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जलभूमि

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जलभूमि
जीवन का सोच्चार चीत्कार है
तुम्हारे अरदास के पलटते पन्ने
परिंदों के पंख के परवाज़
अदिती
क्यों बार बार मैं
विघ्न डालता हूं
तुम्हारी पूजा में
मुझे तो मालूम है
सूर्यास्त का सच
क्रौंच वध की बेला में
छूट गए जो वाण
अनायास
शक्ति की संहिता में
एक पन्ना मेरा भी हो
इसी अथक प्रयास में
घूर्णी में आत्मसात करने को
जीता रहा
जबकि
तुम फुनगी पर
कोमल डाली पर उगते रहे
रहस्य की तरह
मेरी मेद युक्त अभिसार के परे
धूसर आँगन में पसरे
चाँदनी सा
बस कुहेलिका सा जागता रहा
रात भर
अदिति
तुम्हारी आद्रता
ओस बन भी सकते थे
किरणों की जिजीविषा
संतृप्त घोल है
नमक और मीठे का
समुद्र मंथन
बस एक कहानी है
जिसमें न तुम्हारा अमृत है
न मेरा विष

  • सूब्रतो चटर्जी

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ROHIT SHARMA

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