भारत जैसे विशाल बाजार को अन्तर्राष्ट्रीय बजार के सामने खुला छोड़ने और विदेशी निवेशकों को लाल कालीन बिछा कर देश में पूंजी लगाने का काला अध्याय अब दिखने लगा है. तत्कालीन सरकार के इस आत्मघाती कदम का देश की जनता तथा बुद्धिजीवियों ने जमकर विरोध भी किया था, पर अमेरिका के चरणों पर बिछने को आतुर देश की बिकी हुई दलाल सरकार ने सारे विरोधों को दरकिनार कर देश में विदेशी निवेशकों को न केवल आमंत्रित ही किया वरन् उसके सुख-सुविधा के लिए देशी कम्पनियों के हितों को ताक पर रखकर विदेशी कम्पनियों के लिए नीतिगत बदलाव भी किये. इसके बावजूद विदेशी कम्पनियों आज देश के गले में अटकी हड्डी ही साबित हो रही है.
विदेशी कम्पनियां इस देश में इसी शर्त पर निवेश के लिए राजी हुई थी कि ‘‘अगर भारत में निवेश के बाद उसे नुकसान होता है तो उसकी भरपाई भारत सरकार को करनी होगी.’’ अब इस शर्त के अनुसार विदेशी कम्पनियों ने भारत सरकार पर 45 हजार करोड़ रूपये का डैमेज कन्ट्रोल के नाम पर क्षतिपूर्ति की मांग कर और मुकदमा दायर किया है. यूके के कम्पनी बेदांता ने सबसे ज्यादा 20 हजार करोड़ रूपये का क्षतिपूर्ति की मांग के साथ मुकदमा किया है तो वहीं देवास मल्टीमिडिया ने 6,500 करोड़ रूपया के मांग के साथ मुकदमा दायर किया है. इस तरह बैठे बिठाये विदेशी कम्पनियों को 45 हजार करोड़ रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में देने की मांग के आगे हम देश में आत्महत्या कर रहे किसानों की छवि को देख सकते हैं, जो महज चंद हजार करोड़ रूपये की अपनी सम्पूर्ण कर्ज के बकाये के डर से आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं.
विदेशी कम्पनियों की देश की अर्थव्यवस्था पर इतना ज्यादा प्रभुत्व हो चुका है कि भारत सरकार निश्चित रूप से उसकी मांग के आगे घुटने टेक देगी और देश की अर्थव्यवस्था और ज्यादा रसातल में जाने को बाध्य होगी. बता दें देश के हर बुनियादी हिस्सों में शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्यान्न सहित विदेशी निवेश हो चुकी है.
इसी मुद्दे पर 18 से 28 जुलाई को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में आर.ई.सी.पी. (इंटर-सेसनल रिजनल कम्प्रहैन्सिव इकोनाॅमिक पार्टनरशिप) की बैठक होनी वाली है, जिसमेमं विश्व के 16 देश भाग ले रही है. इसमें भारत सहित म्यांमार, लाओस, वियतनाम, थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, ब्रुनेई, सिंगापुर, इंडोनेशिया के अलावे चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया भाग ले रही है. देश में विदेशी निवेश के मामले सिंगापुर दूसरे स्थान पर तो जापान तीसरे, दक्षिण कोरिया चैथे और चीन 17वें स्थान पर है. जाहिरा तौर पर इस बैठक में सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन अपने-अपने देश के निवेशिकों की डैमेज कन्ट्रोल हेतु मुआवजे की भुगतान हेतु ज्यादा आक्रामक है, जिससे निपटने के लिए भारत की मोदी सरकार जैसी दलाल सरकार कतई सक्षम नहीं है. वह तो इन्टरनेशनल ट्रिब्यूनल में मामले न चला जाये इसलिए भी भयाक्रांत हैं.
इन्टरनेशनल ट्रिब्यूनल के डर से निश्चिय ही भारत सरकार को इन विदेशी निवेशकों के 45 हजार करोड़ के भारी-भरकम मुआवजे की मांग को मानना ही होगा, जिसका परिणाम देश की मेहनतकश जनता को भुगतना होगा. देश में एक बार फिर नोटबंदी और जीएसटी के भारी टैक्स वसूली अलावे अन्य आघात के लिए तैयार रहना चाहिए जिसका बीज यह सरकार विदेशी निवेश के अलावे अन्य रूपों में बो चुकी है और बोने जा रही है. हम मोदी सरकार के द्वारा लगातार देश की जनता के साथ किये जा रहे नोटबंदी और जीएसटी जैसे घातक 28 प्रतिशत जैसे भारी-भरकम टैक्स को देशी और विदेशी कम्पनियों के इसी क्षतिपूर्ति की अदायगी के रूप में देखने को बाध्य हैं.