Home कविताएं वैलेंटाइन्स-डे पर विनोद शंकर की तीन कविताएं

वैलेंटाइन्स-डे पर विनोद शंकर की तीन कविताएं

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विनोद शंकर

प्यार में मेरी कामना
बस यही रही की
तुम सिमट न जाना मुझ तक
और मैं तुम तक
हम दोनों एक-दूसरे की बातों और
आदतों में उलझ कर न रह जाए
इसलिए मैं सिर्फ़ प्यार नहीं
तुमसे संसार की भी बात करता रहा
कभी किताब तो कभी फूल
तो कभी जंगल-पहाड़ों की बात करता रहा
ताकी इसी बहाने
हम दोनो एहसास कर सके की एक-दूसरे की तरह
हमें इनकी भी जरुरत है

मेरी हमेशा कोशिश रहती है
तुम्हारे हिस्से में
मुझसे ज्यादा प्यार, सम्मान और खुशियां आए

मै चाहता हूं
हम प्यार में जीते हुए खुदी में न भूल जाए
बल्कि एक-दूसरे के सहयोग से
पूरी दुनिया को जान जाए
की क्या अच्छा है और क्या बुरा है
इस तरह हम भी उनके साथ खड़ा हो सके
जो दुनिया को सुन्दर बनाने में लगे हैं.

2

आज मैंने उसकी आंखों में प्यार देखा अपने लिए
तो लगा कि जन्नत देख रहा हूं
तब से मैं अपने अंदर
कितना भरा-भरा महसूस कर रहा हूं
लग रहा है कि मेरी सारी ख्वाहिश ही पूरी हो गई हो
अब मुझे उस से कुछ ही नहीं चाहिए
सिवाय इन प्यार भरी आंखो के !

ये एहसास की कोई हमें प्यार करता है
हमें पागल बना देता है
जिन्दगी में कुछ करने के लिए
बशर्ते कि आप भी उसे प्यार करते हो
और इसी पागलपन में होते है बड़े काम
आकर लेती है कोई बड़ी रचना
जो मानवता को और आगे ले जाती है.

बिना प्यार के नहीं संभव है जीवन
क्रांति की तो बात ही छोडिये
श्रम के कोख से पैदा हुआ
यह पहला बच्चा है
जिसने हमारी सभ्यता की नींव रखी है
इसकी जडें न तो वेद में है और न ही कुरान में है
और नहीं बाइबिल में है
इसकी जड़ें तो इंसान के उस हाथ में है
जिसने पहली बार हल की मुट्ठी पकड़ा
अजंता-अलोरा की गुफाओं में भित्ति चित्र बनाया
हम उसी कि संतान हैं.

हमारे रग-रग को प्यार है
मजदूरों और किसानों से
श्रम करने वाले सारे इंसानों से
इसी प्यार की बदौलत हम खड़ा करेंगे
सभ्यता की नई ईमारत
जिसमें अफ्रीका के नीग्रो
इंग्लैंड के गोरो
बस्तर के गोंड
और पूना के चित्तपावन ब्राम्हण
चीन के मंगोल
जर्मनी के आर्यो के बीच
कोई भेद नहीं होगा.

3

तुम्हारा नाम लेते ही
तुम्हें देखते ही
मेरे दिल कि धड़कन
बढ़ जाती है
सांसें जोर-जोर से
चलने लगती है
न जाने ऐसा क्या जादू
किया है तुमने मुझ पर
मैं तुम्हारे प्यार में पंक्षी बन कर
उड़ने लगता हूं
और घूम आता हूं पूरी दुनिया

वो जगह जहां तुम्हारी यादें हैं
मेरे लिए तीर्थ स्थल बन जाती है
मै उसे वैसे ही श्रद्धा और प्यार से देखता हूं
जैसे मुसलमान मक्का-मदीना
और हिन्दू अपने धाम को देखते हैं
तुम हो तो
मुझे जरूरत नहीं होती
किसी अल्लाह और भगवान की
मुझे तुम्हारी आंचल में ही
जन्नत की खुशी मिलती है.

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