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‘सांप्रदायिक हिंसा, कारपोरेटीकरण व तानाशाही के खिलाफ एकजुट हो’ – जन अभियान, दिल्ली

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देश की संघ-भाजपा संचालित अनपढ़ मोदी सरकार की बेलगाम फासिस्ट सत्ता देश को देशी-विदेशी तमाम लुटेरों को दोनों हाथों से लुटने की खुली छूट दे दी है. इस कारण समूची आवाम त्राहिमाम कर उठा है. ऐसे ही वक्त में जनवादी ताकतों ने विभिन्न माध्यम से इस फासिस्ट सत्ता के खिलाफ विरोध कर रहे हैं. इन्हीं ताकतों में एक है – ‘जन अभियान.’ जन अभियान अनेक जनवादी ताकतों का एक संयुक्त मोर्चा है, जिसमें इन्कलाबी मजदूर केंद्र, लोकपक्ष, डेमोक्रेटिक पीपल्स फ्रंट, भगत सिंह छात्र नौजवान सभा और सीपीआई (एमएल) क्रांतिकारी पहल है. इन जनवादी ताकतों ने लगातार देश के सामने चुनौती के तौर पर खड़ी रही है. इसी कड़ी में जन अभियान की दिल्ली ईकाई ने देश के सामने आम मेहनतकश जनता की पीड़ा और शासकों की बर्बरता को एक पर्चे के माध्यम से रखा है. हम उनके इस पर्चे को अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं – सम्पादक
'सांप्रदायिक हिंसा, कारपोरेटीकरण व तानाशाही के खिलाफ एकजुट हो' - जन अभियान, दिल्ली
‘सांप्रदायिक हिंसा, कारपोरेटीकरण व तानाशाही के खिलाफ एकजुट हो’ – जन अभियान, दिल्ली

देश में दो तरह के काम बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. पहला निजीकरण-कारपोरेटीकरण और दूसरा सांप्रदायिक हिंसा. यह दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं. आज देश में चारों ओर सांप्रदायिकता और जातीय हिंसा की आग देखी जा सकती है. हजारों सालों से निर्मित इंसानियत व मानवतावादी मूल्यों, संस्कृतियों व स्वभाव को नफरत की आग में जलाया जा रहा है. सांप्रदायिक व जातीय हिंसा पहले भी होती रही है और कांग्रेस सहित कई सरकारों ने अपने-अपने चुनावी लाभ लेने के लिए आड़े-तिरछे इसे बढ़ावा भी दिया है.

किंतु वर्तमान भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार मौजूदा सांप्रदायिक व जातीय हिंसा को अपने सांप्रदायिक संगठनों के जरिए प्रायोजित कर रही है. मणिपुर और हरियाणा के नूंह में जारी जातीय व साम्प्रदायिक हिंसा इसका ताजा उदाहरण है. इन राज्यों में भाजपा – आरएसएस व मोदी की डबल इंजन की सरकार काम कर रही हैं. इन राज्यों की पुलिस हिंसा फैलाने के आरोपी बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद जैसे सांप्रदायिक संगठनों के साथ मिलकर काम कर रही है. भाजपा से जुड़े मुख्यमंत्री, मंत्री और खुद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा केवल सांप्रदायिक व कांग्रेस विरोधी बयान देकर हिंसा को रोकने के बजाय परोक्ष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा हैं.

सांप्रदायिक व जातीय हिंसा से जान-माल के नुकसान के अलावा समाज को कूछ भी अच्छा नहीं मिलता है. मणिपुर में 3 महीने से अधिक समय से जारी हिंसा में 450 से अधिक जानें गईं, अनेक महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या की गई है, हजारों घर जला दिए गए हैं. जब मणिपुर में हिंसा रोकने की आवाज तेज हो रही थी, उसी समय हरियाणा के नूंह में भाजपा-आरएसएस से जुड़े बजरंग दल और वीएचपी द्वारा हिंसा कर दी गई. यहां भी 6 लोगों की जान गई है.

यहां दंगाई भीड़ नहीं, बल्कि भाजपा सरकार ने ही एक समुदाय विशेष के लोगों के मकान अवैध बताकर उजाड़ने में लगी है. भाजपा आरएसएस और इनसे जुड़े सांप्रदायिक संगठन खुलेआम संविधान और कानून की परवाह किए बिना हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, हिंदू-ईसाई, सवर्ण-दलित, स्थानीय-बाहरी के बीच जहर घोलकर हिंसा कराने में लगे हुए हैं.

सवाल यह है कि क्‍या यह हिंसा केवल छुद्र राजनीतिक लाभ लेने के लिए है, या इसके पीछे कोई और बड़ा कारण है. दरअसल इन साम्प्रदायिक संगठनों का लुटेरे वर्गों व शासकों से गहरा रिश्ता रहा है. लूटेरे शासकों की चाटूकारी (मोदी के शब्दों में चौकीदारी) कर ही ये सत्ता की मलाई खाते रहे हैं. अंग्रेजों की गुलामी में ही इनका जन्म हुआ है. अंग्रेजों की गुलामी और सामंती शासकों के खिलाफ जब यहां की मजदूर-मेहनतकश जनता, छात्र-नौजवान लोहा ले रहे थे तो इन्होंने अंग्रेजों की मुखबिरी की थी.

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उलल्‍ला खान और उधम सिंह जैसे हजारों क्रांतिकारी नौजवानों की बेखौफ कुर्बानियों ने अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था. अपने अंतिम समय में अंग्रेजों ने एक समझौते के जरिए सत्ता की बागडोर देश के बड़े सामंतों व बड़े पूंजीपतियों की पार्टी कांग्रेस के हाथों सौंप दी थी.

आकारिक आजादी के बाद देश के शासकों व देशी-विदेशी कारपोरेट एकाधिकारी कंपनियों ने कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में मजदूरों-किसानों के श्रम व प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन कर अपनी दौलत के साम्राज्य को खड़ा किया. 2014 से सत्तासीन हुई भाजपा-आरएसएस समर्थित मोदी सरकार के नेतृत्व में श्रम, सरकारी उद्यमों व प्राकृतिक संसाधनों की कारपोरेट लूट की रफ्तार बेलगाम कर दी गई है.

2014 में भाजपा ने भ्रष्टाचार, रोजगार, महंगाई, महिला हिंसा जैसे लोकप्रिय मुद्दों को उछाला था, लेकिन सत्तासीन होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देशी-विदेशी कारपोरेट के साथ खुलकर खेलना शुरू कर दिया. मोदी द्वारा कारपोरेट लूट की छूट में बाधक बने मजदूरों के श्रम कानून, आयात-निर्यात, जमाखोरी, जल-जंगल-जमीन को संरक्षित करने वाले कानूनों को देसी-विदेशी कॉरपोरेट कंपनियों के पक्ष में बदल दिया गया है अथवा खत्म किया जा रहा है.

मोदी सरकार द्वारा निजीकरण व कारपोरेटपरस्त नीतियों को तेजी से लागू करने के कारण ही देश में भांति-भांति की ठेकेदारी प्रथा स्थापित हो चुकी है, जिससे बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ रही है और नौजवानों के लिए स्थाई रोजगार एक सपना बन गया है. रोजगार के बदले उचित वेतन, यहां तक कि राज्य सरकारों द्वारा तय न्यूनतम वेतनमान भी मजदूरों-कर्मचारियों को नहीं मिल रहा है. शिक्षा-स्वास्थ्य सहित सभी जरूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं. दुनिया में अत्यधिक मात्रा में मिलने वाले नमक और पानी के दाम भी तेजी से बढ़ रहे हैं. इससे भी बढ़कर कड़ी मेहनत व कर्ज लेकर बनाए गए मजदूरों-मेहनतकशों की बस्तियों व दुकानों को अवैध बताकर उजाड़ा जा रहा है.

धन्‍ना सेठ व राजनेता अपने लूट के साम्राज्य को बनाए रखने के लिए खुलेआम अपराधियों एवं अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं. बेरोजगारी और बढ़ती गरीबी से भी अपराध को खुराक मिल रहा है. महिलाओं-दलितों पर हिंसा लगातार बढ़ रही है. डबल इंजन वाली भाजपा सरकार लोगों के जान-माल की सुरक्षा देने में नाकाम है.

प्रधानमंत्री मोदी मजदूर-किसान-मेहनतकश जनता को गुमराह करने के लिए लोकप्रिय वादे करते हैं और कारपोरेट कंपनियों की सेवा में लगे रहते हैं. ऐसा लगता है उन्होंने यह गुण जर्मनी के फासिस्ट तानाशाह हिटलर से सीखा है. हिटलर ने भी अपने घोषणा पत्र में समाजवादी लगने वाले प्रोग्राम पेश किया था और कारपोरेट कंपनियों की लूट के निजाम को बचाए रखने के लिए सभी समस्याओं की जड़ यहूदियों को बता कर समाज में नफरत का जहर घोल दिया था.

1933 में सत्ता में आने के बाद हिटलर ने जर्मनी में लोकतांत्रिक ढांचे को खत्म कर कारपोरेट कंपनियों की लूट और उनके साम्राज्य विस्तार के लिए काम किया. हिटलर ने अपनी पुलिस मशीनरी को नरसंहार में लगाकर लगभग 60 लाख से अधिक यहूदियों का कत्लेआम किया था. आजकल लगभग वैसा ही अपने देश में हो रहा है.

मोदी सरकार लोकतांत्रिक ढांचे व संस्थाओं को खत्म करने में लगी
हुई है. न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सीबीआई, ईडी जैसी स्वायत्त संस्थाओं एवं सेना को मनमाने ढंग से मैनेज कर इनका बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है. दिल्‍ली के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसला के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा विधेयक लाना तथा हरियाणा के नूंह में हिंसा के बाद बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने वाले हरियाणा-पंजाब हाई कोर्ट के दो जजों का ट्रांसफर करना ताजा उदाहरण है.

इसी कड़ी में मजदूर मेहनतकश जनता के श्रम व संवैधानिक-कानूनी अधिकारों को खत्म कर उन्हें अधिकारविहीन किया जा रहा है. देश पर कारपोरेट तानाशाही का शासन लागू किया जा रहा है.

हमारा देश कॉरपोरेट कंपनियों और भाजपा-आरएसएस अथवा मोदी की बपौती नहीं है. यह देश मजदूर मेहनतकश अवाम का है. इस देश का निर्माण हमने अपनी मेहनत से किया है. देश की मिट्टी के कण-कण में हमारा खून-पसीना लगा है. निजीकरण की नीतियों को लागू करने के कारण ही कारपोरेट बड़ी कंपनियां श्रम, सरकारी उद्यमों व प्राकृतिक संसाधनों को लूट रही हैं. अधिकारविहीन बनाकर हमें तेजी से गुलामी की ओर धकेला जा रहा है.

लूटेरे शासकों, खासकर कारपोरेट शासकों के शासन सत्ता में ऐसा ही होता है और होगा. इनके शासन का मतलब है मजदूरों-किसानों व मेहनतकशों पर तानाशाही. ये अपनी सत्ता व तानाशाही के हथियार से मजदूरों-मेहनतकशों को गुलाम बनाना चाहते हैं, उन्हें भांति-भांति से तबाह-बर्बाद करते हैं. साम्प्रदायिक हिंसा उनका अंतिम किन्तु भयंकर विनाशक हथियार है. यह समुची मानवता को बर्बाद करने वाला हथियार है. ऐसे दौर में हमें जागरूक नागरिक की तरह खड़े होकर लड़ने की जरूरत है. आज खड़े नहीं हुए तो कल देर हो जाएगी.

आइए, हम सब निजीकरण, कारपोरेटीकरण, सांप्रदायिकता, तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक अधिकारों, देश की विविधता, भाईचारा, सद्भाव, न्याय, इंसाफ बचाने के लिए खड़े हों. लूटेरे कारपोरेट शासकों के राज का विकल्प है-मजदूरों मेहनतकशों का राज. आइए, इसे बनाने के लिए हम एकजुट होकर आवाज उठाएं और संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें.

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