
श्याम मीरा सिंह
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन दिल्ली विश्वविद्यालय में एक प्रोग्राम कर रही लड़कियों पर ABVP द्वारा हमला किया गया. उनके पोस्टर्स फाड़े गए. जब लड़कियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनके भी कपड़े फाड़े गए. इसपर ABVP समर्थकों द्वारा कहा जा रहा है कि वे लड़कियां इंडियन आर्मी को रेपिस्ट कह रही थीं. और उनके हाथों में ‘Indian Army rapes us’ के पोस्टर लगे हुए थे. इसलिए इस बात पर बहस करने का दुस्साहस करना जरूरी हो गया है कि क्या इंडियन आर्मी के सैनिकों, कर्मचारियों, बाबुओं द्वारा अपनी संवैधानिक ताकतों का दुरूपयोग किए जाने का विरोध क्या सेना का अपमान है ? क्या इस दुस्साहस के लिए उनके कपड़े फाड़े जाएंगे ?
इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक बयान समझना बहुत जरूरी है. इंडियन आर्मी के कुछ जवानों द्वारा अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हुए मणिपुर की महिलाओं के रेप करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था – ‘in democracies, the armed forces cannot be above the law, and that crimes committed during wars and armed conflict cannot be condoned.’ सादा शब्दों में कहें तो कोर्ट ने कहा था कि एक लोकतंत्र में ‘सशस्त्र सेनाएं’ क़ानून से ऊपर नहीं हैं. युद्ध और सशस्त्र लड़ाई के दौरान भी किए गए अपराधों को माफ़ नहीं किया जा सकता.’
सुप्रीम कोर्ट ने ही 18 अप्रैल, 2017 के दिन मणिपुर की एक 13 साल की पीड़ित लड़की से हुए रेप मामले की सुनवाई करते समय सरकार के वकील (अटोर्नी जनरल मुकुल रोहतगी) से कहा था कि ‘Do you have alleged rapists in uniform?. The girl was definitely subjected to rape, medical reports confirm that.’ सुप्रीम कोर्ट के इन जजों का नाम था- मदन बी लोकुर और यूयू ललित.
इस पूरे मामले में राज्य सरकार और आर्मी की लापरवाही को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि- ‘13 साल की बच्ची के साथ रेप करने के मामले में (इस मामले में बच्ची ने अपनी मां और बहन को अपनी आपबीती सुनाने के बाद कुछ ही घंटों में सुसाइड कर ली थी.) सेना के जवानों पर कार्रवाई न करके मणिपुर राज्य के लोगों को पत्थर उठाने पर मजबूर करने का फिक्शनल माहौल तैयार किया है.’
ये वो गिने चुने उदाहरण हैं जब सुप्रीम कोर्ट तक ने सेना के जवानों द्वारा किए गए दुष्कर्म के मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी है. ऐसे अनगिनत मामले हैं जिन पर कभी बात ही नहीं हुई क्योंकि मामला सेना है. लेकिन सेना के अपमान और करप्ट सैनिकों के खिलाफ बोलने में एक महीन सा पर्दा है. इंडियन आर्मी के करप्ट अधिकारीयों और सैनिकों पर बात करना आर्मी की आलोचना नहीं है. जैसे करप्ट सांसद और विधायक की आलोचना करना संसद की आलोचना नहीं है.
करप्ट लोगों पर सवाल उठाने से, उन पर कार्रवाई करने से, आर्मी का मान-सम्मान बढ़ेगा. आर्मी की पवित्रता बढ़ेगी, न कि घटेगी. लेकिन ऐसे लोगों पर चुप्पी बनाए रखने से उन महिलाओं के शोषण का रास्ता और अधिक खुलेगा जो इंडियन आर्मी में काम करती हैं या इंडियन आर्मी में शामिल होना चाहती हैं. उन महिलाओं को भी इसलिए दबा दिया जाता क्योंकि आर्मी का मामला है.
इसे और समझने के लिए ‘कुनन और पोशपोरा मामले’ को जान लेना चाहिए. जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में कुनन और पोशपोरा नाम के दो छोटे-छोटे गांव हैं. 23 फरवरी, 1991 की सर्द रात में इंडियन आर्मी के कुछ जवानों द्वारा इन दोनों गांव की महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया गया, जिसे अंग्रेजी में Mass rape कहते हैं. पीड़ित गांव का कहना है कि उस दिन 150 के करीब महिलाओं के साथ रेप किया गया.
अगले कुछ दिन तक गांव वालों की हिम्मत ही नहीं हुई कि सेना के जवानों की इस बर्बरता के खिलाफ कुछ बोल सकें. लेकिन कुछ दिन बाद कुछ महिलाओं ने हिम्मत जुटाई. 1991 से लेकर अब तक पीड़ितों को कोई न्याय नहीं मिला. आज ये मामला तीन कोर्ट में चल रहा है, कुपवाड़ा कोर्ट, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट.
जबकि जम्मू-कश्मीर स्टेट ह्यूमन राईट कमीशन ने अपनी जांच में पाया कि करीब 40 महिलाओं के एक साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना सच है. स्टेट ह्युमन राईट कमीशन ने सरकार को ऑर्डर दिया कि वो पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं दे सकता तो कम से कम उन्हें आर्थिक मुआवजा दे. लेकिन आर्मी से जुड़ा मामला होने के कारण अब भी ये मामला तीन कोर्ट में लंबित है.
सवाल उठता है कि क्या 40 महिलाओं का रेप किसी एक व्यक्ति की गलती थी ? कहीं न कहीं ये अत्यधिक शक्तियों का खुला दुरूपयोग है. इंडियन आर्मी हो चाहे म्यांमार की आर्मी हो, अंततः वह देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए है. अगर इसमें एक भी व्यक्ति दोषी है तो कारवाई होनी चाहिए. यहां तो पूरी टुकड़ी ने ही अपनी संवैधानिक ताकतों का खुला दुरूपयोग किया है. इस पर कौन सवाल करेगा ? अगर महिलाऐं भी नहीं करेंगी तो कौन करेगा ? अगर महिला दिवस पर भी बात नहीं होगी तो किस दिन होगी ?
जिस चर्चित नारे (Indian Army Rape Us) के लिए नौदीप कौर और बाकी लड़कियों पर हमला बोला गया. उस स्लोगन के पीछे की कहानी को जानना जरूरी है. साल 2014 थंगजाम मनोरमा नाम की मणिपुरी महिला का असम रायफल के जवानों द्वारा रेप किया गया. इसके बाद अगले दिन उसकी डेड बॉडी मिली. मनोरमा के शरीर पर 16 गोलियां मारी गईं थीं. अपराधियों ने सबूत मिटाने के लिए मनोरमा के प्राइवेट पार्ट को भी रौंद डाला था.
मनोरमा पर आरोप लगाया गया कि वो मिलिटेंट थी और आर्मी की कस्टडी से भागने की कोशिश कर रही थी, लेकिन जस्टिस सी. उपेन्द्र की अध्यक्षता में बैठी जांच कमिटी ने बताया कि आर्मी का ये आरोप एकदम झूठा है. मनोरमा की हत्या नाजुक और संवेदनशील समय में की गई थी. मेडिकल जांच में भी मनोरमा के कपड़ों से सीमन के साक्ष्य मिले हैं. इस घटना ने पूरे मणिपुर की औरतों के मन पर गहरी ठेस पहुंचाई.
असम रायफल के जवानों के इस खुले अपराध के प्रतिरोध में 15 जुलाई, 2004 के दिन 12 मणिपुरी महिलाऐं अपने ही देश की आर्मी के आगे नग्न खड़ी हो गईं. उनके हाथों में एक पोस्टर था जिस पोस्टर पर लिखा था ‘Indian Army Rape Us’. चूंकि मणिपुर की उन तमाम महिलाओं को अब तक न्याय नहीं मिला है, उन्हीं सब पर बात करने के लिए यूनिवर्सिटी की लड़कियां खड़ी हुईं. उस कार्यक्रम में रेप पीड़ितों के परिवार भी शामिल हुए. लेकिन ABVP के कार्यकर्ताओं ने उस कार्यक्रम पर ही हमला कर दिया. और आड़ ली कि ये सेना का अपमान है.
अगर ये सेना का अपमान है तो दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती, लेकिन इन्हें लड़कियों के कपड़े फाड़ने का हक़ किसने दिया ? उस पोस्टर में नीचे मणिपुर की पीड़ित औरतों का जिक्र था, लेकिन पूरा मामला ऐसे दिखाया गया जैसे कि इन लड़कियों ने एंटी आर्मी पोस्टर लगाए गए. क्या मणिपुर की रेप पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय मांगने वाले पोस्टर्स को फाड़कर ABVP ने रेप पीड़ितों का अपमान नहीं किया ? क्या इससे सेना के सम्मान में वृद्धि हो गई ?
सवाल ये उठता है कि निर्भया और मनोरमा के अपराधियों में क्या अंतर है ? हम निर्भया के अपराधियों के खिलाफ सड़कें जाम कर सकते हैं लेकिन मनोरमा के लिए सेमिनार भी नहीं कर सकते ? क्या मनोरमा के शरीर, इस देश की बाकी महिलाओं के शरीर से अलग था ? क्या मनोरमा के अपराधियों के खिलाफ केवल इसलिए नहीं बोला जाना चाहिए क्योंकि वे देश की बहादुर सेना की वर्दी के पीछे छुपे कुछ कायर लोग थे ? आर्मी का सम्मान किसमें है ? ऐसे अपराधियों पर चुप रहने में, संरक्षण देने में ? या ऐसे अपराधियों को तुरंत सेना में से निकाल फैंकने में है ?
रेप पीड़ितों के लिए न्याय मांगना सेना के सम्मान में कहीं भी कटौती नहीं करता, सेना होती ही देश की सुरक्षा के लिए है, नागरिकों की सुरक्षा के लिए. अगर उसमें कोई जवान, कोई टुकड़ी हैवानियत का काम करती है तो ये सेना का अपमान है, न कि उस टुकड़ी के खिलाफ बोलना सेना का अपमान है.
मणिपुर, कश्मीर से लेकर हर उस राज्य में जहां आफस्पा लगा है, वहां-वहां सैन्य बलों द्वारा अपनी पॉवर के दुरूपयोग की घटनाएं सामने आई हैं. छत्तीसगढ़ राज्य को ही लें तो नेशनल ह्युमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने खुद स्वीकार किया था कि 19 अक्टूबर से लेकर 28 अक्टूबर, 2015 के बीच में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पेगडपल्ली, चिन्नागेलुर, पेद्दागेलुर, गुंडम और बर्गीचेरु गांव में वर्दी पहने लोगों ने 8 महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया. इसे लेकर NHRC ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस भी भेजा था.
साल 2016 में भी छतीसगढ़ के बीजापुर जिले में बेलम लेन्ड्रा गांव में सुरक्षा बलों द्वारा 13 आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया. सुकमा जिले के कुन्ना गांव में भी 6 महिलाओं के साथ सुरक्षा बलों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया. जब NHRC (ह्युमन राईट कमीशन) ने इस मामले में जांच शुरू की तो केवल तीन महीने के भीतर ही 46 मामले ऐसे मिले जिनमें सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया.
क्या ये सवाल इस देश के प्रत्येक नागरिक को खुद से नहीं पूछना चाहिए कि बस्तर, सुकमा, मणिपुर, बीजापुर, कुपवाड़ा, कश्मीर की महिलाओं में और इस देश की महिलाओं की देह में ऐसा क्या अंतर है कि उनके शरीर को नोचने वालों को माफ़ कर दिया जाए ? अगर यूनिवर्सिटी की लड़कियां इन सवालों पर नहीं बोलेंगी तो कौन बोलेगा ? क्या रेप पीड़ितों के लिए केवल इसलिए ही न्याय नहीं माँगा जाए क्योंकि अपराधी सेना से संबंध रखता है ?
जबकि होना ऐसा चाहिए कि ऐसे अपराधियों पर सबसे पहले कार्रवाई होनी चाहिए. देश के वीर जवानों के बलिदान की आड़ अपराधियों को नहीं मिलनी चाहिए. देश की बहादुर सेना का अपमान, ऐसे अपराधियों के पक्ष में बोलने में है, देश के वीर शहीदों का अपमान ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने में है, न कि पीड़ितों के पक्ष में लड़ने से है. नौदीप कौर और उन तमाम लड़कियों पर हुआ हमला रेप पीड़ितों पर हुआ हमला है, इससे अधिक शर्मनाक कुछ नहीं है.
आरएसएस और भाजपा के छात्र संगठन ABVP ने रेप कल्चर को बढ़ाने का काम किया है उसके कार्यकर्ताओं को लड़कियों के कपड़े फाड़ने, उनके पोस्टर्स फाड़ने का कोई अधिकार नहीं है. वह कोई पुलिस बल नहीं है, अगर उन पोस्टर्स में कोई आपत्तिजनक चीज होतीं तो वहां खड़ी पुलिस ही उस कार्यक्रम को न होने देती. और अगर उन पोस्टर्स में कुछ भी तथ्य गलत है तो मणिपुर की उन 12 महिलाओं को भी जेल में डाल देना चाहिए जिन्होंने रेप पीड़ितों के पक्ष में उस पोस्टर को लेकर नग्न प्रदर्शन किया था.
- यह आलेख चार साल पहले लिखा गया था, जो आज भी समीचीन है.
आंकड़ों और तथ्यों के सोर्स के न्यूज लिंक –
1. इस लिंक में ‘INDIAN ARMY RAPE US” स्लोगन के पीछे की कहानी, और मणिपुरी महिलाओं के साथ हुईं दुष्कर्म की घटनाओं के बारे में पड़ा जा सकता है.
- https://www.indiatoday.in/india/story/if-you-remember-manipuri-women-only-for-nude-protest-against-army-think-again-1436411-2019-01-22?fbclid=IwZXh0bgNhZW0CMTEAAR0zwKTiaLpt_0DSng9Dp6By6M0CN916HXd85G13kvKvaRG2U4c__ofPBDo_aem_7fknQtf8fxXertCMmj8SaA
- https://indianexpress.com/article/india/manipur-sc-calls-for-sit-to-probe-rape-charge-against-soldiers-4618772/?fbclid=IwZXh0bgNhZW0CMTEAAR2PMn9bmI17YvwWPRosUMObjQqUqpuSOfnRwe1kOvsXrZhPNzxFc7cw0q8_aem_jg4z5HpSoVhT8iGPQ-cWWw
- https://www.dnaindia.com/india/report-do-you-have-rapists-in-uniform-supreme-court-asks-army-2407248?fbclid=IwZXh0bgNhZW0CMTEAAR1Rbe-1jS70NNY0V1UBQRYjnv95KT8venvlDDq7I0JK8F-zs7yu6Vyy8Zg_aem_kNP_Zq-8H4phh_8I8nBaHQ
2. इस खबर में सुरक्षा बलों द्वारा छत्तीसगढ़ की महिलाओं के साथ किए गए दुष्कर्म के बारे में पढ़ा जा सकता है.
- https://www.ndtv.com/opinion/when-rape-becomes-a-weapon-against-tribal-women-1647667?fbclid=IwZXh0bgNhZW0CMTEAAR2vVp36TVJ62VsuCvjgJ9fLTQeswTFiMP41hlFjWGyQcRXx6J3rIx_rolk_aem_XKCfFdNaH9ZRTkKebiyGrA
3. कुनान पोशपोरा (जम्मू कश्मीर) की घटना के बारे में यहां हिंदी में पढ़ा जा सकता है जब सुरक्षा बलों द्वारा दो छोटे-छोटे गांव की 40 महिलाओं के साथ एक साथ दुष्कर्म किया गया.
- https://www.indiatodayhindi.com/magazine/web-exclusive/story/20130902-kathua-kand-asifa-rape-and-murder-kunan-and-poshpora-kupwara-jammu-kashmir-590611-2018-04-17?
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