सत्यवीर सिंह
शनिवार, 9 सितम्बर को, 2 बजे, 51 वर्षीय कुंदन शर्मा का सफ़ेद कपड़े में सिला मृत शरीर उसी ‘वीनस इंडस्ट्रियल कारपोरेशन प्रा. लि, प्लॉट 262, सेक्टर 24 फ़रीदाबाद’ के नज़दीक पहुंचा, जहां वे 1 जनवरी 1995 में भर्ती हुए थे. उनके जीवन के 28 बहुमूल्य साल और 8 महीने यहीं गुजरे. बिलखते परिवार के अलावा, उनके तीन-चार पड़ोसी, ‘वीनस मज़दूर यूनियन’ के 4 पदाधिकारी, मज़दूर नगरी फ़रीदाबाद के अनेक मज़दूर कार्यकर्ता तथा बड़ी तादाद में पुलिस बल वहां मौजूद था.
कुंदन शर्मा यूनियन के सह-सचिव भी थे. ‘अपने काम में मुस्तैद और साथी मज़दूरों के हक़ों के लिए आवाज़ उठाने वाला’, कुंदन शर्मा की ये पहचान थी. कंपनी के अंदर सब सामान्य था. गार्ड ने गेट में ताला लगा दिया था. अन्दर प्रोडक्शन सामान्य चल रहा था. मशीनों पर काम करते मज़दूर जानते थे कि 28 वर्षों के उनके साथी और प्रिय नेता की ‘डेड बॉडी’ गेट के बाहर रखी है, लेकिन वे यह भी जानते थे कि यदि गेट से बाहर निकले तो नौकरी चली जाएगी.
नम आंखों और भरे गले से, यंत्रवत, वे मशीनों पर काम करते रहे. मालिक को प्रोडक्शन से मतलब. मारुती, महेन्द्रा, हीरो, हौंडा को कल पुर्जे आपूर्ति करने की डेड लाइन से मतलब. किसकी डेड बॉडी कहां रखी है, इससे उसका क्या लेना-देना ? कुंदन शर्मा नहीं तो कोई और सही !
मज़दूरों के खून का क़तरा-क़तरा निचोड़ने के मक़सद से, कारखानों में स्थाई कर्मचारियों की तादाद दिनोंदिन कम, और ठेका मज़दूरों की तादाद उसी रफ़्तार से बढ़ती जा रही है. इसी का नतीज़ा है कि एचआर मैनेजर का काम असलियत में ठेकेदार और उनके मुस्टंडे ही देखते हैं. कुंदन शर्मा, ना सिर्फ स्थाई कर्मचारी थे बल्कि कुशल ‘डाई सेटर’ थे.
लगभग 28 साल 8 महीने की नौकरी में वे अपने कुशल हाथों से, ना जाने कितने करोड़ के ऑटो पार्ट्स बना चुके थे. उनके श्रम की चोरी से वीनस इंडस्ट्रियल कारपोरेशन के मालिक, कथूरिया ब्रदर्स, जाने कितना मुनाफ़ा कूट चुके थे. चूंकि कुंदन शर्मा, यूनियन पदाधिकारी थे, वे मज़दूरों की तक़लीफों के मुद्दे उठाते रहते थे. ठेकेदार, इसीलिए उन्हें अपना दुश्मन समझते थे.
मजदूर पर ठेकेदार की पिटाई का विरोध किया था मजदूर नेता कुंदन शर्मा ने
कुंदन शर्मा के प्राण जाने की यह दर्दनाक कहानी 15 जुलाई को शुरू हुई थी. बड़ी कंपनियों में आजकल एक नहीं अनेक ठेकेदार होते हैं. वीनस फैक्ट्री की प्रमुख ठेकेदार कंपनियां, विवेक दत्ता की ‘हिंदुस्तान सिक्यूरिटी’ तथा देव कुमार के मालिकाने की ‘श्री जी कॉन्ट्रैक्टर्स’ है. 15 जुलाई को, लेबर ठेकेदार देव कुमार, कंपनी के अंदर मशीन पर काम कर रहे अपने ठेका मज़दूर को पीट रहे थे, कि कुंदन शर्मा ने देख लिया. उन्होंने देव कुमार से कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते.
सबसे दर्दनाक हकीक़त ये है कि ठेकेदार और उसके बाउंसर टाइप मुंशी, मज़दूरों को पीटना अपना हक समझते हैं. कुंदन शर्मा और ठेकेदार देव कुमार के बीच विवाद हुआ. चूंकि विवाद मशीन पर काम कर रहे मज़दूर की ही पिटाई को लेकर हुआ था, पिटने वाले मज़दूर और उसके साथियों ने मशीन रोक दी. प्रोडक्शन रुक गया. मामला एचआर मैनेजर, एसएम पांडे को रिपोर्ट हुआ. तुरंत कुंदन शर्मा को ‘कारण बताओ नोटिस’ ज़ारी हो गया. आरोप पत्र में, कुंदन शर्मा पर लगा आरोप है –
‘आपके दुर्व्यवहार के कारण, संस्था में क़रीब 20 मिनट सभी विभागों में कार्य बंद रहा, जिसके कारण कंपनी को उत्पादन व क़रीब 1,00,000/ की वित्तीय हानि हुई और कंपनी का समय पर माल ना भेजने के कारण, कंपनी की साख भी ग्राहकों के समक्ष कम हुई. आपके द्वारा किए गए उपरोक्त कृत्य गंभीर दुराचरण की परिधि में आते हैं…48 घंटे में जवाब दें”.
आरोप पत्र तथा सस्पेंशन लेटर की प्रतियां ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ के पास मौजूद हैं. कुंदन शर्मा ने 19 जुलाई को अपना जवाब, यूनियन के लेटर हेड पर दाख़िल किया, जिस पर उनके अलावा अन्य यूनियन पदाधिकारी, श्याम बाबू, हरबीर सिंह, गोपाली सिंह, सुरेश चंद, मुकेश कुमार के भी हस्ताक्षर हैं. ‘जवाब यूनियन लेटर हेड पर है और कई लोगों के हस्ताक्षर हैं’, यह कह कर कुंदन शर्मा का जवाब ना-मंज़ूर कर दिया गया और उन्हें 22 जुलाई को सस्पेंड कर दिया गया.
मजदूर नेता कुन्दन शर्मा की हत्या मालिकों के इशारे पर ठेकेदार ने किया
22 जुलाई से 8 सितम्बर को अपनी मृत्यु तक, कुंदन शर्मा हर रोज़ फैक्ट्री आते और दिन भर बाहर बैठे रहते. वे लगातार कहते रहे – ‘फैक्ट्री, उन्होंने बंद नहीं की थी. उन्होंने कोई चोरी या ग़बन नहीं किया. मेरा क़सूर क्या है ? जांच कर लो, लेकिन मुझे काम पर ले लो. काम नहीं करूंगा तो घर कैसे चलेगा ? मेरा परिवार रोटी कैसे खाएगा ?’ पर मालिकों को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.
दरअसल, मालिक यही चाहते हैं कि स्थाई कर्मचारी, जितनी जल्दी हो, काम छोड़ जाए, जिससे उसकी जगह, उनसे चौथाई पगार पर ठेका मज़दूर भर्ती किए जा सकें. पूरे 49 दिन तक भी जब कंपनी प्रबंधन पत्थर जैसा संवेदनहीन बना रहा, तो 8 सितम्बर को कुंदन शर्मा का धैर्य जवाब दे गया. वे बेचैन हो गए और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे – ‘मुझे, ठेकेदार देव कुमार तथा एचआर मैनेजर, एसएम पांडे ने ज़हर दिया है, मैं मर रहा हूं.’ कंपनी मालिकान को कोई फर्क नहीं पड़ा. कुंदन शर्मा ज़मीन पर गिर पड़े. वे दर्द से चीख रहे थे.
कंपनी मालिक नहीं बल्कि वीनस वर्कर्स यूनियन के 3 पदाधिकारी, उन्हें ईको गाड़ी में डालकर बीके अस्पताल लाए. अस्पताल में उस वक़्त मौजूद एक प्रत्यक्षदर्शी ने, नाम ना छापने की शर्त पर जो बताया वह मज़दूर आंदोलन की एक और कमज़ोरी उजागर करता है. कुंदन शर्मा को, जब बीके अस्पताल लाया गया तो वे होश में थे और पेट में उठ रहे दर्द से चीख रहे थे. ऐसी आपात स्थिति में, सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों को बुलाने के लिए प्राण गंवाते अपने साथी की जान बचाने के लिए, जो चीखना-चिल्लाना पड़ता है, बेचैनी दिखानी होती है, संवेदनहीन तंत्र को झकझोरना होता है, वे वैसा नहीं कर पाए.
एक डॉक्टर को बोला तो उसका वही जाना-माना बेरहम उत्तर था, ‘मेडिको लीगल मामला है देखेंगे’. एक इंसान के प्राण निकल रहे हैं, यह उनके लिए कोई ‘मामला’ नहीं ! उस प्रत्यक्षदर्शी ने चिल्लाकर डॉक्टरों से कहा, ‘कुछ करो बेशर्मो, बंदा मर रहा है !’ तब एक नर्स आईं और उन्होंने कहा, ‘एक बोतल पानी लाओ और उसमें बहुत सारा नमक डालकर पिलाओ, जल्दी’. कुंदन शर्मा को वह भी जल्दी नहीं मिला. थोड़ी देर बाद कुंदन शर्मा की सांसें, उनका साथ छोड़ गईं. मज़दूरों को अपना जॉब खोने की इतनी दहशत है कि जान गंवाते अपने साथी के साथ खड़ा होते वक़्त भी डरते रहते हैं कि कहीं मालिक नाराज़ होकर हमारी छुट्टी ही ना कर दे.
क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा की पहलकदमी और प्रशासन की लीपापोती
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के अध्यक्ष, कॉमरेड नरेश जो ‘मज़दूर समाचार’ न्यूज़ चैनल भी चलाते हैं, और कामरेड रिम्पी बीके हॉस्पिटल पहुंचे और कुंदन शर्मा के परिजनों तथा मज़दूर साथियों से बात करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया. उन्होंने उन्हें सलाह दी कि पोस्टमार्टम के बाद उनकी डेड बॉडी को वीनस फैक्ट्री के गेट पर ले जाया गया, तब ही मालिक को आर्थिक मुआवज़े के लिए बाध्य किया जा सकता है.
दूसरी ओर मज़दूर हलचल का केंद्र बन गया था मुजेसर पुलिस स्टेशन. मज़दूर-आक्रोश पर ठंडा पानी डालने के लिए पुलिस ने कहा कि मालिकों तथा ठेकेदारों के विरुद्ध दफ़ा 302 के तहत, क़त्ल का मुक़दमा दायर किया जाएगा. लेकिन पुलिस, मज़दूर के हत्यारे मालिकों को बचाने के लिए कहां तक जा सकती है, इसका पता, अगले दिन 9 तारीख को चला.
शहीद कुंदन शर्मा के साथियों तथा उनके परिवारजनों ने सबसे अच्छा फैसला यह लिया कि वे कुंदन शर्मा की डेड बॉडी को वीनस फैक्ट्री के गेट पर ले आए. दुःखों के पहाड़ तले बिलखते परिवार ने अगर उससे पहले ही अंतिम संस्कार कर दिया होता, तो उन्हें एक पैसा मुआवज़ा भी ना मिलता. 9 तारीख को लगभग 1.25 बजे, जब कुंदन शर्मा की डेड बॉडी लिए, एम्बुलेंस, प्लाट नं. 262, सेक्टर 24 पहुंची, तब तक क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा की 8 सदस्यों की टीम वहां पहुंच गई.
इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के साथी, कामरेड आरएन सिंह समेत एटक तथा वीनस यूनियन के 4 पदाधिकारी वहां मौजूद थे. मुजेसर थाने के एसएचओ, कबूल सिंह, पुलिस के भारी दल-बल के साथ मौजूद थे. उनका दृढ निश्चय था कि डेड बॉडी को वीनस फैक्ट्री के गेट के नज़दीक नहीं जाने देंगे. ‘आप डेड बॉडी को वीनस के गेट तक नहीं ले जा सकते’, बार-बार ये बात दृढ़ता से दोहराते हुए उन्होंने डेड बॉडी को गेट से लगभग 20 मीटर दूर रोका हुआ था. फ़रीदाबाद का जन-सरोकार वाला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इस घटना को शुरू से ही, बहुत प्रभावशाली ढंग से कवर कर रहा था.
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के महासचिव, कॉमरेड सत्यवीर सिंह ने एसएचओ, कबूल सिंह से बार-बार आग्रह किया कि कुंदन शर्मा की डेड बॉडी को फैक्ट्री गेट के पास रखने दो. हम कोई व्यवधान पैदा नहीं करेंगे. मालिक, 29 सालों से उसके लिए अपना खून पसीना बहा रहे मज़दूर की डेड बॉडी को देखने, परिवार वालों को सांत्वना देने भी फैक्ट्री से बाहर नहीं निकला. अंदर फैक्ट्री ऐसे चल रही है, मानो कुछ हुआ ही ना हो. ऐसे में वह क्या मुआवज़ा देगा.
कबूल सिंह अड़ गए, ‘एक इंच भी आगे नहीं जाने दूंगा, सब को गिरफ्तार कर लूंगा, फैक्ट्री के काम में व्यवधान नहीं पैदा होने दूंगा’. जिस फैक्ट्री मालिक के ख़िलाफ़ मज़दूर की हत्या का मुक़दमा दर्ज है, वह अंदर फैक्ट्री में मौजूद है. उसे कोई व्यवधान ना हो, उसे कोई असुविधा ना हो, इसके लिए पुलिस अधिकारी, सभी मज़दूर कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने पर उतारू थे. एक बार तो उन्होंने, लट्ठ और स्वचालित राइफलें लिए पुलिस दल को बोल भी दिया, ‘आ जाओ भई !’ आधे घंटे तक तीखी नोंक-झोंक चलती रही. तब ही, एफआईआर की कॉपी आ गई. पता चला कि मालिकों के ख़िलाफ़ क़त्ल की दफ़ा 302 नहीं, बल्कि दफ़ा 306 में आत्महत्या को उकसाने का मामला दर्ज हुआ है.
तब ही, मज़दूर आंदोलन की एक बहुत ही धक्कादायक कमज़ोरी उजागर हुई. कबूल सिंह और कामरेड सत्यवीर सिंह के बीच चल रही, तीखी नोंक-झोंक के बीच, कबूल सिंह ने पास ही चुपचाप खड़े, इंक़लाबी भाषण देने वाले, एक मज़दूर नेता को बुलाया, ‘ठीक है इनकी भी तो राय लो, यहां आप अकेले नेता थोड़े ही हैं’. ‘हां, जब एफआईआर दर्ज़ हो चुकी है, तो मुआवज़े की मांग कैसे की जा सकती है, मुझे पता नहीं’, इंक़लाबी नेता के इस बयान के बाद तो कबूल सिंह और आक्रामक हो गए. उन्होंने, आक्रोशित मज़दूर कार्यकर्ताओं को ना सिर्फ पीछे धिकलवा दिया, बल्कि बिलख रहे परिवारजनों को एक बाजू ले जाकर बात की और हुक्म सुनाया, ‘चलो डेड बॉडी को एम्बुलेंस में रखो और चलो फटाफट’. 1 मिनट भी नहीं लगी और डेड बॉडी को लिए एम्बुलेंस चल पड़ी. हर तरफ़ सन्नाटा छ गया.
एनआईटी से कांग्रेस के विधायक की शानदार भूमिका
बिलकुल उसी वक़्त, एनआईटी से कांग्रेस के विधायक, नीरज शर्मा अपनी टीम के साथ वहां पहुंच गए. इससे बेहतर टाइमिंग नहीं हो सकती थी. उन्होंने अपनी गाड़ी एम्बुलेंस के आगे अड़ा दी. एम्बुलेंस रुकते ही, वे चीखकर अपने कार्यकर्ताओं से बोले, ‘डेड बॉडी’ कहीं नहीं जाएगी. देख क्या रहे हो, बाहर निकालो.’ कुंदन शर्मा की डेड बॉडी, फिर से, बिलकुल उसी जगह पहुंच गई, जहां से पुलिस वालों ने उठाई थी.
विधायक नीरज शर्मा, उसके बाद, वीनस फैक्ट्री के नज़दीक भी किसी को ना फटकने देने पर दीवार बनकर अड़े, एसएचओ कबूल सिंह को धकेलकर, आगे बढ़ने लगे. कबूल सिंह के साथ उनकी हलकी झूमा-झटकी भी हुई. ‘मैं ये मुद्दा विधानसभा में उठाऊंगा’, नीरज शर्मा यह बोलते भी सुनाई दिए. इसके बावजूद भी, कबूल सिंह ने, उन्हें वीनस फैक्ट्री की तरफ़ एक इंच आगे नहीं बढ़ने दिया. नीरज शर्मा वहीं ज़मीन पर बैठ गए, बाक़ी लोग भी बैठ गए.
थोड़ी देर बाद, फ़रीदाबाद के वरिष्ठतम, एटक नेता, बेचू गिरी का आगमन हुआ. ‘मैं बहुत बीमार हूं, कहीं आता-जाता नहीं लेकिन नीरज शर्मा का फोन आया तो मुझे आना ही पड़ा.’ उसी वक़्त एसीपी भी घटना स्थल पर पहुंच गए. कुंदन शर्मा की डेड बॉडी के चारों ओर, मुआवज़े की सौदे-बाज़ी शुरू हो गई. मज़दूर का हत्यारा, वीनस फैक्ट्री का मालिक, एक मिनट के लिए भी, अपनी फैक्ट्री से बाहर नहीं निकला. उसके ख़िलाफ़ 306 का मुक़दमा 302 में बदल दिया जाएगा, पुलिस ने ये कहा ज़रूर, लेकिन पुलिस एक बार भी फैक्ट्री के अंदर जाकर मालिक से पूछताछ करने जाने की उनकी हिम्मत नहीं हुई.
काफी संघर्ष के बाद मुआवजे की राशि पर राजी हुआ मालिक
लगभग घंटाभर बाद बताया गया कि मालिक, कुंदन शर्मा की मौत के बदले उनके परिवार को ₹25 लाख का मुआवज़ा देगा. उनका जो भी पीएफ, ग्रेचुटी बनती है, उसका भुगतान भी जल्दी कर दिया जाएगा. उसमें भी मालिक का एक और शातिरपना उजागर हुआ. वीनस के सभी कारखानों में कुल 2000 मज़दूर काम करते हैं. उसने ऐसा क़रार किया हुआ है कि मज़दूर की मौत होने पर, सभी मज़दूर अपना एक दिन का वेतन, मृतक के परिवार को देंगे. 25 लाख की रक़म में, मज़दूरों की लगभग 7 लाख की भागीदारी शामिल है.
मुंशी प्रेमचंद की एक बहुत महत्वपूर्ण सीख है, ‘बिगाड़ के डर से क्या ईमान की बात ना कहोगे.’ कहने-लिखने में तक़लीफ़ होती है लेकिन फिर भी, मज़दूर आंदोलन में व्याप्त हर कमज़ोरी उजागर करना, हर मज़दूर कार्यकर्ता की ज़िम्मेदारी है. मुजेसर एसएचओ कबूल सिंह के प्रिय, जिन इंक़लाबी मज़दूर नेता का, ऊपर ज़िक्र हुआ, उनके बारे में, मृतक कुंदन शर्मा के एक पड़ोसी, जो शुरू से आख़िर तक उनके साथ थे, परिवार जनों से भी ज्यादा दुःखी और आक्रोशित थे, का यह कहना था, ‘ये नेता, बीके हॉस्पिटल, मुजेसर पुलिस स्टेशन में भी साथ था. ये मालिकों का बंदा है क्या ? शुरू से उनके हित की ही बात कर रहा है.’ घटना स्थल पर मौजूद, एक अन्य वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता ने भी, बहुत दुःखी मन से, उक्त पड़ोसी के बयान से सहमति व्यक्त की.
मज़दूरों को, इस बेहद दर्दनाक घटना से उपजी, एक बात हमेशा याद रखनी है. उनके द्वारा हो रहा उत्पादन, अगर 1 मिनट भी रुक जाता है, तो मालिक की नसों में बह रहा खून जम जाता है, उसका हलक सूख जाता है, वह तड़पने लगता है.
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