रविन्द्र पटवाल
वैसे यह ज्ञान दशकों से हमारे पास उपलब्ध है, लेकिन इसे बार-बार दिखाने और आम लोगों के दिमाग में घुसेड़ने की जरूरत है. भारत एक विकासशील देश था, है और रहेगा. बस फर्क इतना आया है कि पिछले डेढ़ दशक से सबकी जमापूंजी सिर्फ चंद लोगों के पास जमा हो रही है. नोटबंदी, जीएसटी, कोविड और K शेप अर्थव्यवस्था इन सबने मिलकर 90% लोगों के धन को 0.01% काले भारतीयों के पास पहुंचा दिया है.
अब उनकी सेवा में जुटे कुछ अन्य 9.09% भी कुछ कमा खा रहे हैं, और इन्हीं 10% लोगों को भारत की जीडीपी को ढोना है और विश्वगुरु बनते दिखना है. बाकी बचे 90% में से 20 फीसदी लोग इसी आस में ऊंचे पेड़ पर लटकते अंगूर का पीछा करते रहने वाले हैं, जिसमें से एक आध प्रतिशत पहुंच जाये, बाकी सभी भी शेष 70% की श्रेणी में गिरने के लिए अभिशप्त हैं.
इसके लिए कई तामझाम में बड़ी आबादी उलझी हुई है. बड़ी संख्या खेती में इन्हीं .01% के उत्पादों को इस्तेमाल कर (पहले की तुलना में काफी महंगे) सोचती है कि इस साल मोटा मुनाफा मिलेगा, लेकिन हर साल और गरीबी में फिसल जाते हैं.
इसी प्रकार गांव देहात और छोटे कस्बों से नगरों महानगरों की ख़ाक छानते असंगठित क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करते करोड़ों युवा कब अधेड़ बन जाते हैं, उन्हें मकान के किराये, महंगी शिक्षा, दवाई, ट्रांसपोर्ट के बाद जो कुछ भी अगर बच गया तो गेमिंग एप्प, शेयर बाजार वाले लूट रहे हैं.
कुल मिलाकर कहें तो हमारे देश की प्रति व्यक्ति आय जो 2,731 डॉलर प्रति वर्ष भी दिख रही है, वो भी झूठी है. 90% लोगों की इनकम असल में इससे बहुत-बहुत कम है, क्योंकि इसमें उनकी इनकम भी जुड़ी है, जो कई अरब डॉलर कमा रहे हैं.
हम विश्वगुरु नहीं अफ़्रीकी देशों से भी बदतर हालत में पहुंच चुके हैं, और यह बात हमारे देश के नेता आपसे बेहतर जानते हैं. उन्होंने 2017 में ही समझ लिया था कि पार्ले जी का बिस्किट लगातार छोटा और पैक साइज़ का आकार क्यों कम होता जा रहा है. लेकिन वे दिन रात मिलकर ‘हुआ हुआ’ करने में लगे हुए हैं कि हमारा देश जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के करीब है, जो 3 साल में बन भी जायेगा !
लेकिन तब भी आपको पता चलेगा कि अमेरिका, चीन के बाद तीसरे नम्बर पर पहुंचने के बाद आप तो पहले से भी गरीब, लाचार या फटेहाल हो चुके हैं. विश्वगुरु बनने का समय निकट है, लेकिन आपके फटेहाल होने का समय उससे भी नजदीक है. यकीन नहीं होगा, क्योंकि टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया तो इसके ठीक उलट बता रहा है.
ये बात उनसे पूछिए जिन चैनलों के पत्रकारों को AI के आ जाने के बाद दूध में मक्खी की तरफ निकाल फेंका जा रहा है. 2 लाख की सैलरी पाने वाले ये लोग 20 हजार रूपये महीने की नौकरी के लिए भी तरस रहे हैं, लेकिन सामने मिलने पर बता नहीं सकते. यही हाल आईटी, एड टेक, फिन टेक में है. ऑटो सेक्टर को झटके लग रहे हैं, अभी भी कुछ जगहों पर स्थायी कर्मचारियों को वीआरएस की सुविधा है, जो शेष 90% ठेके पर काम करने वालों को नहीं है.
10 हजार से लेकर 15,000 में बी.टेक इंजीनियर जिस देश में उपलब्ध हों, उसका मेसन इजराइल जाकर 1.5 लाख रूपये महीना या 2.5 लाख रूपये हर माह अमेरिका में ट्रक ड्राइवर कैसे कमा रहा है ? सोशल मीडिया में हम रील्स देखने के लिए ही क्यों आते हैं ? नहीं भी आते तो थोड़ी ही देर बाद हम कैसे भटका दिए जाते हैं ? या हिंदू मुस्लिम, लड्डू में चर्बी में कैसे फंस जाते हैं ?
आप खुद नहीं फंसते, बल्कि फंसाए जाते हैं क्योंकि आपको सोचने का वक्त नहीं देना है मित्रों ! क्योंकि आपने सोचना शुरू किया तो बवाल मच जायेगा. हमको श्रीलंका थोड़े ही बनना है ? हमें तो दो चार लोगों को विश्वगुरु अर्थात दुनिया का सबसे अमीर घराना बनाने पर फोकस करना है. उन्हीं के वास्ते आपके लिए रील्स बनते और बनाये जाते हैं, जिसे हमारे बीच से ही लाखों नौजवान सहर्ष बना रहे हैं और करोड़ों लोग टाइम पास कर रहे हैं.
ये टाइम पास काफी महंगा पड़ने वाला है, क्योंकि आपके दुःख और परेशानियों के समय आपके आसपास कोई दूर-दूर तक नहीं होने वाला है. सोशल मीडिया, अख़बार, टीवी, बिग बॉस, ब्लॉग ये सभी मिलकर एक ऐसा कृत्रिम संसार निर्मित करते हैं, जो आपको हमेशा चीयरफुल बने रहने में मदद करते हैं, जब तक कि आपके खून की अंतिम बूंद दूसरी तरफ से कोई चूस न ले. अगर सरमायेदारों को यह अस्त्र आजादी मिलने से पहले ही मिल गया होता तो ये नए नए तरीकों से लूटने का झंझट ही नहीं होता.
भारत सरकार ने एक बार फिर से देश में रोजगार के आंकड़े जारी कर हम सबकी आंखें खोल दीं हैं कि देश में बेरोजगारी दर अपने न्यूनतम स्तर पर कायम है. देश में पिछले साल मात्र 3.2% महिला और पुरुष ही बेरोजगार थे, जो कि 2017-18 में 6% थे. इसके लिए सरकार ने अपने संख्यकीय विभाग में बहुत मेहनत की है.
पिछले दस वर्षों के दौरान बहुत से पुराने अधिकारियों की छुट्टी कर दी. योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग को बिठाया. और भी न जाने कितने पापड़ बेल इन आंकड़ों को तैयार किया है. जैसे कि यदि आप ट्यूशन पढ़ाने का काम करते हैं लेकिन नौकरी की तलाश में जुटे रहते हैं तो आप रोजगारशुदा हैं. आपकी मां जो घर का सारा काम करने के बाद पिताजी के साथ खेत के काम में हाथ बंटाती है तो वो भी रोजगारशुदा हैं.
और तो और, अगर आप ग्रेजुएट या डिप्लोमा कोर्स करने के बाद घर पर बेकार बैठे हैं और घर वालों के द्वारा दो रोटी के डर से बाप की चक्की की दुकान में आटा पिसवाने में सहयोग करते हैं, तो भी आपको रोजगारशुदा मान लिया गया था, पिछले पीरियोडिक लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन के सर्वे में. देश को विश्वगुरु कैसे बनाना है, यह बात नॉन बायोलॉजिकल परमेश्वर से बेहतर भला कौन बता सकता है ?
उधर राहुल गांधी अमेरिका जाकर हरियाणा के डंकी युवाओं के साथ की वीडियो बनाने के बाद उनके परिवार वालों और बच्चों के साथ मुलाकात कर रहे हैं, और देश में बेरोजगारी दर को 25% से नीचे नहीं मानते तो क्या हुआ ?
जब यह तय हो चुका है कि पकौड़ा बेचना, भीख मांगना, बीफ के नाम पर हर ट्रक को रोककर हफ्ता वसूली और यूपी में तो ज्वैलरी शॉप लूटना रोजगारशुदा जिंदगी है तो ऐसे वीडियो से हरियाणा या देश की सेहत पर भला क्या असर पड़ने वाला है ?
यह चिल मारकर बोस्टन गई उस बिहार की महिला के भावविभोर शब्दों को अपने भीतर रचा बसा लेने का वक्त है, जो नॉन बायो को छूने के लिए अपने खिसियाए पति के साथ अमेरिका की यात्रा करने के अलावा और न जाने क्या क्या पापड़ बेल चुकी होगी ? ऐसे ही लोगों की और जरूरत है भारत वर्ष को जल्द से जल्द विश्वगुरु बनाने के लिए.
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में हिन्दू संगठन के लोग वक्फ बोर्ड और मस्जिदों के खिलाफ जुलूस निकाल रहे थे. इस दौरान वीरेंद्र परमार नामक व्यक्ति की हार्टअटैक के कारण चलते-चलते मौत हो गई. हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों की जनसांख्यकी कुछ इस प्रकार से है कि इन दोनों राज्यों में सवर्ण हिंदुओं की बहुतायत है. इन्हें देवभूमि का बताकर बड़ी आसानी से काबू में किया जा सकता है.
इनमें से अधिकांश लोग सरकारी नौकरी, सेना या पुलिस में हैं. अर्थात इन्हें अंग्रेजों से लेकर नेहरु की नीतियों का बरोबर लाभ मिला है. लेकिन आजकल रोजी, रोटी और सेना में अग्निवीर के कारण लाले पड़े हुए हैं. इसके बावजूद, इन्हें बता दो कि हिंदू धर्म की रक्षा तुम्हीं का सकते हो तो ये लोग ओल्ड पेंशन स्कीम और पुरानी वाली सेना की भर्ती को लात मारकर तत्काल बलिवेदी पर चढ़ने के लिए तत्पर नजर आयेंगे.
कांग्रेस के अधिकांश विधायक और मंत्री भी राहुल की जाति जनगणना की पॉलिटिक्स के कारण अंदर ही अंदर मान चुके हैं कि अब इन दो राज्यों में कांग्रेस का भविष्य खत्म है. वीरभद्र का बेटा तीसरी बार कांग्रेस की सरकार को हिलाने की कोशिश कर चुका है, आगे भी करता रहेगा. पिछले हादसे में कांग्रेस की सरकार जाते जाते बची थी. 8 अक्टूबर को दो राज्यों के चुनाव के बाद इनकी हरकत पर लगाम लग सकती है. रिमोट कहीं और है, ये बस हरकत करते हैं.
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने भी लगता है मान लिया है कि 4+5 मतलब 9 सांसदों वाले दो राज्यों का नुकसान कर यदि यूपी, एमपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब सहित दक्षिण और पश्चिम पर दावा मजबूत होता है तो ये सीटें तो भाजपा के लिए छोड़ी जा सकती हैं.
इन दोनों राज्यों में मुस्लिम आबादी बेहद कम है. लेकिन इस्लामोफोबिया के मामले में हमारा प्रदेश (उत्तराखंड), गुजरात को भी फेल कर सकता है. खेत हम दशकों पहले बंजर छोड़ चुके हैं, लेकिन एक भी व्हाट्सअप यदि ये संदेश दे कि मुस्लिम कब्जा कर लेंगे, तो वायरल हो जाता है. इनका अच्छा सदुपयोग हिंदुत्ववादी राजनीतिक दल ही कर सकती है. इन्हें इनके हाल पर छोड़ देना ही अच्छा है.
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विश्व गुरु बनने की सनक
हम भारत हैं, हम बिहार हैं, हम सीधे विश्वगुरु बनेगें, बस, अगली बार 400 पार हो जाए !
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