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परलोक सुधारने गए, परलोक सिधार गए

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Subrato Chatterjeeसुब्रतो चटर्जी 

कुंभ में मृतकों की संख्या छुपाई जा रही है. कौन सा क्रिमिनल अपने अपराधों की सूची को सार्वजनिक करता है ? क्या सुप्रीम कोठा कुंभ के सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग मंगवाकर सुनिश्चित करेगा कि वास्तव में कितनी मौतें हुईं हैं ? कभी नहीं. क्योंकि ऐसा करने पर क्रिमिनल लोगों और न्यायपालिका के नेक्सस पर चोट पहुंचेगी.

मैं यह देख कर हैरान हूं कि भारत के शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे हुए अफ़सरों और न्यायाधीशों की क्या दुर्गति हो गई है. यहां पर मैं क्रिमिनल लोगों की सरकार की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि केंद्र से लेकर भाजपा शासित राज्यों तक जो भी शीर्ष पद पर बैठे हैं, सारे या तो क्रिमिनल हैं या भंडुवे.

जनता अनपढ़ हो सकती है, अंधविश्वासी और क्रिमिनल पूजक हो सकती है. जनता को जिस हाल में शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक हालात में स्वतंत्रता के बाद से आज तक रखा गया है, उससे उसका दोष बहुत ज़्यादा नहीं है.

असल दोषी हमारे प्रशासनिक अधिकारी और न्यायपालिका ही है. पुलिस जन्मजात करप्ट है, इसलिए उसकी बात करना बेकार है. दोषी वे हैं जो संविधान प्रदत्त अधिकारों के तहत नेताओं और जनता के अधिकारों के बीच check and balance का काम करते हैं. न्यायपालिका भी इसी दायित्व को निभाने के लिए बनी है. चुनाव आयोग और सीएजी जैसी संस्थाओं का भी यही काम है, लेकिन सब के सब मर चुके हैं.

बात ज़मीर जागने की नहीं है. भारतीय प्रशासन और न्यायपालिका का ज़मीर भारत का संविधान है, न कि कोई व्यक्तिगत चीज़. दरअसल, समस्या दूसरी जगह पर है. भारत का संविधान पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ एक उद्घोषणा है, भले ही वह सांकेतिक ही क्यों न हो, और विकृत, आवारा पूंजीवादी दौर में हमारी न्यायपालिका और ब्यूरोक्रेसी को यह अपने वर्ग स्वार्थ में नापसंद है.

इन हालातों में संविधान की रक्षा करने की राहुल गांधी की लड़ाई को बहुत कम समर्थन मिलने की संभावना है. आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस की लड़ाई को समर्थन मिल रहा है, लेकिन वह भी तभी तक मिलेगा जबतक न कांग्रेस सत्ता में आ जाए. जिस दिन कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी, उसी दिन से यही लड़ाई उस पर भारी पड़ जाएगी क्योंकि कांग्रेस के पास कोई ठोस आर्थिक नीति नहीं है. कांग्रेस पांच किलो राशन के बदले युवाओं को बेरोज़गारी भत्ता देने की बात करती है, लेकिन पूंजी के विकेंद्रीकरण की बात नहीं करती है.

असल लड़ाई समाजवादी विचारधारा और पूंजीवादी विचारधारा के बीच है, जिसे detract करने के लिए अलग-अलग पूंजीवादी खेमे अलग-अलग alternative समय समय पर पेश करती है. फिर भी यह तो कहा ही जा सकता है कि कांग्रेस भाजपा की तरह क्रिमिनल, हत्यारों, रेपिस्ट और लुटेरों का निर्लज्ज गिरोह आज भी नहीं है. शायद इसके पीछे इसकी आज़ादी की लड़ाई की विरासत है जो कि नंगे और लंपट संघियों के पास नहीं है.

आज के समय में देश को इसलिए कांग्रेस की ज़रूरत है. संभव है कि सत्ता मिलने के बाद कांग्रेस अपनी पुरानी पूंजीवादी नीतियों को तिलांजलि देकर नये समाजवादी नीतियों को लागू करे. फिर भी कांग्रेस का सबसे बड़ा दायित्व इन क्रिमिनल लोगों को बिना ट्रायल के उपर से नीचे तक सरेआम फांसी देना होगा. क्या कांग्रेस ऐसा कर पाएगी ?

जिस तरह से गंगा के तट पर हज़ारों कोरोना के शिकार लोगों के शव गाड़ देने के एवज़ में गोबरपट्टी ने भाजपा को यूपी में दुबारा जीता दिया, ठीक उसी तरह से, मुझे पूरा विश्वास है कि कुंभ में हज़ारों अपनों को खोने वाले पुनः क्रिमिनल लोगों की सरकार ही चुनेंगे. मृतकों के प्रति जब उनके परिजनों के मन में ही कोई संवेदना नहीं है तो हम घड़ियाली आंसू बहा कर क्या कर लेंगे ?!

यह देश स्वैच्छिक ग़ुलामों का है और ग़ुलामी पसंद जनता संगठित प्रतिरोध नहीं कर सकती है. मोदी के पिछले दस सालों में क़रीब पच्चीस करोड़ नये ग़रीबों को पैदा किया गया है. लोग नोटबंदी, तालाबंदी और जीएसटी की मार से मरते रहे और अपनी नौकरियां खोते गए. आप जिन अस्सी करोड़ लोगों को लाभार्थी कहते हैं, दरअसल वे सही मायने में भिखार्थी बनाए गए हैं.

फिर भी जनता सड़कों पर नहीं उतरती है. इसका सीधा मतलब यह है कि जनता अपने को जानवरों और भिखारियों से ज़्यादा कुछ नहीं समझती है. धर्म और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर संपूर्ण गधत्व को प्राप्त जनता को संपूर्ण लंपटत्व को प्राप्त सरकार, संपूर्ण कुकुरत्व को प्राप्त मीडिया और संपूर्ण बेकारत्व को प्राप्त युवा पीढ़ी ही मिलती है. इतिहास में इसका कोई अपवाद नहीं है और न कभी मिलेगा.

आज मैं मुतमइन हूं कि इस देश की जनता की लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए, इनको मरने के लिए ही छोड़ देना चाहिए. कम से कम दुनिया के मानचित्र से सबसे ज़्यादा बेगैरत लोगों की संख्या तो बहुत कम हो जाएगी. बिना जनविरोधी हुए भी मुझे ऐसी जनता के मुंह पर सिर्फ़ थूकने का मन करता है.

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