झूठ बोलना और तमाशा करना ही मोदी-योगी सरकार को आता है. रोम के नीरो की कहावत इन दोनों अपराधियों पर पूरी तरह फिट बैठता है. बेगैरत यह जोड़ी ऐसे ही लाखों बेगैरत कुनबों का सरगना है, जो लोगों के संकट पर ठहाका लगाता है और भांति-भांति के झूठ लोगों के बीच परोसता है.
झूठ का प्रचार करने में आजकल मोदी और योगी सरकार में एक तरह से जंग छिड़ी हुई है. मोदी जहां देश को 5000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने का ढोल पीटते रहते हैं, वहीं योगी उत्तर प्रदेश को 1000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की डींग हांकते रहते हैं.
उत्तर प्रदेश की मौजूदा अर्थव्यवस्था लगभग 17 लाख करोड़ रु. (सकल घरेलू उत्पाद) की है, इसे 1000 अरब डालर यानी 75 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने हेतु काफी तेज विकसित दर चाहिए. 2025 तक इस लक्ष्य पर पहुंचने के लिए विकास दर 30 प्रतिशत के करीब होनी चाहिए.
2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश की आर्थिक वृद्धि दर जानकारों के हिसाब से 6 प्रतिशत के आस-पास थी जबकि योगी काल में (2017-2021) तक आर्थिक वृद्धि दर गिरकर औसतन 1.95 प्रतिशत रह गयी. यानी योगी काल में वृद्धि दर पूर्व काल से एक तिहाई रह गयी. इसमें कोरोना के साथ-साथ पहले से चल रही अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत भी जिम्मेदार है.
बीते 5 वर्ष में उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 0.46 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी है, जो खुदरा महंगाई दर 6 प्रतिशत से काफी कम है. यानी वास्तव में बीते 5 वर्षों में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय गिरी है. गरीबी के मामले में उत्तर प्रदेश तीन सबसे गरीब राज्यों में आता है. यहां 38 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रही है. देश के 36 राज्यों में यहां प्रति व्यक्ति आय 32वें स्थान पर है, जो लगभग 44 हजार रु. प्रति वर्ष है.
उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से ऊपर है. इतनी ही आबादी पाकिस्तान की है, जिस पाकिस्तान का नाम लेकर हिंदुत्व की राजनीति मजबूत की जाती है. उस पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति औसत आय उत्तर प्रदेश की दोगुनी से अधिक 95,000 रु. प्रति वर्ष है.
अर्थव्यवस्था के इन जर्जर हालातों में रोजगार की दुर्दशा भी समझी जा सकती है. 2012 के मुकाबले बेरोजगारों की मौजूदा तादाद ढाई गुना अधिक है. नौजवानों की बेरोजगारी 2012 की तुलना में 5 गुना बढ़ चुकी है. 2012 में 21 प्रतिशत ग्रेजुएट बेरोजगार थे. 2019 में 51 प्रतिशत ग्रेजुएट बेरोजगार हो गये. तकनीकी सर्टिफिकेट या डिग्री वाले 2012 में 13 प्रतिशत बेरोजगार थे. 2019 में इनका आंकड़ा बढ़कर 66 प्रतिशत हो गया.
2016 में उत्तर प्रदेश में रोजगार दर (काम करने योग्य आबादी की रोजगार में भागीदारी) 46 प्रतिशत थी. 2017 में यह घटकर 38 प्रतिशत रह गयी. मौजूदा वक्त में यह गिरकर 32 प्रतिशत पहुंच चुकी है जबकि पूरे भारत में औसत रोजगार दर 40 प्रतिशत है. बीते 5 वर्षों में उत्तर प्रदेश में काम करने योग्य आबादी में 2 करोड़ का इजाफा हुआ है पर रोजगारों में 16 लाख की कमी हुई है. यह यूं ही नहीं है कि बेरोजगारी का सबसे अधिक आक्रोश उत्तर प्रदेश में फूट रहा है.
इसके बावजूद झूठ का कारोबार करने में योगी सरकार कोई शर्म लिहाज नहीं रख रही है. कभी लाखों में तो कभी करोड़ों में रोजगार देने के दावे वह दिन-रात करती रही है. बेशर्मी का आलम यह है कि कोरोना काल में घर लौटे प्रवासी मजदूरों को जब मनरेगा में कुछ दिन काम दिया गया तो उसे भी योगी सरकार ने रोजगार वृद्धि के आंकड़ों में जोड़ लिया.
योगी सरकार ने 5 वर्ष न केवल झूठ का प्रचार किया बल्कि असलियत उजागर करने वालों पर डण्डा बरसाने, जेल में ठूंसने, राजद्रोह की धारा लगाने का भी काम किया. अयोध्या में दिये जलाने, मंदिरों का जीर्णोद्वार कराने, गौशाला बनाने में करोड़ों रुपया फूंकने का काम जरूर योगी सरकार ने किया और इसके साथ झूठ के प्रचार में करोड़ों रुपये फूंकने में योगी सरकार अग्रणी रही.
योगी ने मोदी के गुजरात मॉडल को एक तरह से पटखनी दे दी है. योगी ने कुछ एक्सप्रेस-वे चमकाकर उसका प्रचार किया, असलियत उजागर होने को हर तरीके से रोका और घोषित कर दिया कि उत्तर प्रदेश तेजी से विकास कर रहा है.
वास्तविकता इसके एकदम उलट है. उत्तर प्रदेश में न तो नये उद्योग-धंधे खड़े हुए और न ही आम जन का जीवनस्तर सुधरा, फिर भी टीवी स्क्रीन पर उत्तर प्रदेश की चर्चा विकास करते राज्य की तरह होने लगी. झूठ के प्रचार में योगी निश्चय ही बाजी जीत रहे हैं.
इसमें और मजे की बात यह है कि इन मूर्खों ने खुद की ही भांति लोगों को भी मूर्ख समझता है इसीलिए कभी चीन, तो कभी अमेरिका तो कभी अपने धुर विरोधी बंगाल केरल का तस्वीर चिपका कर अपना यशगान करता है. अब उत्तर प्रदेश की जनता को यह सिद्ध करना होगा कि वह भी अपने इन आकाओं की भांति मूर्ख हैं या नहीं.
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