Home कविताएं रूको बच्‍चो रूको !

रूको बच्‍चो रूको !

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रूको बच्‍चो रूको !
सड़क पार करने से पहले रुको
तेज रफ़्तार से जाती इन गाड़ियों को गुज़र जाने दो

वो जो सर्र से जाती सफ़ेद कार में गया
उस अफ़सर को कहीं पहुंचने की कोई जल्‍दी नहीं है
वो बारह या कभी-कभी तो इसके बाद भी पहुंचता है अपने विभाग में
दिन, महीने या कभी-कभी तो बरसों लग जाते हैं
उसकी टेबिल पर रखी ज़रूरी फ़ाइल को ख़िसकने में

रूको बच्‍चो !
उस न्‍यायाधीश की कार को निकल जाने दो
कौन पूछ सकता है उससे कि तुम जो चलते हो इतनी तेज़ कार में
कितने मुक़दमे लंबित हैं तुम्‍हारी अदालत में कितने साल से
कहने को कहा जाता है कि न्‍याय में देरी न्‍याय की अवहेलना है
लेकिन नारा लगाने या सेमीनारों में बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्‍य
कई बार तो पेशी दर पेशी चक्‍कर पर चक्‍कर काटते
ऊपर की अदालत तक पहुंच जाता है आदमी
और नहीं हो पाता इनकी अदालत का फ़ैसला

रूको बच्‍चो !
सडक पार करने से पहले रुको
उस पुलिस अफ़सर की बात तो बिल्‍कुल मत करो
वो पैदल चले या कार में
तेज़ चाल से चलना उसके प्रशिक्षण का हिस्‍सा है
यह और बात है कि जहां घटना घटती है
वहां पहुंचता है वो सबसे बाद में

रूको बच्‍चों रुको !
साइरन बजाती इस गाडी के पीछे-पीछे
बहुत तेज़ गति से आ रही होगी किसी मंत्री की कार
नहीं, नहीं, उसे कहीं पहुंचने की कोई जल्‍दी नहीं
उसे तो अपनी तोंद के साथ कुर्सी से उठने में लग जाते हैं कई मिनट
उसकी गाड़ी तो एक भय में भागी जाती है इतनी तेज़
सुरक्षा को एक अंधी रफ़्तार की दरकार है
रूको बच्‍चो !
इन्‍हें गुज़र जाने दो

इन्‍हें जल्‍दी जाना है
क्‍योंकि इन्‍हें कहीं पहुंचना है

  • राजेश जोशी

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