जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सतपाल मलिक अपने बयान में जो कुछ भी कहें हैं वह कोई नई बात नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने कोई गुप्त बात कह दिये हों. यह तमाम बातें देश के तमाम लोगों के बीच संज्ञान में है और वे इन तथ्यों पर अपनी मजबूत राय रखते हैं. पूर्व गवर्नर सतपाल मलिक ने अपने इंटरव्यू के माध्यम से जो किया वह केवल यही है कि उन्होंने आम जनता के बीच मौजूद तथ्यों की बकायदा पुष्टि कर दी है. जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन उपराज्यपाल सतपाल मलिक ने पुलवामा कांड पर जिन तथ्यों की पुष्टि की है, वह इस प्रकार है –
- CRPF के लोगों ने अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान मांगा था, क्योंकि इतना बड़ा काफिला कभी सड़क मार्ग से नहीं जाता.
- गृह मंत्रालय ने उन्हें विमान देने से इनकार कर दिया जबकि CRPF को सिर्फ पांच विमानों की जरूरत थी. मैंने गृह मंत्रालय से पूछा था…’.
- यह 100% खुफिया विफलता थी. करीब 300 किलो विस्फोटक से लदी कार बमबारी से पहले 10-12 दिनों तक घूमती रही और ख़ुफ़िया एजेंसियों को पता नहीं चला ! जबकि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक केवल पाकिस्तान से ही आ सकता है. यह सुरक्षा चूक उन मौतों के लिए ज़िम्मेदार है.
- उसी शाम प्रधानमंत्री ने कार्बेट पार्क के बाहर से मुझे फ़ोन किया था. मैंने उनको बताया कि यह हमारी सरकार की गलती है. अगर हम विमान देते तो ऐसा नहीं होता.
- उन्होंने मुझ से कहा – ‘अभी तुम चुप रहो, ये सब मत बोलो, ये कोई और चीज़ है.’
- इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी मुझसे कहा—’ये सब मत बोलिए. आप चुप रहो. यह सब मत कहिए. चुप रहिए.’
- मुझे लग गया था कि अब यह सारा मामला पाकिस्तान की तरफ जाना है. मुझे एहसास हुआ कि पाकिस्तान पर जिम्मेदारी डाली जा रही थी, इसलिए ‘चुप रहो’ कहा जा रहा है.
- मैंने 2018 में पीएम मोदी के साथ कश्मीर पर अपनी चर्चा के दौरान पाया कि प्रधानमंत्री के पास तमाम ‘गलत जानकारी’ थी. जबकि मोदी पहले ही प्रधानमंत्री पद पर चार साल बिता चुके थे.
- जम्मू से श्रीनगर तक मुख्य सड़क से करीब 8-9 जगहों पर दूसरी सड़कें आकर मिलती हैं, वहां पर न कोई बैरिकेडिंग थी और न ही कोई जिप्सी खड़ी की गई थी. वहां पर एक भी सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं था. इतने लंबे रास्ते पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे.
- इस ‘ये कोई और चीज़ है’ का मतलब क्या है ? वह ‘चीज’ क्या थी ? क्या कोई षड्यंत्र रचा गया था ?
- ठीक ऐसा ही, लंबे समय से आतंकियों की मदद करते आ रहे जम्मू-कश्मीर पुलिस के DSP देविंदर सिंह ने पुलवामा कांड के ग्यारह महीने बाद गणतंत्र दिवस से पहले 11 जनवरी, 2020 को हिज़्बुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ, अपनी गिरफ्तारी के समय साउथ कश्मीर के DIG अतुल गोयल से कहा था— ‘सर यह एक गेम है, आप गेम मत खराब करो.’
- उस गिरफ्तारी के बाद 90 दिनों के भीतर दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल और NIA चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई, तो देविंदर सिंह और एक अन्य आरोपी इरफान शाफी मिर को जमानत पर छोड़ दिया गया.
- क्या जांचकर्ताओं ने उस ‘गेम’ के मास्टर माइंड तक पहुंचने की कोशिश की ? यदि हां, तो नतीजा क्या है ? और यदि नहीं, तो क्यों ?
- ‘ये कोई और चीज़ है’ तथा ‘सर यह एक गेम है, आप गेम मत खराब करो’ – राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित इन दोनों बातों को जोड़कर देखने से तो यही लगता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 14 फरवरी, 2019 को जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पुलवामा में 40 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की हत्या, एक बहुत बड़ा और ठंडे दिमाग से तैयार किया गया षड्यंत्र था !
इन तथ्यों की पुष्टि पूर्व गवर्नर सतपाल मलिक के इंटरव्यू से हो जाता है, जो पहले से ही पब्लिक डोमेन में है. लेकिन सवाल इससे भी आगे का है कि आखिर तथ्यों और उसकी पुष्टि से क्या निकलने वाला है ? एक धर्मभीरु राष्ट्र में किसी तथ्य और उसकी पुष्टि का क्या कोई परिणाम निकलने वाला है ? नहीं. केवल सतपाल मलिक ही नहीं, पनामा पेपर्स, राफायल घोटाला, अडानी से जुड़ा हिंडेनबर्ग रिसर्च, लाख करोड़ लेकर भाग जाने की खबरों और उसकी पुष्टि के बाद भी इसका कोई परिणाम नहीं निकला. हलांकि कोहराम मचा लेकिन सारे मामले राख के नीचे ढ़ंकते चले गए. सत्ता और मीडिया की गलबहियां ने कोई परिणाम निकलने नहीं दिया. यहां तक आम जनता के बीच भी यह मजाक या लतीफों में बदल गया.
यही वह देश है जहां चंद करोड़ के बोफोर्स तोप घोटाले पर संसद हिल गई, आपातकाल के खिलाफ उभरे जनाक्रोश ने सत्ता पलट दी, लालू प्रसाद यादव के चंद करोड़ के चारा घोटाले ने लालू प्रसाद यादव को घोटालों का राजकुमार बना दिया और जेलों में सड़ा डाला. उसी देश में आज लाखों करोड़ के घोटालों पर पत्ता तक नहीं हिलता, तो इसके कारणों की पड़ताल तो होनी ही चाहिए. जब तक इसकी पड़ताल नहीं की और उस कारणों पर प्रहार नहीं किया जाता तब तक किसी भी खुलासे या घोटालों का कोई मायने मतलब नहीं निकलता सिवाय नये लतीफे गढ़ने के.
कहा जाता है कि ऊंचाइयों से लुढ़कता पत्थर गटर में जाने तक खूब तेज चलता है. उसे रोकना बहुत ही मुश्किल होता है. आज भारत उसी ऊंचाइयों से लुढ़क रहा है. तेज और तेज गति से लुढ़क रहा है, जो गटर में जाने तक लुढ़कता रहेगा. भारत देश एक ऐसी ही लुढ़कन बौद्ध काल के मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद लुढ़का जिसने भारत और उसकी जनता को 2 हजार सालों तक गटर में डाल दिया था, अब भारत एक ऐसी ही लुढ़कन पर तेजी से लुढ़क रहा है, जिसे रोकना मुश्किल ही नहीं असंभव भी बनता जा रहा है जब तक कि जनता सशस्त्र विद्रोह कर इसे न रोक लें.
बहरहाल सतपाल मलिक का पूरा इंटरव्यू जरुर सुने और जाने –
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तो क्या यह मान लिया जाय कि इस देश में