विष्णु नागर
अभी इसी हफ्ते एक अखबार की मुख्य खबर का 72 पाइंट में हेडिंग था- ‘कब सुधरेगी पुलिस ?’ हेडिंग क्या था, भरा-पूरा, हृष्ट-पुष्ट सवाल था. बहुत ही मौजूं सवाल था और उसकी बहुत ही मौजूं हेडिंग थी ! मैं वाह-वाह कर उठा. काश पत्रकारिता में होते हुए मैं कभी इतना बढ़िया हेडिंग दे पाता !
वैसे जब कोई लोकप्रिय अखबार इतना महत्वपूर्ण सवाल करे तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए और गंभीरता से उसका जवाब देना चाहिए. मगर यहां गंभीर है कौन ? जिसे गंभीर होना चाहिए, वह खुद सबसे बड़ा मसखरा है. खैर छोड़ो उसे. अभी-अभी वह बेचारा यूक्रेन और रूस के बीच ‘युद्ध रुकवा’ कर आया है ! थका होगा. मसखरे हर तरह का काम कर लेते हैं, जिसमें युद्ध रुकवा भी शामिल है.
तो मूल बात पर आते हैं. पुलिस कब सुधरेगी, यह कोई आरोप नहीं है, टिप्पणी है. आरोप होता तो आइजी, डीआइजी, पुलिस कमिश्नर स्तर का कोई अधिकारी तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसका खंडन करता या पुलिस प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहती कि इस देश की पुलिस तो पहले से ही बहुत सुधरी हुई थी, मगर 2014 के बाद के दस वर्षों में उसे इतना अधिक सुधार दिया गया है कि अब उसमें और सुधार संभव नहीं.
सारी दुनिया आज विश्वगुरु की इस पुलिस का कीर्तन कर रही है. इसकी ओर आशा की नजरों से देख रही है कि काश हमारी भी पुलिस इतनी ही शानदार, इतनी ही वजनदार होती !अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों की पुलिस के अधिकारी उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर विशेषज्ञ पुलिस से प्रशिक्षण प्राप्त करने लिए आना चाहते हैं, मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इसकी मंजूरी नहीं दे रहे हैं. वह अपनी पुलिस की विशेषज्ञता का लाभ किसी और देश से क्या किसी और राज्य से भी साझा करना नहीं चाहते !
तो मूल प्रश्न अखबार का यह है कि पुलिस कब सुधरेगी ? इसका सही जवाब किसी न किसी को तो देना पड़ेगा. जब कोई जवाब देने को तैयार नहीं है तो सोच रहा हूं मैं ही दे दूं कि हमारी पुलिस कभी नहीं सुधरेगी बल्कि मैं इतना और जोड़ना चाहूंगा कि पुलिस के न सुधरने में ही इस देश की इस व्यवस्था का कल्याण है.
हमारी पुलिस के पास नागरिकों को सुधारने की तो अकूत क्षमता है, जिसका प्रदर्शन वह देश के हर भाग में हर दिन करती रहती है, मगर जहां तक उसके अपने सुधरने का सवाल है, वह न तो अपने आप सुधर सकती है, न किसी को वह मौका देगी कि उसे सुधारे. उसे सुधारने की रिस्क ले कौन ? महामानव जी ? महामानव जी नोटबंदी करने की रिस्क ले सकते हैं, उसके लिए किसी भी चौराहे पर फांसी पर लटकने को भी तैयार हो सकते हैं मगर पुलिस के साथ उनका पुराना समझौता है कि न वह उन्हें सुधारेगी, न वह उसे सुधारने का दुस्साहस करेंगे.
कल्पना करो पुलिस किसी चमत्कार से सुधरने के लिए तैयार हो गई तो ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’ कि तर्ज पर वह अकेले नहीं सुधरेगी. उसकी शर्त होगी कि हम सुधरेंगे तो सबको सुधरना पड़ेगा. सीआईडी, सीबीआई, ईडी-फीडी, जो भी है, सबको सुधरना पड़ेगा. प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर देश और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, अधिकारियों, जजों, वकीलों, सेठों, दलालों, तस्करों, माफियाओं, चम्मचों, छुरियों-कांटों-प्लेटों इनमें से एक-एक को सुधरना पड़ेगा. क्या यह देश इतना अधिक सुधार झेलने में समर्थ है ?
जिस देश में सड़कें बरसात का भार नहीं झेल पातीं, कार और ट्रक ही नहीं, बरसात के पानी की धार का भार तक पुल नहीं सह पाते, सोने के पत्तर का वजन मंदिर सह नहीं पाते, उसे पीतल में बदलकर सहनीय बनाना पड़ता है, उस देश से ऊपर से नीचे तक सुधार का इतना बड़ा भार सहा जाएगा ? इससे सारी व्यवस्था छिन्न-भिन्न नहीं हो जाएगी ? सारे स्वार्थ तहस नहस नहीं हो जाएंगे ? प्रलय नहीं आ जाएगा ? कौन संभालेगा तब ? महामानव जी ?
जब किसी निरपराध को सताने, चोरी, डकैती, हत्या , लफंगई करवाने, ठेका दिलवाने, घूस खाने, तस्करी करवाने, नियुक्तियां और स्थानांतरण करवाने, सेठों को उपकृत करके उनसे उपकृत होने, संविधान की आरती उतारकर उसकी इज्जत उतारने का अधिकार नहीं होगा, तब तक महामानव क्या मंदिर का घंटा बजाने के लिए प्रधानमंत्री बनने को तैयार होगा ? सब सिस्टम से चलने लगेगा तो क्या नेता से लेकर चपरासी तक आत्महत्या करने को विवश नहीं हो जाएंगे ?
ऊपर से नीचे तक अगर केवल इतनी सी क्रांति हो गई तो क्या देश की वर्तमान एकता का ढांचा चरमरा नहीं जाएगा, जो कि प्रधानमंत्री से लेकर चपरासी तक के न सुधरने और न सुधरने देने पर दृढ़ता से टिका हुआ है ? जिस दिन सब सुधर गया तो तय मानिए उसी दिन उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक सब तितर-बितर हो जाएगा. गर्व से कहो, हम हिंदू हैं, चकनाचूर हो जाएगा. महामानव का नामलेवा नहीं रह जाएगा.
मान लो ईडी सुधर गई. उसने कहा कि श्रीमन अब हम आपके आदेश पर आपके विरोधियों को एकतरफा तौर पर गिरफ्तार नहीं करेंगे. मामला ठोस होगा, सबूत पक्के होंगे, तब हम मनी लांड्रिंग के केस में किसी को गिरफ्तार करेंगे, चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह आप खुद हों. अगर ऐसा हुआ तो बताइए इस देश का क्या होगा ? क्या यह रसातल में नहीं चला जाएगा ? होगी किसी में हिम्मत तब उसे निकालने की ? है किसी के सीने में छप्पन इंच का दम ? ऐसी स्थिति में कोई भी सरकार इस देश को क्या चार दिन भी चल पाएगी और यह वाली सरकार क्या एक घंटा भी इसे चला पाएगी ?
पुलिस ने कह दिया कि सरकार जी आपके लोग हर वेश में हर जगह गुंडागर्दी कर रहे हैं, लोगों का जीना हराम कर रहे हैं, हत्या और बलात्कार कर रहे हैं, घरों और दुकानों पर जब चाहे, बुलडोजर चलवा रहे हैं, जिसको चाहे गिरफ्तार करवा रहे हैं, हम सबसे पहले इनके खिलाफ कड़ा से कड़ा एक्शन लेंगे ताकि सभी गुंडों-बदमाशों- सफेदपोश अपराधियों, यहां तक कि सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे व्यक्तियों तक भी यह संदेश जाए कि बयानों में ही नहीं वास्तव में भी किसी को बख्शा नहीं जाएगा.
अब पुलिस, सीबीआई, ईडी सब कानून से चलेगी तो बताइए यह राजनीतिक धनतंत्र एक दिन भी टिक सकता है ? हर एफआईआर मान लो टाइम पर होने लगे, हर जांच पुख्ता होने लगे, हर अपराधी जेल में होने लगे, ऊपर के आदेशों का पालन बंद हो जाए, अधिकारी और जज दबाव में काम करने से मना कर दें तो क्या होगा इस देश का ? इसकी अपनी विशिष्ट पहचान का ?
पुलिस खुद जो आज चलती सी लगती है, एक कदम भी चल पाएगी ? उसका ऊपर से नीचे तक का बना बनाया, सजा-संवरा ढांचा बिखर नहीं जाएगा ? उसकी वर्दी का रौब साधारण नागरिकों पर नहीं चला तो बताइए क्या होगा ? इसकी चिंता है किसी को ? अगर होती तो अखबार ऐसा सवाल पूछने का साहस नहीं करता.
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