विकास का आकाश
इतना संकीर्ण !
सोचा नहीं था
देशभक्ति का रंग
इतना दागदार !
सोचा नहीं था
पता तो था उस
मार्ग के कुमार्ग का
शीर्ष का सिंहासन
मगर इतना पतित !
इतना गलीज !!
सोचा नहीं था
उस हाथ से
इस हाथ
सौंपा था
सत्ता
मगर यह क्या
यह भी रंगा सियार
हू ब हू उसी का
कलर जेरोक्स !
सोचा नहीं था
तिरंगा झुका कर
मित्रता का ऐसा
कर्जदार फर्ज
यह देश है
या किसी कुलक की
प्राइवेट प्रापर्टी
सोचा नहीं था
देशभक्ति की आड़
कंकासा का ऐसा बेशर्म हस्ताक्षर
सुरक्षा संप्रभुता की ऐसी खुली नीलामी
सोचा नहीं था
ऐसे कुकृत्य पर
उच्चतर शिक्षितों की
ऐसी अलम्बरदारी
तथाकथित बुद्धिजीवियों पत्रकारों की
गुमसुम बेशर्म परदादारी
सोचा नहीं था
- राम प्रसाद यादव
(07/10/2018)
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