Home लघुकथा जब मैं पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने पाकिस्तान पहुंचा

जब मैं पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने पाकिस्तान पहुंचा

2 second read
0
0
237

मैंने फैसला किया कि अब जब फेसबुक पर युद्ध का एलान हो ही चुका है तो चलकर पाकिस्तान का नामो निशान मिटाने के महान काम में मुझे भी अपना योगदान देना चाहिए. मैं राजस्थान के गड़रियों के साथ मिलकर पाकिस्तान में दाखिल हो गया.

पाकिस्तान में घुसने के बाद मैंने आस पास नज़र दौड़ाई कि पाकिस्तान को बर्बाद करने की शुरुआत कहां से की जाय ? मेरे आस-पास रेत का मैदान और झाड़ियां थीं. मैंने थोड़ी सी रेत बर्बाद करने की मंशा से हवा में उड़ा दी और सोचा कि कि कम से कम पाकिस्तान की कुछ रेत ही बर्बाद कर दूं लेकिन वह रेत उड़ कर वापिस मेरी आँखों और कुछ मुंह में घुस गई.

अपना पहला वार खाली जाने के बाद गुस्से से मैंने कुछ पाकिस्तानी झाड़ियों को बर्बाद करने के लिहाज़ से उन्हें उखाड़ना चाहा लेकिन रेगिस्तानी झाड़ियां कांटों से भरी होती हैं इसलिए मेरे हाथ में कांटे घुस गये. झाड़ियों को कोसते हुए मैंने झाड़ियां बर्बाद करने का आइडिया भी ड्राप कर दिया.

मैंने दूर नज़र दौड़ाई तो वहां से मुझे धुंआ उठता दिखाई दिया. मैंने सोचा ज़रूर ये पाकिस्तानी आग जला कर भारत को जलाने की तैयारी में लगे हुए होंगे. जब मैं धुंए के नज़दीक पहुंचा तो मैंने देखा कि धुंआ एक झोपड़ी से निकल रहा था. मैंने सोचा अंदर आतंकवादी होंगे. मैंने हाथ में एक डंडा ले लिया और घर के पीछे की तरफ गया.

घर के पीछे एक खिड़की थी. मैंने चुपके से खिड़की के भीतर झांका तो भीतर एक बूढ़ा आदमी चूल्हे पर रोटियां सेक रहा था. कमरे में दीवार के साथ एक खाट पर एक बूढ़ी औरत लेटी हुई थी. वो शायद बीमार थी क्योंकि वो बार-बार खांस रही थी. ज़मीन पर एक बच्चा बोरी का टुकड़ा बिछा कर पढ़ रहा था.

मेरे खिड़की के झांकने से कमरे में आने वाली रोशनी कम हुई बूढ़े व्यक्ति ने मुझे नज़र उठा कर देखा और पूछा – ‘कौन हो भाई भीतर आ जाओ.’ मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. मुझे लगा अगर मैंने भागने की कोशिश की तो अभी यह बूढ़ा चूल्हे के पीछे से एके फोर्टी सेवेन निकाल कर मुझे भून देगा. मैं डरते-डरते सामने के दरवाज़े से घर के भीतर चला गया.

बूढ़ी महिला खटिया पर उठ कर बैठ गई. बच्चा भी पढ़ाई रोक कर मुझे देखने लगा. बूढ़े ने मेरे सामने बैठने के लिए एक लकड़ी का पीढ़ा सरका दिया और मटके से एक गिलास पानी निकालकर मेरे सामने खड़ा हो गया.

मैंने सोचा ज़रूर पानी में ज़हर डाल कर लाया होगा. लेकिन रेगिस्तान में इतनी देर चलने के बाद मेरा प्यास से बुरा हाल था इसलिए मैंने सारा पानी एक ही सांस में खत्म कर दिया.

बूढ़े ने कहा बेटा लगता है परदेसी हो रास्ता भटक गये हो. भूख लगी होगी लो रोटी खा लो. मेरे मना करने के बाद भी बूढ़े ने एक एल्मूनियम की थाली में दो रोटी और आलू की सब्ज़ी डाल कर मेरे सामने रख दी.

मैंने सोचा कि पाकिस्तान को बर्बाद करने के लिए जिंदा रहना ज़रूरी है इसलिए खाना खा लिया जाय. मैं खाना खा रहा था तभी बूढ़े ने कहा हिन्दुस्तान की तरफ से आये लगते हो ?

मुझे लगा कि ज़रूर यह बूढ़ा आईएसआई का एजेंट है. मैं घिर चुका था. मैंने डरते डरते कहा जी हां रास्ता भटक गया था. बूढ़े ने बेहद नरमी से कहा – ‘कोई बात नहीं यहां के गडरिये अपनी बकरियां चराते चराते कभी कभी हिन्दुस्तान में चले जाते हैं. मैं बोल दूंगा तो हमारे गांव वाले तुम्हें हिन्दुस्तान पहुंचा देंगे. मैंने सर नीचा करके कहा जी ठीक है.

बाहर रात हो गई थी. बूढ़े ने कहा बेटा रात यहीं रुक जाओ, सुबह तुम्हारी वापसी का इंतजाम कर देंगे. आधी रात को जब सब सो रहे थे तो मैं उठा और चुपके से बाहर निकल गया. काफी दूर चलने के बाद एक सड़क मिली. सड़क पर करीब एक किलोमीटर चलने के बाद एक ढाबा मिला.

ढाबे वाले से मैंने पूछा कि क्या यहां रुकने के लिए कोई इंतजाम हो सकता है. ढाबे वाले ने कहा कि इतनी सारी खाटें पड़ी हैं किसी पर भी सो जाइये.

ढाबे पर मैं सुबह सुबह उठ गया. सामने से एक ट्रक गुज़र रहा था. मैंने ट्रक को हाथ दिया और और उसमें सवार हो गया. एक कस्बा देख कर मैंने कहा मुझे यहां उतार दो.

जब उसे मैंने पैसे देने चाहे तो उसने भारतीय रूपये देख कर कहा कि ‘जी आप तो हमारे मेहमान हो. मैं आपसे पैसे कैसे लूंगा’, और ट्रक लेकर आगे बढ़ गया.

कस्बे में पहुंचने के बाद मैंने सोचा कि अब शायद मुझे पाकिस्तान को बर्बाद करने का मौका मिल सकता है. तभी मुझे एक फौज़ी दिखाई दिया. मैंने सोचा कि हां ,मेरी लड़ाई तो पाकिस्तान आर्मी से ही है क्योंकि ये फौज़ी ही तो हम पर हमला करते हैं.

फौज़ी के करीब जाकर मैंने बहाना बनाया कि मैं पत्रकार हूं और वीज़ा लेकर पकिस्तान में घूमने आया हूं. वो सिपाही मेरी बातों में आ गया.

मैंने उससे पूछा कि आपके भारत के बारे में क्या विचार हैं ? वो बोला कि देखिये सिपाही तो अफसर के आर्डर पर जंग लड़ता है. सिपाही की किसी से दुश्मनी नहीं होती. सिपाही तो हमेशा यही चाहता है कि अमन रहे.

उस फौज़ी ने कहा कि हमारे सामने बार्डर पर जो हिंदुस्तानी सिपाही खड़ा है वो पाकिस्तान के बारे में नहीं अपने बच्चों के बारे में सोचता रहता है. हम भी अपने बच्चों के भविष्य के बारे में फिक्रमंद रहते हैं.

फौज़ी ने बताया उसके दो बच्चे हैं, बीबी को कैंसर हो गया है, इलाज करा रहा है. उसने बताया कि मुझे हमेशा छुट्टी लेनी पड़ती है इसलिए अफसरों से कई बार मुझे ताने भी सुनने पड़ते हैं.

मुझे लगा इस फौज़ी को मारने से पकिस्तान को कोई नुकसान नहीं होगा, उलटे इसके अफसर खुश होंगे कि चलो एक बोझ कम हुआ.

पकिस्तान में घूमते हुए मैंने ग़रीब मजदूर देखे जो दिन भर काम करने के बाद भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते. मैंने किसान देखे, जो कड़ी मेहनत के बाद भी अपने परिवार को इलाज और शिक्षा देने में असमर्थ हैं. मैंने पढ़े लिखे नौजवान देखे जो बिना नौकरी के परेशान हैं.

मैंने पाकिस्तान में भी धार्मिक लोगों को मज़े में देखा. उन्हें देखकर मुझे भारत के धार्मिक नेताओं की याद आ गई जो धर्म के नाम पर हमें लड़वाते रहते हैं. पकिस्तान में भी ऐसे भड़काने वाले लोग बड़े ताकतवर थे.

मैंने देखा जैसे भारत में पाकिस्तान के खिलाफ भड़का कर वोट मांगे जाते हैं वैसे ही पाकिस्तान में भी भारत के खिलाफ भड़का कर नेता लोग वोट मांग रहे थे.

पाकिस्तान में मुझे एक युवक मिला. उसने मुझसे कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि भारत पाकिस्तान को और क्या बर्बाद करना चाहता है ? हम तो पहले से ही बर्बाद हैं ?

उसकी बातें सुन कर मुझे भारत की बर्बादी याद आ गई. हमारे भारत में भी तो किसान बर्बाद हो रहे हैं, मज़दूरों के ऊपर मज़दूरी बढ़ाने की मांग करने पर पुलिस लाठी चलाती है. हमारे देश में भी बड़े पूंजीपतियों के लिए लाखों आदिवासियों को जंगल से बाहर खदेड़ा जा रहा है.

अब पाकिस्तान को बर्बाद करने का मेरा जोश कमज़ोर पड़ने लगा था. मैं जहां भी जाता था मुझे भारतीय जान कर लोग मुझे बहुत प्यार देते थे. मैंने सोचा पाकिस्तान को बर्बाद करने का मतलब क्या इन प्यारे लोगों को बर्बाद करना है ? क्या हम इन स्कूल जाने वाले छोटे छोटे बच्चों को मारना चाहते हैं ? क्या हम इन निर्दोष औरतों को या रोज़गार तलाश कर रहे नौजवानों को मारना चाहते हैं ?

आखिर जब हम कहते हैं कि पाकिस्तान का नामो निशान मिटा दो तो हम इन निर्दोषों की हत्या के लिए तो अपनी सरकार को कहते हैं. यह सोचते हुए मेरा सर चकराने लगा.

मुझे लगा हे प्रभु यह मैं क्या पाप करने चला था ? हमें धर्म के नाम पर इतना क्रूर बनाया जा रहा है ? और हम मूर्ख इन भड़काने वाले दुष्टों के पीछे लगे हुए हैं ? अब मेरी आंखें खुल चुकी थीं. मैं जिस रास्ते भारत से पाकिस्तान गया था उसी रास्ते वापिस आ गया.

  • हिमांशु कुमार

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • देश सेवा

    किसी देश में दो नेता रहते थे. एक बड़ा नेता था और एक छोटा नेता था. दोनों में बड़ा प्रेम था.…
  • अवध का एक गायक और एक नवाब

    उर्दू के विख्यात लेखक अब्दुल हलीम शरर की एक किताब ‘गुज़िश्ता लखनऊ’ है, जो हिंदी…
  • फकीर

    एक राज्य का राजा मर गया. अब समस्या आ गई कि नया राजा कौन हो ? तभी महल के बाहर से एक फ़क़ीर …
Load More In लघुकथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…