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यूपीएससी ने नये भेड़ियों को जन्म दे दिया है, भेड़ें मंगल गान गा रही है

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रविश कुमार

बधाई, जिन्होंने ज़िले का नाम रौशन किया, सावधान वे ज़िले जिनका नाम रौशन हुआ है. जब भी किसी प्रतियोगिता परीक्षा का परिणाम आता है, सफल उम्मीदवार के नाम के साथ साथ रौशन शब्द का उल्लेख होता ही है. आज एक सूची बना रहा था कि एक उम्मीदवार के राष्ट्रीय और राजकीय परीक्षा में सफल होने पर किन-किन चीज़ों का नाम रौशन हो जाता है.

पहला तो मां-बाप का नाम रौशन होता ही है, उसके तुरंत बाद ख़ानदान का आ जाता है. स्कूल और कॉलेज का नाम रौशन होता है, सफल उम्मीदवार ने जहां से कोचिंग की होती है, उसका नाम रौशन होता है. जिस शिक्षक ने दसवीं बारहवीं में विशेष ध्यान दिया था, उसका भी नाम रौशन हो जाता है.

जिन दोस्तों के साथ रहकर उसने तैयारी की होती है, उनके भी नाम रौशन हो जाते हैं. हालांकि वे कुछ उदास भी होते हैं क्योंकि उनके मां-बाप डांट रहे होते हैं कि उसने अपने मां-बाप का नाम रौशन कर दिया, तुमने रौशन नहीं किया. अब हम मां-बाप बिना अपना नाम रौशन हुए क्या करें, ज़ाहिर है दोस्त के सफल होने से दोस्तों के मां-बाप ख़ुद को अंधेरे में महसूस करने लगते हैं जबकि उनके घर में भी उजाले और विकास की प्रतीक बिजली से बत्ती जल रही होती है.

इस तरह से रौशन होने का सिलसिला गांव, कस्बे और मोहल्ले तक पहुंचता है. वहां से होता हुआ शहर तक जाता है और अंत में ज़िले का नाम रौशन कर देता है. अख़बार लिख देता है कि इसने सिविल सेवा या आई आई टी या मेडिकल की परीक्षा पास कर ज़िले का नाम रौशन कर देता है.

मैं हर साल इस तरह देश के सैंकड़ों ज़िलों का नाम रौशन होते हुए देखता हूं. ज़िले का नाम रौशन होना किसी भी प्रतियोगी परीक्षा का अभिन्न अंग है। अंग्रेज़ी में कहें तो इस सफलता में इन-बिल्ट है और हिन्दी में कहें तो अंतर्निहित है. सफल उम्मीदवार भी ख़ुद को ज़िले का टार्च समझते हुए अपना गर्विला सा फोटो प्रेस को जारी कर देता है.

चूंकि बिना दु:खों और संघर्षों के कोई सफलता गौरवान्वित नहीं होती है इसलिए संघर्ष खोजा जाने लगता है. इस प्रक्रिया में वह उम्मीदवार भी दुःखी और जुझारू जान पड़ता है जो पहले से भी कई परीक्षाओं में सफल हो चुका होता है. अर्थात् आईआईटी, मेडिकल, मैनेजमेंट या राज्य सिविल परीक्षा में सफल हो चुका होता है,

चूंकि उसने इस बार यूपीएससी में सफलता प्राप्त होती है, इसलिए उसकी पूर्ववर्ती सफलताएं असफलताओं की झलक लिए संघर्ष की निगाह से देखी जाने लगती है. उनके साथ मां-बाप और कई लोग संघर्ष करते हुए देखे और दिखाए जाने लगते हैं. इन तमाम कारकों से ज़िले का नाम रौशन होता है. सफल उम्मीदवारों में से कोई भी नहीं कहता कि मेरा तो तुक्का लग गया. सब अपनी सफलता को व्यक्त करते समय गंभीर हो जाते हैं, जैसे यह सफलता कम सदमा ज़्यादा है.

फेसबुक और सोशल मीडिया पर रौशन उत्पादन का सिलसिला आगे बढ़ता है और मुझ जैसे तथाकथित राष्ट्रीय पत्रकार के व्हाट्स एप के इन बॉक्स में पहुंचता है. सिविल सेवा का परिणाम आया है, मैंने कई सफल चेहरों के दर्शन कर लिए हैं, जिन्होंने अपने अपने ज़िले का नाम रौशन कर दिया है. शायद मेरा जीवन भी सफल ही है कि अपने ज़िले का नाम रौशन करने वाले सफल उम्मीदवारों के मित्र मुझसे प्राइम टाइम में उनका नाम रौशन किया जाना चाहते हैं. ये और बात है कि तमाम अख़बारों में सिंगल और ज़िला संस्करणों के डबल कॉलम में उनकी तस्वीर छप चुकी होती है.

अच्छा हुआ मैं यूपीएससी की परीक्षा का असफल उम्मीदवार नहीं हूं, वर्ना तथाकथित पत्रकार होने के नाते जीवन भर दूसरों की सफलता पर अपनी असफलता का दुःख झेलना पड़ता. मैंने परीक्षा ही नहीं दी जबकि मुझसे अपेक्षित था कि मैं भी ज़िले का नाम रौशन करूं. आप पाठकों में से भी बहुतों से यह अपेक्षा की गई होगी.

आदतन एक प्रश्न से टकरा गया हूं. कई प्रश्न इसके साथ छिटक पर निकल आए हैं. भारत में 718 ज़िले हैं. क्या कोई ऐसा भी ज़िला है जिसका नाम कभी रौशन नहीं हुआ है ? क्या ऐसा है कि वहां से आज तक किसी ने भी आई आई टी, मेडिकल, स्टेट सिविल परीक्षा और राष्ट्रीय सिविल परीक्षा पास नहीं की है ? इसी प्रश्न को दूसरी तरह से बदल देता हूं. ऐसे कितने ज़िले हैं जिनका हर साल सिविल परीक्षा के नतीजे आते ही नाम रौशन हो जाता है या एक दो साल के अंतर पर नाम रौशन होता रहता है ?

एक प्रश्न है कि यूपीएससी की परीक्षा पास करने वाले सभी उम्मीदवारों से ज़िले का नाम रौशन होता है या केवल विदेश सेवा (भा वि से), भारतीय प्रशासनिक सेवा( भा प्र से) और भारतीय पुलिस सेवा (भा पु से) के सफल उम्मीदवारों से ज़िले का नाम रौशन होता है ? मान लीजिए किसी एक ज़िले में एक उम्मीदवार भा प्र से हो जाता है और एक उसी परीक्षा में सबसे नीचले क्रम में सफल होता है, तो क्या दोनों से ज़िले का नाम रौशन माना जाएगा या केवल भा प्र से वाले से नाम रौशन होगा ?

मान लीजिए कि उस ज़िले में कोई भी भा वि से, भा प्र से और भा पु से नहीं होता है तब क्या ऐसी स्थिति में राजस्व सेवा प्राप्त करने वाले उम्मीदवार से ज़िले का नाम रौशन माना जाएगा ? मान लीजिए कि एक ज़िले से कोई उम्मीदवार राजस्व सेवा में सफल है और ठीक उससे सटे ज़िले का एक उम्मीदवार भा प्र से है, तो क्या पहले वाले ज़िले का नाम कुछ कम रौशन माना जाएगा ? मद्धिम रौशन टाइप और दूसरे ज़िले का नाम कुछ ज़्यादा रौशन माना जाएंगा, तेज़ आंच टाइप.

भा प्र से और भा प्रु से भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा का संक्षिप्तीकरण है. चूंकि यह भी काफी बड़ा है इसलिए मैंने सुविधा के लिए प्रसे और प्रुसे कर दिया है. इस लेख में आगे प्रसे और प्रुसे का ही इस्तेमाल होगा.

आपने देखा कि मैं इतने सारे प्रश्नों से उलझा बैठा हूं. आप भी होंगे. पहले से नहीं तो कम से कम इस लेख को पढ़ने के बाद हो ही जाएंगे. अब मैं भारत के ज़िलों के बारे में इंटरनेट से जानकारियों का उत्खनन करने लगता हूं. सबसे पहले तो यही आ गया कि भारत के 718 ज़िलों में से 55 प्रतिशत यानी 374 ज़िले अति पिछड़े ज़िले की श्रेणी में आते हैं. इसके अलावा 101 ज़िले हैं जो हर दृष्टि से अति पिछड़े माने जाते हैं. मतलब यहां का पिछड़ापन भयंकर श्रेणी का माना जाता है.

देश में 250 ज़िले हैं जिन्हें पिछड़ा माना जाता है. तो कुल मिलाकर पिछड़े और अति पिछड़े ज़िलों की संख्या देख लें तो इन ज़िलों की विकास यात्रा जिसे यहां नाम रौशन यात्रा कहना सीमीचीन प्रतीत होता है, उस ज़िले के किसी के प्रसे प्रुसे बन जाने से बहुत रौशन नहीं होती है. इसके लिए नीति आयोग ने कई मानक बनाए हैं.

आप जानते हैं कि पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए उच्च विकसित मानकों का होना अनिवार्य होता है. बिना उच्च मानकों के पिछड़ेपन का पता नहीं लगाया जा सकता है. जैसे, स्वच्छ जल की उपलब्धता कितनी है, अमुक ज़िले के लोगों में कुपोषण कितना है, स्कूल कालेज और कौशल की हालत कैसी है ?

इस आधार पर विश्व गुरु भारत के 374 ज़िले अति पिछड़े माने जाते हैं. ये सारे आंकड़े सरकार के ही हैं. जो ज़िले विकसित माने जाते हैं, उन्हें इतराने की ज़रूरत नहीं है, कब कोई योजना आ जाए या कोई पैमाना आ जाए और उनका ज़िला पिछड़ा घोषित हो जाए, पता नहीं, इसलिए ज़िले का पिछड़ा होना ही नियति है. अगर विकास की आर्थिक नीतियों को गहराई से समझना चाहते हैं तो यह बात समझ सकते हैं, अन्यथा व्यथा की कथा अनंत है.

मेरा दावा है कि इनमें से कई ऐसे ज़िले होंगे जहां से हर साल कोई न कोई सिविल परीक्षा या राष्ट्रीय परीक्षा में सफल होता है. ज़िले का नाम रौशन करता है. अपने एक सफल उम्मीदवार के सहारे जुगनू की तरह जगमगाने की चाह पाले अमुक ज़िले की त्रासदी भी यही है. उन्ही में से कई ऐसे अफसर उसी ज़िले में कलक्टर बन कर आते हैं जिस ज़िले का नाम वे इसकी परीक्षा में सफल होने पर रौशन कर चुके होते हैं.

उनके आने और जाने के बाद ज़िला वहीं का वहीं रह जाता है. ज़िले का नाम पिछड़ेपन के सूचकांक पर ही रौशन होता रहता है. यह भी जानता हूं कि सारी असफलताओं की सारी जवाबदेही प्रसे और प्रुसे की नहीं है लेकिन प्रसे और प्रुसे की भी है.

क्या मुझे इस ख़ुशी के वक्त पर भ्रष्टाचार से लेकर संविधान की हर मर्यादा के कुचले जाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रसे और प्रुसे के अफसरों की कारस्तानी की चर्चा करनी चाहिए ? क्या मुझे यह झूठी उम्मीद करनी चाहिए कि प्रसे और प्रुसे की परीक्षा पास करने वाले ये सफल उम्मीदवार संविधान की रक्षा करेंगे ? आप हंस रहे होंगे, मैं भी हंस रहा हूं. दरअसल मैं रोता हूं लेकिन आज कल इसका नाम हंसना हो गया है. शब्द भी दल बदलते हैं.

ऐसे अनगिनत प्रसंग यहां रख सकता हूं जिससे साबित किया जा सकता है कि ज़िले का नाम रौशन करने वाले यही प्रसे प्रुसे जब भी मौका मिलता है संविधान को रौंद डालते हैं. अवैध रुप से किसी नागरिक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा देते हैं, किसी का एनकाउंटर कर देते हैं और प्रमुख के पद पर पहुंच कर रिटायर होने से पहले एक बार और नाम रौशन करने की लालसा में किसी बेक़सूर को आतंकवादी बता कर बीस-बीस साल जेल में डाल देते हैं. तमाम गरीब लोगों को लात मार कर कमरे से निकाल देते हैं और नेताओं के साथ मिलकर किसी ग़रीब की ज़मीन पर कब्ज़ा कराने में सहायक बन जाते हैं.

आप इनके द्वारा की जाने वाली नाइंसाफियों के सताए लोगों को जाति और धर्म की श्रेणी में भी बांट सकते हैं लेकिन इनके शिकार सभी हुए हैं. आगे भी सभी होते रहेंगे. तब कोई आकर नहीं कहेगा कि जब यह सफल हुआ था तब हमने ख़ुशियां मनाई थी क्योंकि इसकी सफलता से ज़िले का नाम रौशन हुआ था. फलाने बाबू का लड़का या लड़की जिसने फलाने बाबू का नाम रौशन किया था किसी को भी फंसा देता है, किसी का भी एनकाउंटर कर देता है. इस खूबसूरत देश के लोकतंत्र को कुचल कर मुस्कुरा रहा होता है.

आज के कई बड़े अफ़सरों को समझना है तो उनके अभी के काम को देखिए और उस समय के अख़बार को पलटिए जब इन्होंने सफलता प्राप्त कर ज़िले का नाम रौशन किया था. इन्हीं नाम रौशन करने वालों के सामने हम सभी थरथराते नज़र आते हैं क्योंकि ये हमारे जीवन को कभी भी बर्बाद कर सकते हैं. राजनीति और सरकार के इशारे पर हमें और आपको जूतों से रौंद कर चले जाएंगे. बोलिए ये बात सही है कि नहीं सही है ?

एक बार फिर से बता दूं. प्रसे मतलब भारतीय प्रशासनिक सेवा और प्रुसे मतलब भारतीय पुलिस सेवा. प्रसे और प्रुसे बनने वाले जिन चेहरों को आप ज़िले का नाम रौशन करने वालों के रुप में याद कर रहे हैं, वही नाम और चेहरे एक दिन उसी ज़िले के नागरिकों के जीवन में अंधेरा लाने का कारक बनेंगे. आज सफलता के वक्त नाम रौशन करने की इस घड़ी में ये लोग काफी तने हुए नज़र आ रहे हैं लेकिन इस सेवा में जाने वाले ज़्यादातर ने क्या किया है और क्या करेंगे, यह बताने की ज़रूरत नहीं है.

अब आप तुरंत यहां अपवाद में कुछ अफसरों के काम गिनाने आ जाएंगे, उनके भी जो संविधान की रक्षा के लिए रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस्ट और राष्ट्रपति को पत्र लिखते हैं. मेरे पास यह भी मानने के कई कारण है कि कुछ अफसर वाकई कमाल करते हैं, और तमाम दवाबों से लड़ते हुए जनता का साथ दे जाते हैं लेकिन मैं जानता हूं कि वैसे गिनती के हैं. ऐसे अफसरों का साथ उसी की सेवा के लोग नहीं देते हैं. ऐसे अफसरों के संपर्क में आकर हैरानी भी होती है कि वाकई ये कितना त्याग कर रहे हैं !

प्रसे और प्रुसे का वेतन उनके काम की तुलना में बहुत मामूली है. ईमानदार अफसरों का घर वाकई बहुत मुश्किल से चलता है. उनकी सेवा और कर्तव्यपरायणा देखकर कई बार लगता है कि इनका वेतन कई लाख होना चाहिए. ऐसे अफसरों को जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है लेकिन उनकी तुलना में ऐसे अफसरों की संख्या आज कहीं ज्यादा है जिन्हें आप ‘संवैधानिक अपराधी’ कह सकते हैं. जो संविधान की शपथ लेकर संविधान के नाम पर नागरिकों का दमन करते हैं.

मैं खुशी के इस मौके पर इन नाम रौशन करने वालों को मिलने वाले दहेज की बात नहीं करना चाहता. यह तो आप जानते ही हैं. मैं सभी सफल उम्मीदवारों को बधाई देता हूं और उन ज़िलों को सावधान करता हूं जिनका नाम इनके सफल होने पर रौशन हुआ है.

यही उम्मीद करता हूं कि वे अफसर बनने के बाद वाकई किसी भी ज़िले का नाम रौशन करेंगे और अपने काम से अपना नाम रौशन करेंगे. संविधान और नागरिक के अधिकार के लिए खड़े होंगे और संवैधानिक नैतिकता और मर्यादा की स्थापना करेंगे. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की परीक्षा का लाभ उठाकर अफसर बनने के बाद लोकतंत्र को हर हाल में मज़बूत करेंगे. किसी को झूठे मामले में नहीं फंसाएंगे. आज आपका नाम हुआ है आज का दिन बड़ा है. आज ही आपसे कर्तव्यों की अपेक्षा की बात करने का दिन है. उसके बाद तो आप क्या करेंगे मुझे पता है.

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