गुरूचरण सिंह
महिला जांच टीम भी हैरान रह गई. परसों ही खुलासा किया था मीडिया विजिल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलसिया कहर बरसाए जाने के बारे में, जब योगीराज दिल्ली की हवा में सांप्रदायिक ज़हर घोल कर उसे भी ‘उत्तम प्रदेश’ जैसा ‘अनपढ़’ बनाने के लिए भाजपा को वोट करने की अपील करके लौट चुके थे.
इधर देश की सबसे पंचायत में बजट पेश किया जा रहा था और उधर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए 18-20 दिसंबर के बीच हुए ‘दंगे’ प्रदर्शनों को दबाने के लिए की गई पुलसिया कार्रवाई का सच जानने के लिए महिलाओं की पांच सदस्यीय समिति मेरठ, शामली, मुज़फ्फरनगर और बिजनौर जिलों का दौरा कर रही थी.
इन तीन दिनों के दौरान जो पुलसिया दमनचक्र चला था उस बाबत मिली शिकायतों की जांच करने, औरतों से हुई जिस्मानी और मानसिक ज्यादतियों और सरकारी दमन के खिलाफ महिलाएं (WSS) की पांच सदस्यीय जांच समिति बनाई गई थी. यह जांच समिति इन प्रदर्शनों के दौरान मेरठ में मरे पांच लोगों, मुज़फ्फरनगर में एक और नहटौर तथा जिला बिजनौर के दो मृतकों के परिवारों से मिली, ये सभी लोग पुलिस की गोली का शिकार बने थे.
समिति ने नोटिस किया कि पुलिस की कार्रवाई के दौरान मरे सभी मामलों में कुछ बातें तो समान थी :
1. गोली उनके सीने, गर्दन या आंख पर मारी गई थी. किसी के भी पैर या लात में गोली नहीं लगी थी. मतलब यह कि इन सभी ही को निशाना लगा कर मारा गया था. दूसरे शब्दों में, पुलिस मैनुअल में उल्लिखित गोली चलाने संबंधी नियमों का उल्लंघन किया था, जिसने एक बार फिर जलियांवाला बाग की याद दिला दी.
2. किसी भी मृतक के परिवार को उसकी लाश उनके अपने पारिवारिक कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिया गया. कइयों को तो यह भी कहा गया कि लिखित दो कि तुम लाश ले कर गए और शहर में हिंसा भड़की तो उसकी पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी. एक आदमी पर यह दबाव डाला गया कि यहीं गड्ढा खोद कर कर लाश को गाड़ दो.
3. सभी मृतकों के परिवार जनों के साथ पुलिस बहुत ही बदतमीज़ी से पेश आई और उन पर अभी भी लगातार दबाव बना हुआ है.
4. सभी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई न कोई गलती है और ऐसा तभी होता है जब कोई लीपापोती करनी हो. इन मामलों में यही लग रहा है ज्यादातर पुलिस का रोल छुपाने के लिए ही ऐसा हुआ है.
5. कमाल की बात तो यह है कि इन आठों मृतकों में से कोई भी CAA-NRC विरोधी प्रदर्शन का हिस्सा था ही नहीं. कोई भैंस का चारा खरीदने जा रहा था तो कोई नमाज़ पढ़ कर निकला था. कोई बीड़ी खरीद रहा था तो कोई चाचा के यहांं से दूध मांंगने गया था. कोई ई-रिक्शा चला रहा था तो कोई तंदूर में रोटी सेंकते हुए भगदड़ की आहट सुन कर सड़क पर देखने निकल आया था.
ये घटनाएं भले ही 18-20 दिसंबर, 2019 को अंजाम दी गईं मगर दहशत का माहौल इन इलाक़ों में अब भी बरकरार है. कई FIR दर्ज कराई गई हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में ‘अज्ञात’ आरोपी हैं. पुलिस इस का फायदा उठा कर कभी भी किसी को भी उठा कर ले जाती है और तहकीकात कर नाम पर आए दिन घरों में घुस कर सामान तहस-नहस करती है, औरतों के हिजाब हटवाती है और बदतमीज़ी करती है.
पहली तारीख की शाम को जब जांच दल शामली के दौरे पर था, तब भी वहां पर तीन युवकों को हिरासत में रखने की खबर मिली थी उसे. ऐसे हालात में जांच समिति को कई महिलाओं ने अनुरोध किया कि एक रात हम उनके घर रुक जाएं तो कम से कम एक रात तो वे सकून से सो पाएंंगी, पिछले डेढ़ महीने से वे सो ही नहीं पाई हैं.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]