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बीएसपी के परिणाम से बहुत ही दुःखी मिशनरी पीएचडी छात्र का चेतावनी पत्र

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बीएसपी के परिणाम से बहुत ही दुःखी मिशनरी पीएचडी छात्र का चेतावनी पत्र
बीएसपी के परिणाम से बहुत ही दुःखी मिशनरी पीएचडी छात्र का चेतावनी पत्र

इस पत्र को अन्तःपार्टी संघर्ष के तौर पर देखना चाहिए, जो अमूमन हर पार्टी के अंदर चलता है. इस पत्र के द्वारा लेखक बसपा के सुप्रीमो मायावती को यह संदेश देना चाहता है कि भाजपा की छल-कपट से भरी सालोंभर चलनेवाली चुनावी कम्पैन से निपटने के लिए बसपा को भी छल-कपट भरी राजनीति को तरजीह देनी चाहिए. बहरहाल, जैसा कि खबर है मायावती को सीबीआई का डर दिखा कर भाजपा ने बसपा को भाजपा के सामने सरेंडर करने के लिए विवश कर दिया है.

उत्तर प्रदेश चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी के एक करोड़ 18 लाख वोटों को काटकर भाजपा के जीत का मार्ग प्रशस्त किया है, जिसके बदले में मात्र एक जीत पर जीत दर्ज की है. अन्दरखाने यह खबर चल रही है कि भाजपा मायावती को भाजपा के खाते में जीत दर्ज करवाने के एवज में राष्ट्रपति पद पर बिठालने का वायदा किया है. राष्ट्रपति बनने का साफ मतलब है मायावती के लिए आगे की राजनीति बंद हो जायेगी, यानी बसपा को अगर अपना अस्तित्व बचाना है तो मायावती को बसपा से बाहर कर राजनीति की कमान किसी और के हाथों में सौंपनी होगी.

मायावती भी अपने राजनीतिक भविष्य के अंत को समझ चुकी है, संभवतः इसीलिए उसने बसपा के राजनीति की कमान अपने भतीजे को सौंप दी है. लेखक अपने पत्र द्वारा मायावती को लगभग क्लीनचिट देते हुए, उनके उत्तराधिकारी को अपने सवालों का निशाना बनाया है. पत्र लेखक अपना परिचय स्पष्ट रूप से नहीं देते हैं, पर वे खुद को मायावती का ‘भक्त’ और शुभचिंतक बता रहे हैं. बसपा के अन्तःपार्टी संघर्ष को समझने के लिए यह पत्र एक जरूरी आयाम प्रस्तुत करती है. पत्र का मजमून इस प्रकार है.-

प्रिय आकाश,

आप मुझे नहीं जानते और ना जानपहचान करने का समय रहा अब दोस्त. हम लगभग हमउम्र होंगे. मेरी पहचान फिलहाल इतनी काफी है कि मैं राजनीति विज्ञान का रिसर्च स्कॉलर हूं और उससे पहले मान्यवर साहब कांशीराम का अनुयायी. दोस्त, मैंने राजनीति विज्ञान में एक विषय के तौर पर दुनिया भर के करीब 100, 150 विचारक पढ़े हैं, समझें हैं. अपने अध्ययन से बड़ी जिम्मेदारी से कहता हूं कि मान्यवर साहब कांशीराम स्वतंत्र भारत के एक मात्र पूर्ण राजनीतिक विचारक हैं. आप जन्मजात भाग्यशाली हैं कि मान्यवर साहब की विरासत आपको मायावती जी के ‘भतीजे’ होने के नाते मिल रही है.
दोस्त, मैं उन मुट्ठीभर लोगों में से हूं जिसे तुम्हारे बसपा के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर होने से समस्या नहीं है. बहिनजी ने कई नेताओं पर भरोसा किया. अधिकांश थोड़े बहुत रुपयों में बिक गए, मैं बहिन जी की मजबूरी समझता हूं.

पर दोस्त, तुम जिस तरह राजनीति में आये उससे मुझे आपत्ति है. तुम्हें नहीं पता गांव के स्तर पर कैसे कार्यकर्ता काम करता है, उसका अंतिम व्यक्ति से संवाद करने का तरीका कैसा होता है, उसकी आर्थिक, पारिवारिक मुश्किलों का तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है. तुम्हें पहले बूथ से ले कर राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समझ और अनुभव होता तब तुम ये काम सही से कर पाते. हां खुद को धोखे में मत रखो कि तुम राष्ट्रीय पद पर रहते हुए जमीन की सच्चाई जान जाओगे. बिना अनुभव के तुम्हें सही फीडबैक मिल ही नहीं पाएगा और ना तुम उस फीडबैक का सही/सही आंकलन कर पाओगे.

अब बिंदुवार आते हैं चुनाव पर –

1. 11 मार्च को सुबह बहिन जी की हार के बाद समीक्षा सुनी. दोस्त विश्वास मानो उस समीक्षा से ये समझ आया कि वे अब जमीन की सच्चाई से कोशों दूर हैं और आत्ममुग्ध हैं. 2022 के चुनाव की हार के लिए केवल और केवल बहिन जी जिम्मेदार है.

आप चुनाव उसी दिन हार गए थे जब 2019 के आखिर में हुए राज्यसभा चुनाव में बहिन जी ने कहा था कि ‘सपा को हराने के लिए भले बीजेपी को समर्थन करना पड़े, हम करेंगे.’ दोस्त ये बात गिनती के लोग समझते हैं कि बहिन जी का ये बयान केवल राज्यसभा चुनाव के लिए है, तब भी उन्हें ये बयान नहीं देना चाहिए था. सपा ने इस एक बयान को आधार बना कर पूरे चुनाव में आपको बाहर कर दिया.

मुसलमानों को उन्होंने ये बताया कि ये बयान विधानसभा चुनाव के बारे में है. ह्वाट्स एप पर लगभग हर मुसलमान के पास बहिनजी का वो एडिटेड वीडियो आया. दूसरा वो वोटर जो चाहता था कि बीजेपी की सरकार अब ना बने, उसके मन में इस एक बयान से ये बात बैठ गई कि बसपा बीजेपी की मदद करेगी, अगर बीजेपी के पास पर्याप्त सीट नहीं आतीं हैं तो.

यहां तक कि कई जम्मेदार मीडिया घरानों ने इस बयान को आधार बना कर बसपा को बीजेपी के पक्ष में खड़ा बताया. ये नरेटिव खड़ा हुआ और आप लोगों ने इसके प्रतिउत्तर में ठोस बात नहीं कही, उल्टा बहिन जी ने बहुत सधे शब्दों में बीजेपी की आलोचना की. उनके ट्वीट की आप भाषा पढ़िए. जो व्यक्ति राजनीति का ‘र’ नहीं जानता उसे भी लगेगा कि ये किसी विपक्षी नेता की भाषा नहीं है.

(मेरी इस बात को सकारात्मक रूप से लीजिएगा. मैं बहिनजी के त्याग या मिशनरी होने पर सवाल नहीं उठा रहा, इतनी औकात मेरी क्या, किसी की नहीं है.)

2. आगरा की पहली रैली में बहिन जी ने लेट प्रचार शुरू करने का कारण बताया कि वे हर सीट पर प्रत्याशी खुद चुन रहीं थी. ये तर्क मानते हैं ठीक है. 2017 के चुनाव में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पास टिकट वितरण की जम्मेदारी थी, जब चुनाव हारे तो उन्हें निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने टिकट वितरण सही नहीं किया. अब इस बार चुनाव हारने पर किसे निकाला जाए दोस्त…?

सही बात ये है कि आपके सामने बीजेपी है, जो 24 घण्टे पूरे साल राजनीति करती है और आप चुनाव के 4 महीने पहले राजनीति कर रहे हैं. इस चुनाव के लिए मेहनत आपको 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू करनी थी और बहिन जी चुनाव के 8 दिन पहले से शुरू कर रहीं हैं. ऐसे मुकाबला नहीं कर पाएंगे आप आज की बीजेपी से.

ये मत कहिएगा की मिश्रा जी जुलाई 2021 से प्रचार कर रहे हैं. बसपा को वोट बहिन जी के नाम पर मिलता है, मिश्रा जी के नाम पर नहीं. यहां ये बात कहना जरूरी है कि सतीशचंद्र मिश्रा जी और उनके पूरे परिवार ने बहुत ज्यादा मेहनत की है इस चुनाव में. उनको दुनिया दोष दे सकती है पर मैं नहीं दूंगा.

बहिन जी ने सभाएं कितनी की…? पूरे 403 विधानसभा सीट वाले राज्य में कुल 19 सभाएं. इस लाइन तो दोबारा पढियेगा दोस्त, हंसी आ जाती है. आप ऐसे चुनाव जीतने का सपना देखेंगे ! ये मोदी-अमित शाह का राजनीति का दौर है. वे नगर निगम के चुनाव में इससे दोगुनी सभाएं कर लेते हैं दोस्त और आप इतने में भारत का सबसे बड़ा राज्य जीतने का सपना देख रहे हैं.

3. ठीक है बसपा का अपना काम करने का तरीका है. बहिन जी की ये बात मानते हैं, पर दोस्त ये तरीका 2007 तक ठीक था जब मान्यवर साहब से कैडर लिए युवा वोटर हुआ करते थे, आज वे लोग बूढ़े हो चुके हैं, उनके बच्चे आज युवा वोटर हैं. अब वही नीति नहीं चलेगी. आपने एक भी रोड शो नहीं किया, क्यों नहीं किया भाई..?
आपको जान का खतरा है, अरे अभी आपके पास जो जीवन है इतनी बुरी हार के बाद वो मृत्यु से बुरा है दोस्त, 1 सीट केवल !

रोड शो से फायदा ये होता है कि इससे हवा बनती है, जिस मतदाता ने निर्णय नहीं लिया कि किसे वोट देना है वो आपकी भीड़ देख कर मन बनाता है। और बड़ी जिम्मेदारी से ये बात कह रहा हूं, जिस दिन बहिनजी ने रोड शो किया वो भारत ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा रोड शो होगा.

4. इस बार प्रचार डिजिटल होना था. आपने कहां किया भाई डिजिटल प्रचार ?  केवल ट्वीटर एकाउंट बनाने से डिजिटल प्रचार नहीं होता और आपका वोटर ट्वीटर पर नहीं है, वो फेसबुक पर है.
दूसरा इतने बड़े चुनाव में आपके पास एक youtube चैनल नहीं था, कितनी आश्चर्य की बात थी ! ये मत कहना कि मिश्रा जी के फेसबुक पेज पर लाइव हर सभा चल रही थी, वो अपर्याप्त थी. आप लोगों से 4 पैसे खर्च नहीं हुए एक कैमरामैन और वीडियोग्राफर हायर करने को ? ऐसे डिजिटल प्रचार होगा !

आखिरी चरण की वोटिंग के बाद आपने सोशल मीडिया कर्मियों से बात की, तो बता दूं दोस्त आप अंधेरे में हैं. आपके पास कोई सोशल मीडिया टीम नहीं थी. सुधीर कुमार जाटव, नरेश जाटव, विकास कुमार जाटव जैसे लोग रात दिन लगे थे फेसबुक से प्रचार करने के लिए. यहां तक कि आपकी लचर सोशल मीडिया तैयारी देख कर मुझे अपने स्तर पर 4, 5 लोगों को जोड़ कर एक टीम बनानी पड़ी जो बसपा की विचारधारा, कार्यों को सरल शब्दों में आम लोगों तक पहुंचा रही थी.

5. 2012 के बाद बसपा के गिरते प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण है आपके महल की ‘ऊंची दीवारें.’ एक बार को कोई व्यक्ति उस भगवान के दर्शन कर सकता है जो है नहीं, लेकिन पूरे जन्म तपस्या करने के बाद भी कोई आम व्यक्ति बहिनजी से नहीं मिल सकता. आप लोगों ने जमीन से सम्पर्क खत्म कर लिया है. बहिन जी लखनऊ से दिल्ली के अलावा कहीं नहीं जाती, लोगों से नहीं मिलती. आपके पास रियल फीडबैक आ ही नहीं सकता, आपके महल की दीवारें इतनी बड़ी हैं.

आपके आसपास 4, 5 yes sir, yes ma’am कहने वाले लोग हैं, जो खुद जमीन से नहीं जुड़े हैं, वे आपके सलाहकार हैं. बहिनजी को लोगों ने उनके त्याग, बलिदान और संघर्ष को देख कर जिंदा देवी कहा, वे सच मे खुद को ‘देवी’ समझ कर आम भक्तों से दूर स्वर्ग में कहीं अकेली रहने लगी.

6. पूरे चुनाव में 2007 की तरह परिणाम आएंगे, आपने ये बात सब जगह प्रचारित की पर कभी सोचा है कि क्या 2022 में 2007 की तरह परिस्थितियां या नेता आपके पास थे…?

2007 में बीजेपी कमजोर थी इसलिए ब्राह्मण, गैर यादव, ओबीसी जातियों ने आपका साथ दिया. पर आज उनके पास बीजेपी थी, जो इतिहास में अपने सबसे मजबूत दौर में थी, फिर वे आपका पास क्यों आएंगे ?

दूसरा 2007 में आपके पास बाबूसिंह कुशवाह, स्वामीप्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, ओमप्रकाश राजभर, लालजी वर्मा, सतीशचंद्र मिश्रा जैसे अपनी जाति के स्ट्रांग नेता थे जिनका अपनी जाति और क्षेत्र पर प्रभाव था.

आज आपके पास रामजी गौतम, सिद्धार्थ अशोक, मित्तल, मुनकाद अली, शमसुद्दीन राइन जैसे नेता हैं, मैं दुनिया के सामने दावा करता हूं लोकसभा, विधानसभा तो छोड़िए ये जिस वार्ड में रहते हों वो जीत कर दिखा दें. जो खुद चुनाव जीतने की औकात नहीं रखते आपको वो लोग बताएंगे कि कैसे चुनाव लड़ा या जीता जाए….!

7. पार्टी को असल में बर्बाद किया है कोऑर्डिनेटर सिस्टम ने. ये लुटेरे हैं, भरोसा नहीं हो तो इतने बड़े उत्तरप्रदेश में आप किसी भी सीट पर किसी भी व्यक्ति को कॉल करके किसी भी प्रभारी या कोऑर्डिनेटर के बारे में फीडबैक ले कर देख लीजिए, सबको लोग गाली देते मिलेंगे.
दूसरा, अन्य राज्यों में आप अंग्रेजी राज की तरह व्यवहार करते हैं, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार में उत्तरप्रदेश के व्यक्ति को प्रभारी बनाया जाता है, जो उस प्रदेश की सही वस्तुस्थिति जानता नहीं है, केवल और केवल उसका ध्यान ज्यादा से ज्यादा धन लूट कर जाने पर होता है.

उदाहरण देता हूं, 2018 में मध्यप्रदेश में हुए चुनाव में मेहगांव सीट (ज़िला भिंड) पर आपके प्रभावी रामअचल राजभर ने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जिसने दलितों पर 2 अप्रैल के दंगों में गोली चलाई थी.
बसपा में राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पार्टी बनने का दम है लेकिन आपके उत्तरप्रदेश के प्रभारी सब लूट ले जाते हैं अन्य राज्यों से ‘धन भी और मिशन’ भी.

8. आपको पता है मान्यवर साहब ने बामसेफ पहले बनाई थी, बसपा बाद में. बामसेफ बसपा का माइंड और मनी पावर हाउस था लेकिन आप लोगों ने बामसेफ खत्म कर दी, कैडेराइस वोटर बनने बंद हो गए, इसी का परिणाम है केवल 1 सीट. बसपा जमीन से उखड़ चुकी है बामसेफ के बंद होने से. आपने अपना दिमाग ही काट के फेंक दिया. 2012 के बाद से इसी का परिणाम है ये रिजल्ट.

9. अब चुनाव विचारधारा और नैतिकता के आधार पर नहीं होते, जैसे बहिनजी समझती हैं. अगर बीजेपी 5 किलो आटा फ्री देने की कह रही है तो आपको 15 किलो आटा देने की बात कहनी थी. अखिलेश 1 लीटर फ्री पेट्रोल देने की कह रहे थे आपको 5 लीटर का कहना था. लोकलुभावन राजनीति का दौर है दोस्त, आम आदमी पार्टी ने इसी फ्री, फ़्री के नारे के साथ दिल्ली और अब पंजाब जीत लिया. आप रह गए विचारधारा को ले कर, वो भी असफल.

जब तक आपका घोषणापत्र नहीं होगा लोग क्या देख कर आपको वोट देंगे ! बीजेपी से सीखिए वो मणिपुर, गोवा में गाय के मांस खाने का समर्थन करते हैं और उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश में गाय को माता कह देते हैं. विचारधारा से वो शासन चला रहे हैं, राजनीति नहीं.

ये समस्याएं हैं आपके आज के सिस्टम में. आज बसपा लगभग शून्य पर खड़ी है. चुनौतियों आपको अगले 1 साल बाद आएंगी. अभी बहुत से लोग पार्टी छोड़ कर जाएंगे, कई लोग मिल कर बसपा का विकल्प तलाशेंगे. चंद्रशेखर रावण और जयप्रकाश सिंह को बहुत से लोग आगे बढ़ाएंगे. उनके साथ लोग और पैसे जुड़ेंगे पर यही मौका है दोस्त तुम्हें खुद को साबित करने का. सबसे बुरे दौर में ही आगे आ कर तुम्हें खुद को साबित करना होगा, नेतृत्व संभालना होगा, इस निराशा से लोगों को मिशन को बाहर निकालना होगा.

करना क्या है, बस छोटे से काम, जैसे –

क) मान्यवर साहब और बहिन जी को उत्तर प्रदेश का एक-एक गांव घुमा हुआ है .मिशन के लिए रात दिन एक किया है. आप भी उठो 3 महीने पहले मान्यवर साहब पर लिखी हर किताब को पढ़ो, नोट्स बनाओ, उनका हर वीडियो देखो, हर उस व्यक्ति से बात करो जो मान्यवर साहब के साथ रहा हो, मान्यवर साहब को समझता हो. आपके पास प्रो. विवेक कुमार जैसे लोग हैं.

एक बार आप मान्यवर साहब के विचारों का मर्म समझ गए, उनकी तरह सोचने लगे, फिर अगले 1 साल उत्तर प्रदेश का गांव गांव घूमों, हर एक छोटे से छोटे कार्यकर्ता से मिलो, उसे समझो, नए वोटरों को समझाओ.

2024 के लोकसभा चुनाव तक कम से कम up के हर जिले में आप 2-2 बार घूम कर आ चुके हो और हर सीट पर कम से कम 4 से 5 स्ट्रांग सामाजिक पहुंच रखने वाले युवा को जानते हो, जो मिशन के लिए जी जान लगा सकते हों.

बसपा के लिए आपको हर विधानसभा पर कम से कम 10 ऐसे युवा मिल जाएंगे जो आजीवन अविवाहित रह कर मिशन की सेवा कर सकते हैं।श. उन्हें हर तरह से तैयार करो। उनका टेस्ट लो ताकि 2027 उत्तरप्रदेश और 2029 लोकसभा चुनाव के लिए आपके पास एकदम तैयार लोग मिल सकें.

ख) आपके भाषण में वो फील तब तक नहीं आएगा जब तक आप मजदूरी करने वाले दलित/ बहुजन की समस्या को फील नहीं कर सकते. जाइये अंतिम छोर पर बैठे अपने लोगों की समस्याओं को महसूस करो कि उन्हें स्कूल, कॉलेज से ले कर नौकरी करते समय आफिस में क्या क्या समस्याएं आतीं हैं.

ग) बामसेफ के कैडर फिर से शुरू करवाओ. उसके पहले लोगों के मन में आपके प्रति जुड़ाव दिखना जरूरी है. अपना नेतृत्व साबित करो तब जा कर बामसेफ में दोबारा लोग समय और पैसा लगाएंगे.

घ) बीजेपी की तरह 24 घण्टे की राजनीति करो. मजदूर, छात्र, व्यापारी, किसी के अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति के पास प्रशासन से पहले आप खड़े हो, प्रतिनिधि मंडल भेजने वाली बातें छोड़ दो.

ङ) जो कभी बसपा के साथ था, अब नही हैं, उससे बात करो, उसकी समस्याएं और शिकायतें समझो उन्हें दूर करो.

च) हर प्रदेश में स्थानीय नेताओं को उभरने दो, उन पर विश्वास करो, कल के नेताओ को खड़ा करो.

छ) जमीनी नेताओं को अपने आसपास रखो, उनसे राजनीति सीखो और कराओ. आप बहिनजी की तरह लखनऊ और दिल्ली से बैठ कर राजनीति नहीं कर सकते, क्योंकि बहिन जी ने जवानी में संघर्ष किया है, अब आदेश देने की स्थिति में आईं हैं. आप संघर्ष करिए ताकि लोग आपसे कहें कि आप हमारे नेता बनो.

मैं आपको चेतावनी देता हूं सुधार करिए, क्रांतिकारी बदलाव दिखाइए, जमीन पर उतरिये नहीं तो बसपा को छोड़ दीजिए. बसपा आपके पिता की सम्पत्ति नहीं है, बसपा आनंद परिवार की बपौती नहीं है.
आपके पिता से ज्यादा मेहनत बसपा के लिए मेरे पिता ने की है. ग्वालियर में पढ़ते समय मेरे पिता मजदूरी करके अपना खर्चा चलाते थे और उस मजदूरी के पैसे में से अपना पेट काट कर बसपा को चंदा देते थे, मान्यवर साहब के कैडरों में वोलेंटियर के रूप में काम करते थे. ऐसा मैं अकेला नही हूं बल्कि मुझ जैसे लाखों लड़के यही दावा करते हैं और ऐसे युवा किसी भी समय क्रांति करके आपको महल से और बसपा से बाहर निकाल फेकेंगे दोस्त.

सुधर जाओ, मान्यवर साहब का मिशन बचा लो, आपको बहुत लंबे समय तक मेहनती कार्यकर्ता बर्दाश्त नहीं करेगा. त्याग संघर्ष करो या गद्दी छोड़ दो..बहुजन समाज इतना नाकारा नहीं है कि एक नेतृत्व करने वाला युवा ना खोज पाए, आप हमारी कांग्रेस में राहुल गांधी जी की तरह मजबूरी नहीं हैं.

आपका अंतिम शुभचिंतक

…. ….. …..

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