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जब बीच चुनाव गरीबी का असामयिक देहांत हो गया

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विष्णु नागर

उस दिन सुबह अखबार उठाया तो उसमें 72 पाइंट में एक सनसनीखेज़ खबर थी कि ‘कल देर रात अचानक दिल का दौरा पड़ने से गरीबी का देहांत हो गया.’ इस गंभीर राष्ट्रीय क्षति से पूरा देश स्तब्ध है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों तथा विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों आदि ने गरीबी के असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है.

प्रधानमंत्री तो यह खबर सुनकर रो पड़े. उन्होंने भर्राए गले से कहा कि ‘वैसे तो गरीबी को इस देश में सैकड़ों-हजारों वर्षों से असीम लोकप्रिय प्राप्त थी. वह हमारी संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग थी‌, मगर मेरी सरकार ने उसकी लोकप्रियता को जिस नई ऊंचाई तक पहुंचाने का काम किया, वह पिछले सत्तर वर्षों में कभी नहीं हुआ था.

‘जन-जन में उसकी लोकप्रिय बढ़ाने के लिए हमने विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम चलाए थे और मैंने स्वयं इनकी निगरानी कर रहा था, ताकि किसी स्तर पर कोई कमी, कोई दोष न रह जाए. हमारे कार्यकाल में उसे नई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ऊंचाई मिली थी कि अचानक यह वज्रपात हो गया.

‘गरीबी, हमारी सरकार की नीतियों-रीतियों से बेहद खुश थी. विपक्षी सरकारें उससे दुश्मनी निभा रही थीं, उसे जड़मूल से खत्म करने की घोषणा करके उसके दिल पर चोट पर चोट करती जा रही थी. मैंने आकर सबसे पहले उसे आश्वस्त किया कि जब तक मै हूं, तुम्हारा द्रुतगति से विकास होता रहेगा क्योंकि तुम्हारा विकास ही देश का, संस्कृति का और मेरा विकास है.

‘अगर हमारी नीतियों पर आगे भी चला गया तो मैं गारंटी दे सकता हूं कि अगले दो सौ वर्षों और उससे आगे तक गरीबी का सुनहरा भविष्य सुरक्षित है ! गरीबी ने मेरे सिर पर हाथ रखकर वचन दिया था कि बेटा, जब तक तू इस देश के प्रधान रहेगा, मैं तेरा साथ मन- वचन और कर्म से निभाऊंगी. मुझे अपने से ज्यादा भरोसा तेरी नीतियों-कार्यक्रमों पर है. तूने पत्नी का साथ भले छोड़ा हो पर तू मेरा साथ मरते दम तक नहीं छोड़ सकेगा. वह सात फेरे का रिश्ता था, यह मां- बेटे का अटूट संबंध है.

‘तुझसे पहले की कई सरकारें मुझे हटाने और मिटाने की बात करती थीं मगर बेटा, एक तू आया है, जिसने कभी ऐसी गन्दी और घटिया बात नहीं की, न ऐसा कोई काम किया. तू मुझे अजर-अमर बनाकर स्वयं भी अजर-अमर होना चाहता है. कितने ऊंचे और पवित्र आदर्श हैं तेरे. ऐसा बेटा, मुझे हर देश और हर काल में मिले.

‘गरीबी, मेरी मां, इस देश में बेहद आदर और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर रही थी‌. हर दूसरा घर उसका अपना घर था. आज उसकी कमी बहुत खल रही है. उसके बिना यह देश सूना-सूना लग रहा है. भारत के अस्तित्व के लिए आज खतरा सा पैदा हो गया है. इसके पीछे निश्चित रूप से देशी और विदेशी ताकतों का सुनियोजित षड़यंत्र है.

‘ये गरीबी को हटाने की बात इसलिए करती थीं कि वे मुझे हटाना चाहती हैं. मैं इसे सफल नहीं होने दूंगा. गरीबी को पुनर्जीवन देकर रहूंगा. मैंने उन जड़ी-बूटियों की तलाश के आदेश दे दिए हैं, जिनसे उसे पुनर्जीवित किया जा सके ताकि देश में फिर से हर्ष की लहर दौड़ जाए्, अच्छे दिन लौट आएं !

‘मैं आपको गारंटी देता हूं कि भगीरथ इस धरती पर गंगा लाए थे और मैं मृत गरीबी को इस अमृतकाल में नया जीवन देकर रहूंगा, उसके लिए जितनी भी तपस्या मुझे करनी पड़े, करूंगा और उसमें कोई कमी नहीं आने दूंगा. सौ वर्ष की आयु के बाद भी मैं इस देश का प्रधानमंत्री रहूंगा ताकि गरीबी को फिर से फलता-फूलता देख सकूं. देश के जीवन में नई ऊर्जा ला सकूं. मैं ग़रीबी की इतनी सेवा भी न कर सका तो मेरे इस जीवन को धिक्कार है !

‘मुझे यह बताने में तनिक संकोच नहीं कि आज मैं जहां हूं, गरीबी की कृपा से हूं. वह मेरी मां से बढ़कर मां थी. मां ने तो मुझे केवल जन्म दिया, मुझे यहां तक पहुंचाया मेरी गरीबी मां ने. न गरीबी होती, न प्रधानमंत्री के रूप में मेरी प्रतिभा का उत्खनन होता. वह मेरे लिए ईश्वर से भी ऊपर थी. मैं उसकी नित्यप्रति पूजा करता था और उसका आशीर्वाद लेने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत करता था.

‘ईश्वर से नित्यप्रति प्रार्थना करता था कि हम सबकी पुरखा, हमारी यह पूर्वज, इसी तरह तंदुरुस्त, जवान और चपल -चंचल बनी रहे. मेरी इस प्रार्थना का असर दिनों-दिन हो रहा था. गरीबी दिनों-दिन अपने पंख पसार रही थी, पर अचानक पता नहीं कहां से, क्या हुआ और यह हादसा हो गया. मैं स्वयं सदमे में हूं. यह राष्ट्रीय के साथ, मेरी व्यक्तिगत क्षति भी है.

‘प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरे-उसके संबंध प्रगाढ़ हुए थे. मेरी सरकार उसे उचित और पर्याप्त पोषण दे रही थी. मुझे‌ तनिक भी आशंका नहीं थी कि वह हमें अचानक छोड़कर, अनाथ बनाकर इस तरह अकस्मात चली जाएगी. ईश्वर हम सबको इस अपार दु:ख को सहने की शक्ति दे. हम एक उच्चस्तरीय जांच बैठा रहे हैं. गरीबी जिन्दाबाद !’

इधर राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में गरीबी के निधन से अपार दु:ख की लहर व्याप्त हो गई थी. सब किंकर्तव्यविमूढ़ थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि गरीबी नहीं रहेगी तो यह देश कैसे चलेगा, सरकार कैसे चलेगी, राजनीतिक पार्टियां क्या करेंगी ? धर्म और जाति से बड़ा, गरीबी का वोट बैंक था. उसके अचानक लुप्त होने का खतरा पैदा हो चुका था. अब समस्या यह थी, दु:ख यह था कि पांच किलो मुफ्त अनाज और धन्यवाद योजना का क्या होगा ?

सबसे अधिक चिंता की बात यह थी कि गरीबी की मौत की खबर उस समय आई, जब चुनाव प्रचार उरूज़ पर था. विभिन्न दलों के घोषणापत्र और संकल्प पत्र आदि जारी हो चुके थे. गारंटियां दी जा चुकी थी. उनमें अगले पांच साल में गरीबी मिटाने की बात थी, मगर अब वाकई गरीबी छू-मंतर हो चुकी थी, मर चुकी थी, स्वर्गवासी हो चुकी थी. गहरा और वास्तविक दु:ख यह था.

सारी पार्टियां मुद्दाविहीन हो चुकी थी. उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा था. शासक पार्टी तो विशेष रूप से चिंतित थी‌. इस बीच घोषणा हुई कि गरीबी के निधन से पैदा हुई विकट स्थिति में चुनाव स्थगित किए जाते हैं. चुनाव की तारीखों की अगली घोषणा उचित मुहूर्त में निर्वाचन आयोग करेगा, ताकि ऐसी अशुभ घड़ी इस देश के जीवन में दुबारा न आए‌.

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