गिरीश मालवीय
वी. के. पॉल जिन्होंने दिसम्बर तक 216 करोड़ टीकों की उपलब्धता की बात की थी, वह आधुनिक युग के शेखचिल्ली साबित होते नजर आ रहे हैं. राज्यों द्वारा रिलीज किया गया वैक्सीन का ग्लोबल टेण्डर भी फेल दिख रहा है. भारत मे वैक्सीन की उपलब्धता दिनों दिन घटती जा रही है, आने वाले दो महीने तक यही हालत रहने वाली है लेकिन उसके बावजूद भी मोदी सरकार द्वारा वैक्सीन को लेकर कोई गंभीर प्रयास करती नहीं दिख रही है.
दो दिन पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने परसो पैनासिया बायोटेक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ‘जब सरकार के पास लाखों टीकों की डोज प्राप्त करने का अवसर है तब भी कोई दिमाग नहीं लगा रहा, जबकि सरकार को इसे एक अवसर के तौर पर अपनाना चाहिए.’ दरअसल 5 अप्रैल को रूस का प्रत्यक्ष निवेश कोष आरडीआईएफ और भारत की पैनेसिया बॉयोटेक ने सोमवार को कहा कि वे स्पुतनिक वी कोविड-19 टीके की भारत में सालाना 10 करोड़ खुराक का उत्पादन करने पर सहमत हुए हैं. इस बात को दो महीने होने को आए हैं लेकिन कोई प्रगति नजर नहीं आ रही. संभवतः इसी बात को मद्देनजर रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि ‘आपके पास टीकों की इतनी कमी है और आप इस पर ध्यान नहीं दे रहे. यह आपके लिए अवसर हो सकता है. इतने नकारात्मक मत होइए. यह आग भड़काने जैसा है और किसी को कोई फिक्र नहीं है.’
भारत में स्पुतनिक वी के उत्पादन के लिए 6 कंपनियों से करार हुए हैं लेकिन इस करार को पूरा करने के बारे में क्या प्रगति हुई है, कितनी गंभीरता से प्रयास हो रहे हैं, यह दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणियां बता रही है. कल के गडकरी के बयान से बिल्कुल स्पष्ट है कि मोदी ने वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास की चर्चा तक किसी कैबिनेट मंत्री से नहीं की है. सब कुछ नौकरशाही के भरोसे है.
नितिन गडकरी ने कुलपतियों के सम्मेलन में बोला कि टीके की आपूर्ति के मुकाबले उसकी मांग अधिक होगी तो इससे समस्या खड़ी होगी. इसलिये एक कंपनी के बजाय 10 और कंपनियों को टीके का उत्पादन करने में लगाया जाना चाहिये. इसके लिये टीके के मूल पेंटेंट धारक कंपनी को दूसरी कंपनियों द्वारा दस प्रतिशत रॉयल्टी का भुगतान किया जाना चाहिये.’
कांग्रेस के जयराम रमेश ने नितिन गडकरी के बयान के वीडियो को ट्वीट करते हुए तंज कसते हुए कहा कि ‘लेकिन क्या उनके बॉस सुन रहे हैं ? मंत्री जी अपनी सरकार को ही इस बारे में क्यों नहीं बताते ? मनमोहन सिंह ने भी अपनी चिठ्ठी में यही बात की थी, जिन्हें हंसी में उड़ा दिया गया.’
अब गडकरी की सफाई आयी है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा पहले ही कई कंपनियों को वैक्सीन का प्रोडक्शन बढ़ाने की इजाजत दे दी गई है, जिसके बारे में उन्हें पता नहीं था. बताइये ऐसे तो सरकार चल रही है.
सच तो यह है कि मोदी एक तरह से तानाशाही चला रहे हैं जब गडकरी जैसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री को ही नहीं पता है कि वैक्सीन के लिए क्या नीति है ? क्या तैयारी है ? तो आप क्या कह सकते हैं. महाराष्ट्र की एक कम्पनी के अलावा अभी तक कोई दूसरी भी कम्पनी सामने नहीं आई है जो कहे कि हम कोवैक्सीन का उत्पादन कर रहे हैं.
बिजनेस स्टेंडर्ड की एक रिपोर्ट बताती है कि चेन्नई में देश के बड़े सरकारी टीका विनिर्माण संयंत्र में टीका तैयार करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है. इस का स्वामित्व एचएलएल बायोटेक के हाथों में है और इसे इस सप्ताह आठवीं बार एकीकृत टीका विनिर्माण (आईवीसी) केंद्र के लिए बोली लगाने की समय-सीमा बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि कंपनी को जनवरी में अभिरुचि-पत्र प्रकाशित कराने के बाद भी निजी कंपनियों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
एक अधिकारी ने इस संयंत्र की क्षमता के बारे में बताया है, ‘इस संयंत्र में चार विनिर्माण लाइनें थी जो और फिलिंग कर सकती हैं. इसमें वेयरहाउस, पैकेजिंग यूनिट, जानवरों पर प्रयोग की सुविधा भी है. इस संयंत्र में वायरल टीकों का भी थोक उत्पादन होता है. यहां एक साथ दो टीकों का निर्माण किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, रेबीज टीके और जापानी इंसेफेलाइटिस टीका दोनों को छह महीने की अवधि के लिए तैयार किया जा सकता है.’ पर कोई आगे नहीं आ रहा है.
भास्कर की पड़ताल बताती है कि देश में 16 ऐसी कंपनियां हैं जो वैक्सीन तुरंत बनाना शुरू कर सकती हैं. अगर केंद्र सरकार इन्हें जरूरी परमिशन दे तो ये कंपनियां हर महीने 25 करोड़ और साल में 300 करोड़ डोज बना सकती हैं, पर सरकारी लालफीताशाही से कौन जीत सकता है ?
केंद्र के एक एम्पावर्ड ग्रुप के प्रमुख रहे सीनियर आईएएस अफसर का कहना है कि ‘सरकार ने देर कर दी है. वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के साथ लगातार बात करनी थी और शुरुआत में ही आर्थिक मदद देनी थी.’ लगता है कि देश मे कोरोना वैक्सीन निर्माण भी लालफीताशाही में ही उलझ कर रह जाएगा.
नेगवैक के प्रमुख प्रो. वी. के. पॉल का कहना है कि भारत में अगस्त से दिसंबर-2021 तक वैक्सीन की 216 करोड़ डाेज उपलब्ध होगी. वी. के. पॉल आधुनिक युग के शेखचिल्ली साबित होने जा रहे हैं. वे जिन वैक्सीन की डोज की बात कर रहे हैं, उसमें जाइडस कैडिला, सीरम की नोवावैक्स, भारत बॉयोटेक की नेजल वैक्सीन और जीनोवा कंपनी की वैक्सीन का ट्रायल तीसरे फेज में चल रहा है. वह हवा में बनाए गए प्रोडक्शन प्लान की बात कर रहे वो प्लान है जो कम्पनियों ने उन्हें दिए हैं और जब कम्पनियां सामने आती है तो उपरोक्त बातें सामने आती है.
सरकार को समझना होगा कि हमें वैक्सीन की जरूरत है न कि कम्पनियों को. आज की परिस्थिति में देश में उपलब्ध संसाधनों को बेहतर से बेहतर उपयोग करने की जरूरत है, पर मोदी धृतराष्ट्र की तरह व्यवहार कर रहे हैं.
क्या वैक्सीन की दोनों डोज लग जाने के बाद भी कोरोना से मौत सम्भव है ?
62 वर्षीय डाॅ. के. के. अग्रवाल की मौत के बाद यह बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है क्योंकि आज से करीब एक-डेढ़ महीने पहले तक, जब देश में कोरोना की दूसरी लहर नहीं आई थी, तब तक भी यही माना जा रहा था कि वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने के बाद कम से कम वेंटिलेटर पर जाने की या जान जाने की नौबत नहीं आएगी. दो डोज लगने के बाद कोविड से हुई मृत्यु का यह इकलौता केस नहीं है. दिल्ली एनसीआर में चार डॉक्टर्स की कोविड से मौत हो चुकी है और वे सभी वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके थे.
दिल्ली के सरोज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डॉक्टर रावत ने वैक्सीन की दोनों खुराक ले ली थी. डॉ. रावत को अपने ठीक होने का पूरा यकीन था. उनका इलाज करने वाले डॉ. आकाश जैन ने कहा कि ‘जब उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जा रहा था तो उन्होंने मुझसे कहा था कि ‘मैं ठीक हो जाऊंगा क्योंकि मेरा टीकाकरण हो चुका है. पर उनकी भी मृत्यु हो गई.’
छत्तीसगढ़ कोविड-19 नियंत्रण अभियान के प्रदेश नोडल अधिकारी डॉ. सुभाष पांडेय की कोरोना संक्रमण से मौत हुई, उन्होंने भी दोनो डोज ले लिए थे. इसके अलावा कर्नाटक के मंगलुरू में पुलिस कांस्टेबल की और ग्वालियर के कम्पू थाने में तैनात कांस्टेबल की भी मृत्यु कोरोना से दोनों डोज के बाद हुई है. यह वो घटनाएं जो पब्लिक डोमेन में है लेकिन कई ऐसे फ्रंट लाइन वर्कर है जिनकी मौत कोरोना के दोनों डोज लगने के बाद हो चुकी है.
वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह की मृत्यु भी कोरोना से हुई थी. वे भी दोनों डोज ले चुके थे. वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद संक्रमण होना रेयर है, लेकिन संभव है ऐसे मामले को ब्रेकथ्रू (Breakthrough) केसेज कहते हैं. ऐसे केसेज देश में 10 हजार में दो या चार मिले हैं. ये आंकड़ा आईसीएमआर (ICMR) द्वारा पेश किया गया है. जब संक्रमण होना रेयर घटना है तो मौत होना तो रेयरेस्ट होना चाहिए ! पर ऐसा भी नहीं है ?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का भी बयान आया है कि दूसरी लहर में कोविड के कारण 270 डॉक्टरों की जान चली गई है. इनमें से केवल 3 फीसदी डॉक्टरों को ही पूरी तरह से टीका लगाया गया था यानी दोनों डोज लगे थे. ( वैसे यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि 97 प्रतिशत डॉक्टर ने दूसरी डोज नहीं ली) यानी फिर भी तकरीबन 8 डॉक्टर की मृत्यु दोनों डोज होने की बात खुद IMA स्वीकार कर रहा है. यह बड़ी संख्या है. एक और बात है जो IMA नहीं बता रहा है कि इनमें से कितने डॉक्टरों ने पहली डोज लगवाई होगी ? जहां तक हम सोचते हैं कि 270 में से लगभग 70 प्रतिशत डॉक्टर ने एक डोज तो लगवाई ही होगी किंतु वे भी नहीं बचे ?
कोरोना की दूसरी लहर में अकेले यूपी में 48 पुलिसकर्मियों की जान भी जा चुकी है. इसमें से ज्यादातर पुलिसकर्मी ऐसे हैं जो पंचायत चुनाव की ड्यूटी कर रहे थे. सबसे अहम और हैरान करने वाली बात ये है कि जिन पुलिसकर्मियों की मौत हुई है, उसमें से अधिकतर ने वैक्सीन की पहली या दोनों डोज ले ली थी जबकि यह कहा जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन की एक डोज़ से भी मौत का खतरा 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है.
पीएम मोदी के साथ हुई मीटिंग में झारखंड RIMS हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर यूनिट के प्रमुख डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य ने मोदी को स्पष्ट बोल दिया कि आपके दिए गए वेंटिलेटर चलते नहीं है उन्होंने कहा कि हमें पीएम केयर फंड से 100 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और 104 वेंटिलेटर दिए गए थे लेकिन इन 104 वेंटिलेटर में से 45 काम ही नहीं करते हैं.
महाराष्ट्र से भी खबर आयी है कि औरंगाबाद जिले के सरकारी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीएम केयर्स फंड की ओर से अस्पताल को दिए गए वेंटिलेटर्स में से कई खराब है. जीएमसीएच की 3 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड (पीएमसीएफ) के तहत कोविड-19 मरीजों के लिए 150 वेंटिलेटर दिए गए, जिनमें से 100 धमन तीन मॉडल की आपूर्ति 12 अप्रैल को ज्योति सीएनसी द्वारा की गई. डीन द्वारा औरंगाबाद कलेक्टर को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ वेंटिलेटर की स्थापना और टेस्ट के बाद, वे अत्यंत गंभीर कोविड रोगियों के इलाज के लिए बेकार पाए गए.
कंपनी के प्रतिनिधि सहदेव गुचकुंड और कल्पेश 6 दिनों के बाद आए और 25 वेंटिलेटर लगाए लेकिन अगले ही दिन 20 अप्रैल को सभी खराब साबित हुए. सावंत ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि वेंटिलेटर उतनी ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं कर रहे थे जितने की जरूरत थी, इससे कोविड रोगियों के लिए सांस लेना मुश्किल हो रहा था और परिणामस्वरूप उनके ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा था. इससे उनके जीवन को खतरा हो रहा था.
एक जनहित सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी है, जिसमें पीएम केयर्स फंड की वर्तमान स्थिति व कोविड-19 राहत और अन्य परियोजनाओं के लिए इससे किए गए राशि के आवंटन की जानकारी मांगी गई है. मोदी को जवाब देना होगा कि गुजरात की कम्पनियों को उपकृत करने के लिए हजारों मरीजों की बलि क्यों ली गयी ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]