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USCIRF को वीजा से इनकार किया विदेश मंत्री

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USCIRF को वीजा से इनकार किया विदेश मंत्री

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएससीआईआरएफ के शिष्टमंडल को वीजा देने से इनकार कर दिया है. यूएससीआईआरएफ एक अमेरिकी आयोग है, जो भारत में कथित धार्मिक प्रताड़ना के आरोपों की जांच कर अमेरिकी प्रशासन को इसकी रिपोर्ट देता है. एक सवाल उठता है कि क्या यह इनकार अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वैध है ? हमारा मत है कि यह वैध नहीं है.

पीस ऑफ वेस्टफेलिया 1648 (Peace of Westphalia, 1648), ने वेस्टफेलियन संप्रभुता की अवधारणा को जन्म दिया-अंतर्राष्ट्रीय कानून का सिद्धांत है कि प्रत्येक राज्य का अपने क्षेत्र पर संपूर्ण संप्रभुता है और कोई भी विदेशी हस्तक्षेप उन मामलों में नहीं किया जा सकता है, जो उसके विशेष घरेलू क्षेत्राधिकार के भीतर हैं.

यह सिद्धांत एक ‘राष्ट्र राज्य’ ( nation state ) की धारणा के साथ भी जुड़ा हुआ था, जो 18वीं शताब्दी से एक ऐसे समुदाय को संदर्भित करता था, जिसमें एक सामान्य वंश या भाषा थी. ये सिद्धांत 20वीं सदी की अवधारणा ‘जातीय राष्ट्रवाद’ में बदल गए, जिसे नाज़ी शासन ने बदनाम कर दिया था.

शीत युद्ध (Cold War) के अंत में अंतर्राष्ट्रीय विधिवेत्ताओं ने पोस्ट-वेस्टफेलियन (Post Westphalian) प्रबंध पर विचार करना शुरू कर दिया था. इस प्रबंध के अनुसार, मानवाधिकार के हनन की स्थिति में दूसरे राज्य हस्तक्षेप कर सकते हैं. हालांकि, एक भूतपूर्व उपनिवेश के लिए ‘हस्तक्षेप’ शब्द अक्सर साम्राज्यवादी आक्रमणों की याद दिलाता है. ‘मानवीय हस्तक्षेप’ का इस्तेमाल कुछ राष्ट्रों ने विदेशी ताकतों के आक्रमणों को जायज ठहराने के लिए ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse) जैसे इस्तेमाल किया.

विदेश मंत्री, जयशंकर ने कहा कि किसी भी विदेशी संस्था को ‘भारतीय नागरिकों की स्थिति के बारे में बताने के लिए locus standi की कमी है.’ हालांंकि, यह कहना वैसा ही होगा जैसा कि यह कहना कि जब नाज़ी शासन यहूदियों पर अत्याचार कर रहा था, तब किसी को भी इसके बारे में बोलने का अधिकार नहीं था. यूएससीआईआरएफ द्वारा अमरीकी प्रशासन को सिफारिश की गई है कि भारत को ‘विशेष चिंता का देश’ के रूप में नामित किया जाए, 2002 के गुजरात दंगों के बाद ऐसा पहली बार हुआ है.

यूएससीआईआरएफ ने अप्रैल 2020 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता ने भारत में एक नकारात्मक मोड़ ले लिया है. इस रिपोर्ट में 2002 के गुजरात दंगों का भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में CAA-NRC मुद्दे, जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने और फरवरी में दिल्ली के दंगों का भी उल्लेख है. विदेश मंत्री जयशंकर के अनुसार, रिपोर्ट में भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर बयान अनुचित है.

अब यह सवाल उठता है कि क्या यूएससीआईआरएफ को वीजा देने से इनकार उचित था ? क्योंकि हाल के दिनों में भारत में अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा भी एक बड़ा सवाल है. मसलन अख़लाक़, पहलू खान और तबरेज़ अंसारी क्रूर भीड़ हत्या के शिकार थे. भीड़ हिंसा के सैकड़ों पीड़ित अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं. NRC और CAA के खिलाफ प्रदर्शनकारियों, सफुरा ज़र्गर, शरजील इमाम और डॉ. कफील खान जैसे मुस्लिम कार्यकर्ताओं, जिन्होंने मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ चिंता व्यक्त की, उन्हें झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया.

इसके विपरीत केंद्रीय मंत्री लिंचर्स को माला पहनाते, पशुओं के खिलाफ हिंसा का सांप्रदायीकरण करते दिखते हैं. इनके अलावा कपिल मिश्रा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर जैसे व्यक्तियों को आश्रय दिया जाता है, जिन्होंने अपने समर्थकों को सीधे शब्दों में उकसाया और नारा दिया- ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को.’ बावजूद इसके उनके नाम दिल्ली दंगे की चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया है.

मीडिया भी अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से चित्रित करने में उलझा हुआ है- रवांडा के नरसंहार के लिए रेडियो-आधारित उकसावे की तरह ही तबलीगी जमात जैसी धार्मिक टोली को COVID 19 का वाहक ठहराया गया. हमारी राय में, आज की दुनिया में न तो कोई सरकार राज्य संप्रभुता पर निर्भर होने वाली पूर्ण प्रभुता (Absolute sovereignty) का दावा कर सकती है, जिसके तहत वह अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म करे, और न ही कोई देश किसी दूसरे देश के भीतर मानवीय संकट के बहाने उस पर आक्रमण करने के अधिकार का दावा कर सकता है. इंटरनेशनल लॉ में एक बीच का मैदान ढूंढना होता है.

हमारे मतानुसार कोई भी देश किसी अन्य देश पर मानवता को आधार बनाकर वैध हमला नहीं कर सकता है, साथ ही साथ एक देश पूरी तरह से विदेशी हस्तक्षेप से इनकार करने के लिए वेस्टफेलियन सिद्धांत पर पूर्ण निर्भरता का दावा भी नहीं कर सकता है. आखिरकार, आज की दुनिया एक छोटी दुनिया बन गई है और वैश्वीकृत (Globalised) हो गई है. एक देश में जो होता है, उसका दूसरे देश पर असर होता है.

इसलिए हमारा मत है कि सही अंतरराष्ट्रीय कानून सिद्धांत यह है कि कोई देश किसी अन्य देश पर मानवीय संकट के आधार पर वैध रूप से आक्रमण नहीं कर सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से उस देश के भीतर क्या चल रहा है, इसकी जांच कर सकता है, जहां अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के प्रथम दृष्टया सबूत हैं. यह वेस्टफेलियन संप्रभुता और मानवीय हस्तक्षेप के बीच का मध्य रास्ता है.

इसलिए, हमारा विचार है कि विदेश मंत्री, जयशंकर को यूएससीआईआरएफ के प्रतिनिधिमंडल को वीजा देने से इनकार करना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत न्यायोचित नहीं था, जो भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोपों की जांच करना चाहते थे.

मार्कण्डेय काटजू, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एवं ऐमन हाशमी, दिल्ली विश्वविद्यालय में क़ानून के छात्र

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