भर्ती कर जांबाज गोरिल्लाओं में तब्दील करने के लिए जीतोड कोशिस कर रहे हैं.

’80 दशक में मिट्टी के मटका में खाना खाकर, इमली की रस में खाना एक टाईम खाने वाले और आधे नंगे आदिवासी या देश की पीड़ित जनता के सामने नमुना के रूप में वैकलपिक सरकार ‘जनतान सरकार’ को खड़ा किये. छत्तीसगढ़ राज्य बन कर 23 साल हो गया, इसमें ज्यादातर समय भाजपा ने ही शासन किया लेकिन आदिवासी बच्चों को मातृ भाषा में पढ़ाई नहीं मिला. आज जनताना सरकार के स्कूलों में मातृ भाषा में बच्चे खुशी से पढ़ रहे हैं. इसे हम हिंदुत्ववादी शक्तियां और कॉरपोरेट घरानों से और उनके सुरक्षा में तैनात खाकी बलों से लड़कर ही हासिल कियें.

‘उपरोक्त सफलता हासिल करने के लिए हमारे बहादुर जनता को बहुत अनमोल बलिदान देना पड़ा. बस्तर की जनता के खून से बोया गया. आप तो गुन्डाधूर से लेकर भगत सिंह तक और बाद में प्रविर्चन भंजदेव तक शायद जानते होंगे. उससे पहले का स्पार्टाकस मतलब गुलाम समाज का इतिहास तो जगजाहिर हैं. इसलिए क्रांति का मतलब भी बलिदानों के साथ दुनिया को बदलना है. क्रांति का मतलब यह नहीं कि एक पार्टी की जगह दूसरी पार्टी चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा हो और कोई भी पार्टी हो, आ जाये. क्रांति का मतलब एक वर्ग के हाथ से दूसरे वर्ग सत्ता को हस्तान्तरण करना है. पीड़ित, शोषित, वंचित, गरीब, मेहनतकश लोग एक जुट होकर लुटेरे और शोषक वर्गों से सत्ता हस्तान्तरण करना है.

‘हम एक बात यहां पर स्पष्ट करूंगा कि हमारे दुश्मन जितना ताकतवर होंगे, जितना धूर्त और कपटी होंगे, उससे ज्यादा शक्तिशाली और चतुर हमको बनना पड़ेगा. जनता इतिहास का निर्माण करता है.

‘आपसे जिस एसपी साहब ने माओवादियों को खत्म करने की बात किया, वो भी बहुत अच्छी बात है, हम भी वही सोचते हैं कि इस दुनिया से मार्क्सवाद, माओवाद, गांधीवाद और सावरकरवाद की जरुरत ही ना हो, इसके लिए हमारी तरफ से आप कृपया उन महान एसपी साहब को (और अब गृहमंत्री अमित शाह को भी-सं.) ये बात बताईए, कि इस दुनिया से हर एक वाद को खासकर माओवादियों को खत्म करने से पहले दुनिया को लूट, उत्पीडन से मुक्त करें, यदि वह उनकी खाकी साहब से नहीं हो सकता, तो माओवादी चाहे दूसरे कोई भी नाम से दुनिया में पनपेगा.’

जाहिर है माओवादियों द्वारा संचालित ‘जनताना सरकार’ देश के 95 फीसदी मेहनतकश जनता का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन पांच प्रतिशत वाले पूंजीपतियों के चाकर बनी यह भारत सरकार इन 95 फीसदी मेहनतकश लोगों के बेटों को लालच या अन्य तरीकों से अपनी तरफ करके मेहनतकशों के सपनों का जनताना सरकार को ध्वस्त करने के लिए बंदूक लेकर भेजती है. अतएव, माओवादियों की जनताना सरकार को अपनी हिफाजत और जीत में बड़ी तादाद में अत्याधुनिक फौज और सशस्त्र उपकरणों को तैयार करना होगा, जमकर लड़ना होगा ताकि जीवन मौत की इस लड़ाई में जीत दर्ज की जा सके.

  • महेश सिंह

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