सुनो उर्सुला
हमें जीना ऐसे नहीं
ऐसे था!
बसाना था अपना एक मकांदो बेतरह!
छींट देने थे एक मुट्ठी सितारे
अपनी ज़मीन पर
जो झरते ताज़े पीले फूल बनकर
हमारी मौत पर!
जीवन से मौत तलक
अपने एकान्त का सफ़र बेशक
देता है मजबूती!
अकेला भी करता है भरपूर!
पर
उर्सुला
रोज़ रोज़ जी भर कर जीना
सीखा तुमसे!
प्यार करना इस तरह
के समूचे ब्रह्मांड में बजने लगे घुंघरू…
फिर एक रोज़
अपने होजे आर्काडियो के साथ
छोड़ देना बसा बसाया सबकुछ!
एक मुट्ठी
समुंदर की तलाश में चल पड़ना एक अनजानी
दिशा के सिम्त!
जहां से आ रही हो समंदर की महक!
बसाने को एक नया जहान
मकांदो सरीखा!
न कोई हाकिम, न तानाशाह.
न ही चर्च न ईश्वर!
न कोई हुकुम न बंदिश
मकांदो जिसे नहीं थी ज़रूरत चर्च की!
राज्य की तो कतई नहीं!!
और उर्सुला
तुम्हारा दुःख मनाना
इस तरह के पिघल जाए आसमान!
बता सकती हो?
ये सारी दुनिया की औरतें
तुम्हारी माटी की ही क्यों बनी होती हैं?
अपने सारे बच्चों की अच्छाई बुराई को खुद में
समेट लेने वाली उर्सुला
निकल पड़ती है
बेटे की खोज में जंगल की ओर
घर परिवार छोड़ कर जंगल में भाग जाने वाली मां!
उर्सुला
बनना है मुझे भी
वैसी ही दुर्धष योद्धा!
अपने मकांदो को तबाह होते नहीं सह पाया था
विक्षिप्त
बूंदिया सीनियर! मकांदो का संस्थापक!
बंधा रहा अंत तलक शाहेबलूत के
उस महावृक्ष से.
विकल अपना मन भी
रह जाता है उसी शाहेबलूत के
तने से चिपक कर!
और फिर उसकी मौत पर
बरसे थे आसमान से पीले फूल
दिगंत चकित!
मौत का ऐसा स्वागत?
पीले पीले ताज़े फूल
छा जाते हैं समूची चेतना पर!
और युद्ध?
नहीं मांगता मकान्दो बिल्कुल?
पर
एक एक कर शहीद होते हैं बेटे सारे!
बेटियां अपनी अतृप्त इच्छाएं लिए रीत जाती हैं!
सौ सालों का मकान्दों का शोक!
ऐसा तो नहीं चाहा था इतना लंबा एकांत!
नहीं,नहीं! वैसा जादुई शहर नहीं बसाना मुझे
बेशक बसानी है एक दुनिया सच्ची सी!
अपने जादुई संसार में विचरते हुए जहां
भूल जाऊं ग़म सारे!
पर इन ग़मो की परतों से झरते सुख सच्चे होंगे,
बिल्कुल सच्चे!
देखना एक रोज़
मेरा अपना मकान्दो जीवित होगा ज़रूर
अपने सच्चे सुख दुख समेत!
खिले होंगे सुगंधित ताज़े लाल पीले फूल हर सिम्त
और हर फूल में जड़ी होंगी बिल्कुल
सुच्ची आंखें सपनीली!
मकांदो के सच पर
लगा देंगे हम स्मृतियों की चिप्पियां!
विस्मृति से बचाने को
नदी, पहाड़, पेड़, पत्तियां
घर, फूल, बागीचे, फर्नीचर सभी पर
उकेर देंगे अमिट नाम
हमेशा के लिए
नहीं मिटा पाएगा कोई
मकांदो की स्मृतियों को कभी भी!
सुनो यात्री
तुम भी अपना डेरा डंडा ले
आ बसना यहीं मेरे मकान्दो में /
पर
नहीं भूलना अपने हिस्से का श्रम
और
हंसी बेशुमार!
सुनो, मैंने अपनी होने वाली बेटी का नाम
चुन लिया है
‘ उर्सुला’!
- अमिताशीरीं
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