हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना
बिहार के लोगों के पलायन पर कन्हैया कुमार ने पदयात्रा की, लंबे लंबे भाषण दिए, फिर पटना में कल इसका समापन हो गया. अब वे उम्मीद करते होंगे कि शिक्षा और रोजगार के लिए राज्य से बाहर जाने को मजबूर बिहार के युवा उन्हें सिर आंखों पर बिठा लेंगे और अगला विधान सभा चुनाव इसका गवाह बनेगा.
लंबी लंबी पदयात्राओं और जुझारू भाषणों के बाद बिहार की ‘ध्वस्त शिक्षा और भ्रष्ट परीक्षा’ का बैनर पीछे टांग कर प्रशांत किशोर गांधी मैदान में आमरण अनशन पर बैठ गए. उसके बाद उन्होंने उम्मीद की कि अब बिहार के युवा उनमें अपने राज्य का भविष्य देखेंगे और अगला विधान सभा चुनाव इसका गवाह बनेगा.
अपने भाषणों में न कन्हैया कुमार ने, न प्रशांत किशोर ने उन कारणों की पड़ताल पर ध्यान केंद्रित किया कि बिहार से युवाओं का इतना अधिक पलायन आखिर होता क्यों है. इस पर अधिक बात करने की जरूरत भी नहीं थी क्योंकि इसका उत्तर सब जानते हैं. जब अपने राज्य में न अच्छी शिक्षा मिलेगी, न रोजगार मिलेगा तो लोग पलायन करेंगे हीं. जादू की छड़ी न कन्हैया कुमार के पास है न प्रशांत किशोर के पास कि सत्ता में आते ही वे कोई कमाल कर दें और यह पलायन रुक जाए.
किसी परिचर्चा में एक विशेषज्ञ बता रहे थे कि देश की कुल फैक्ट्रियों का महज 1.3 प्रतिशत बिहार में है जबकि देश की कुल आबादी का लगभग दस प्रतिशत बिहार में है. कृषि बिहार में कोई ऐसा चमकता क्षेत्र नहीं जो आबादी के अनुपात में रोजगार दे सके. तो, रोजगार के लिए पलायन तो होगा.
सवाल है कि बिहार के जो करोड़ों लोग बाहर हैं उनके रोजगार की क्वालिटी क्या है ? इसका सीधा जवाब है कि अधिसंख्य बिहारी राज्य के बाहर कहीं रेहड़ी लगाए हैं, कहीं मजदूरी कर रहे हैं, कहीं टेंपू रिक्शा चला रहे हैं, कहीं घरेलू नौकर ड्राइवर आदि हैं.
बिहार की शिक्षा की जो क्वालिटी है उसी अनुपात में रोजगार की क्वालिटी होगी न. जब यहां के शैक्षणिक संस्थान प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में क्वालिटी से रहित डिग्रीधारियों को उगल रहे हैं तो वे क्वालिटी रोजगार में कैसे जाएं ? रोजगार की क्वालिटी पर ही पारिश्रमिक की क्वालिटी निर्भर करती है.
तो, जितने लोग रोजगार के लिए बिहार से बाहर जाते हैं उनमें 95 प्रतिशत से भी अधिक लोग निहायत ही कम वेतन पर हाड़तोड़ मेहनत करते हैं और तरह तरह के शोषण और अपमान को झेलते हैं. कुछेक प्रतिशत ही बिहारी अन्य राज्यों में अधिकारी हैं, प्रोफेसर हैं, इंजीनियर हैं या जिन्हें व्हाइट कॉलर जॉब कहते हैं, उनमें हैं.
बिहार की सबसे बड़ी समस्या पलायन नहीं, नौकरी नहीं, शिक्षा की क्वालिटी का अभाव है. यह अभाव पलायन को दर्दनाक बनाता है और युवाओं के भविष्य को नष्ट करता है.
अति भ्रष्टाचार और घोर प्रशासनिक अराजकता से ग्रस्त बिहार का शिक्षा तंत्र इस राज्य के निर्धन युवाओं के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है. इस तंत्र से निकले युवा क्वालिटी रोजगार में कैसे जाएं ? इसलिए महानगरों में बिहार के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बड़ी संख्या में खोमचे लगाए, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते, टेंपू और ई रिक्शा चलाते, मजदूरी आदि करते मिल जाएंगे.
ब्यूरोक्रेसी ने बिहार की स्कूली शिक्षा को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जबकि विश्वविद्यालयों की ऊंची कुर्सियों पर बैठे भ्रष्ट और अनैतिक बुद्धिजीवियों की जमात के साथ ही सरकारी उदासीनता ने उच्च शिक्षा की दुर्दशा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.
बिहार की राजनीति में शिक्षा कोई विमर्श का विषय नहीं. यह एक प्रमुख उदाहरण है कि बिहार के राजनीतिज्ञों का चिंतन बिहार के खास संदर्भों में किस हद तक दरिद्र है. जो सबसे बड़ी समस्या है और जो अन्य अनेक समस्याओं को जन्म देती है वह है बिहार की शिक्षा, जिसकी क्वालिटी देश के सबसे निचले दर्जे में आंकी जा रही है.
प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में बिहार से छात्रों का पलायन उच्च शिक्षा के लिए होता है. यहां तक कि मेडिकल और इंजीनियरिंग में एडमिशन हेतु बेहतर स्तर की कोचिंग के लिए भी यहां के बच्चे बड़ी संख्या में बाहर जा रहे हैं.
अरबों रुपए बिहार के लोगों का सिर्फ इसलिए बाहर जा रहा है क्योंकि यहां के अधिकतर उच्च शिक्षा परिसरों में भ्रष्ट और अनैतिक तत्व काबिज हैं जो इस तथ्य की गारंटी देते हैं कि और चाहे जो हो, इन परिसरों में शैक्षणिक और प्रशासनिक अराजकता कायम रहने वाली है, पब्लिक मनी की निर्मम और निर्बाध लूट बाकायदा सांस्थानिक रूप से जारी रहने वाली है.
जो पढ़ने लिखने के प्रति गंभीर हैं और आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे बिहार के बाहर चले जाते हैं बाकी तमाम बिहारी युवा यहां के परिसरों में व्याप्त अंधेरों से जूझने को अभिशप्त होते हैं और यहां की शैक्षणिक और प्रशासनिक अराजकता के गवाह बनते हैं.
क्वालिटी से रहित शिक्षा बिहार के लाखों युवाओं को डिग्री मिलने के बाद भी किसी लायक नहीं बनने देती. अगर वे रोजगार के लिए महानगरों में पलायन करते हैं तो उनके रोजगार और पारिश्रमिक की क्वालिटी क्यों और कैसे बेहतर हो सकती है ?
बिहार के राजनीतिज्ञों के लिए बिहार की शिक्षा और इससे जुड़े सवाल कोई खास मायने नहीं रखते. लेकिन, प्रशांत किशोर ने तो ‘ध्वस्त शिक्षा’ बैनर टांग कर आंदोलन शुरू किया था. फिर क्या हुआ ? उस दिन के बाद से उन्होंने शिक्षा पर, इसके तंत्र की दुर्दशा पर कभी कोई उल्लेखनीय चर्चा तक नहीं उठाई.
यही कन्हैया कुमार ने किया. पदयात्रा के दौरान अनेक यूट्यूब चैनलों पर उनके जोरदार भाषण सुनाई देते रहे. बड़ी बड़ी बातें, बदलाव, युवा, विचार, आंदोलन आदि आदि. लेकिन, उन्होंने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, अधिक चर्चा नहीं की कि पब्लिक मनी के इतने इन्वेस्टमेंट के बाद भी बिहार के अधिकतर संस्थान क्वालिटी शिक्षा क्यों नहीं दे पा रहे ? क्यों हमारे संस्थान प्रति वर्ष लाखों की संख्या में व्हाइट कॉलर जॉब सीकर्स की जगह अकुशल मजदूर उगल रहे हैं ?
बिहार की जो भौगोलिक और औद्योगिक संरचना है वह यह तय करती है कि रोजगार के लिए बिहारियों को बड़ी संख्या में बाहर जाना ही होगा. चाहे कल प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री बन जाएं, चाहे कन्हैया कुमार…या अपनी “हिंद सेना” का बैनर लेकर उतरे शिवदीप लांडे ही क्यों न बन जाएं.
बाहर जा कर नौकरी करना, रोजगार करना कोई बुरी बात नहीं. आखिर यह ग्लोबलाइजेशन का जमाना है. लोग तो नौकरी रोजगार के लिए देश विदेश जा रहे हैं. बुरी बात यह है कि बिहार की डिग्रियों को बाहर संदेह से देखा जाता है, यहां के ऊंचे डिग्रीधारियों की बड़ी संख्या को क्वालिटी रहित शिक्षा के कारण व्हाइट कॉलर जॉब नहीं दिया जाता, यहां का उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान दिल्ली नोएडा में निजी कंपनी का सिक्यूरिटी गार्ड है, मॉल्स में सेल्स ब्वॉय है.
भारत इस मामले में दुनिया में बहुत आगे है कि यहां गार्ड, सेल्स ब्वॉयज, डिलीवरी पर्सनल्स आदि बेहद बेहद कम वेतन पाते हैं जबकि मेहनत हाड़तोड़ करते हैं. यह एक अलग और भीषण सामाजिक-आर्थिक समस्या बन गई है कि कमरतोड़ काम करवा कर कामगारों को बेहद कम वेतन दिया जा रहा है और कॉरपोरेट्स का मुनाफा बढ़ता जा रहा है. कैपिटलिज्म के इस अंतर्विरोध का इस भारत देश में सबसे बड़ा शिकार बिहार का युवा है.
यहां के नेताओं को इस पर कोई लज्जा नहीं आती, इसलिए इस पर अधिक विमर्श नहीं होता कि बजट का इतना बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद बिहार की शिक्षा क्वालिटी के मामले में इतनी दरिद्र क्यों है. बिहार की सतत दरिद्रता का यह सबसे बड़ा कारण है.
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