देश भर में फैले बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट सेंटर अस्पतालों, व्यापारियों और दवा कंपनियों का गठजोड़, करोड़ों भारतीयों ही नहीं विदेशियों के जीवन को भी दांव पर लगा रहा है. पुरानी बोतलों को केमिकल से धोकर उनमें इंजेक्शन और दूसरी दवाई भरी जा रही है जबकि इस संक्रमित मेडिकल वेस्ट को नियमानुसार बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में नष्ट किया जाना था.
देश की बायो मेडिकल वेस्ट (BMW) की मंडी बन चुके इंदौर में रोजाना 20 से 30 लाख 5ml-10ml की संक्रमित बोतलों को केमिकल से धोकर नए जैसा बना दिया जाता है. ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 कहता है कि सिर्फ नई बोतलों में ही इंजेक्शन भरे जा सकते हैं. इंदौर में कई व्यापारी तो ऐसे हैं, जिनके पास हर समय 1 से 2 करोड़ बोतलों का स्टॉक मौजूद रहता है.
खबर में पानी के तालाब जैसा नजारा कुछ और नहीं बल्कि 5 साल से सबसे स्वच्छ शहर का तमगा ले रहे इंदौर के एक खेत में रैपर निकालने के लिए सुखाई जा रही एंटीबायोटिक इंजेक्शन, कोविड वैक्सीन सहित दूसरी दवाओं की कांच की बोतलों का है.
इंदौर के कई गोदामों में मौजूद करोड़ों खाली बोतलों का स्टॉक बता रहा है कि देश भर में बने कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट सेंटर और अस्पताल , करोड़ों संक्रमित कांच की बोतलों को नष्ट करने के बजाए इन्हें व्यापारियों बेच रहे हैं.
इससे भी बड़ा भयावह सच यह है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश की कई दवा कंपनियां, इन सेकंड हैंड बोतलों में इंजेक्शन, दवाइयां भरकर पूरे देश में बेंच रही हैं.
भारत में मानवता के साथ चल रहे खिलवाड़ – इंदौर बायोमेडिकल वेस्ट मंडी और नकली दवा
लगभग 1 महीने पहले घूमते हुए इंदौर के बीटा इंडस्ट्रियल पार्क में कई एकड़ में फैला बायो मेडिकल वेस्ट का ढेर मिला. दिमाग इस पर अटक गया कि मामला सिर्फ मेडिकल का वेस्ट नहीं, बल्कि कहानी कुछ और भी है. तब अंदाजा नहीं था कि हमारी पड़ताल कर्नाटक, तमिलनाडु के दूरस्थ गांवों से लेकर उत्तराखंड, महाराष्ट्र, हिमाचल, गुजरात तक पहुंचेगी.
हमने उन सप्लायर के पते निकाले जो इंदौर बायोमेडिकल वेस्ट मंडी में इंजेक्शन की खाली कांच की बोतलें सप्लाई करते हैं. हम जीएसटी नंबर के आधार पर पते निकालकर, बेंगलुरु से सटे होसुर कृष्णागिरी और धर्मपुरी जिले में दर्ज 4-5 सप्लायर के पतों तक पहुंचे.
अब चौंकने की बारी हमारी थी. उन पतों को तो छोड़िए, उन गांवों के आसपास भी ऐसी कोई ग्लास बॉटल सप्लायर फर्म नहीं मिली. हालांकि कई किलोमीटर भटकते हुए हम कृष्णागिरी जिले के करियामंगलम के पास एक गांव तक पहुंचे. वहां आम के बगीचों के बीच मिला दवाइयों की संक्रमित बोतलों का जखीरा चौंकाने वाला था. पड़ताल की तो सामने आया कि यह भी इंदौर मेडिकल वेस्ट की मंडी के एक बड़े सप्लायर है.
जैसे-जैसे पड़ताल आगे बढ़ रही है, वह हमें नकली दवाओं की भयावह दुनिया की ओर ले जा रही है. अभी तक मध्य प्रदेश के पीथमपुर, इंदौर ,भोपाल, उज्जैन से लेकर हिमाचल के बद्दी तक करीब एक दर्जन दवा कंपनियों के नाम सामने आ चुके हैं.
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर ये दवा कंपनियां इंदौर से सेकंड हैंड बोतल क्यों खरीद रही हैं ? जबकि दवा कंपनियों को क्लास वन यानी नई बोतल उपयोग करना मैंडेटरी है. जबकि इंदौर तो छोड़िए, इसके आसपास भी ऐसी कोई ग्लास बॉटल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट नहीं है.
एक बात यह भी है कि 5-10 ml की नई और पुरानी बोतलों की कीमत में बमुश्किल एक रुपए का भी अंतर नहीं है. आखिर एक रुपए के लिए कोई दवा कंपनी नियमों को ताक पर रख सेकंड हैंड बोतल, आखिर क्यों यूज़ करेगी ? यानी मामला सिर्फ हर इंजेक्शन या दवा पर 1 रुपए लागत बचाने या 12% तक की GST चोरी का भी नहीं है.
मेरे संसाधन समझ और पहुंच सीमित है लेकिन यदि सरकार जांच करती है तो मेरा पूरा भरोसा है कि यह जीएसटी चोरी कर भारत में नकली, डुप्लीकेट और अवैध ढंग एंटीबायोटिक इंजेक्शन और दूसरी दवाइयां बनाने का दिल दहलाने वाला मामला निकल सकता है.
- सुनील सिंह बघेल
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